Ramana Maharshi Birth Anniversary: दक्षिण भारत में रमण महर्षि को माना जाता है शिव का अवतार, जानिए कुछ रोचक बातें
20वीं सदी के महान संत श्री रमण महर्षि का 30 दिसंबर को जन्म हुआ था। बता दें कि रमण महर्षि ने बालक के रूप में ही शाश्वत सत्य और आत्म-परमात्मा को प्राप्त कर लिया था। उनका आधुनिक काल में भारत और विदेश में बहुत प्रभाव रहा है।
आज ही के दिन यानी की 30 दिसंबर को श्री रमण महर्षि का जन्म हुआ था। वह 20वीं सदी के एक महान संत थे और उनकी अनोखी या यात्रा इतिहास के पन्नों में बेमिसाल है। बता दें कि रमण महर्षि ने बालक के रूप में ही शाश्वत सत्य और आत्म-परमात्मा को प्राप्त कर लिया था। वहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि यह उन्होंने बाहरी गुरु द्वारा दीक्षा लिए बिना हुआ था। उन्होंने आत्म विचार पर बहुत बल दिया। उनका आधुनिक काल में भारत और विदेश में बहुत प्रभाव रहा है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर रमण महर्षि के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
रमण महर्षि का जन्म 30 दिसंबर 1879 में तमिलनाडु के पास 'तिरुचुली' नामक गांव में हुआ था। इनका असली नाम वेंकटरमण अय्यर रखा था। बाद में वह 'रमण महर्षि' के नाम से फेमस हुए। उनकी शुरूआती शिक्षा तिरुचुली के एक प्राइमरी स्कूल से पूरी हुई और बाद में उन्होंने दिण्डुक्कल के एक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। वहीं महज 12 साल की उम्र में इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद वह अपने चाचा के साथ रहने लगे थे।
आध्यात्मिक अनुभव हुई जाग्रत
बता दें कि महज 16 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था और वह तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई के पास अरुणाचल नामक पहाड़ पर रहने चले गए थे। लोग उनको रमण महर्षि कहने लगे, क्योंकि वह बेहद दयालु और बुद्धिमान थे। वह रमणाश्रम में रहते थे, जोकि अरुणाचल पहाड़ी के तलहटी में स्थित है। हालांकि वह अधिक बातें नहीं करते थे और उन्होंने आत्म विचार पर अधिक जोर दिया। बताया जाता है कि वह बिना किसी साधना के अपने आप को आध्यात्मिकता के शिखर पर ले गए। वहीं दक्षिण भारत में श्रीरमण महर्षि को शिव का अवतार माना जाता है।
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वह महज 17 साल की उम्र में एक योगी की तरह अकेले बैठते और ध्यान लगाया करते थे। हालांकि रमण महर्षि ने औपचारिक तौर पर सन्यास नहीं लिया था। वहीं कुछ समय बाद रमण महर्षि की मां भी उनके साथ आश्रम में रहने लगी थीं। उनकी मां ने रसोई का काम संभाला और आध्यात्मिक जीवन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। रमण महर्षि के पास बाहर जाकर उपदेश देने के बहुत निमंत्रण आते, लेकिव वह कभी भी तिरुवन्नामलाई से बाहर नहीं आए।
मृत्यु
बता दें कि अंत समय में रमण महर्षि की तबियत खराब रहने लगी थी। वह जानते थे कि उनका आखिरी समय अब निकट था। उनकी आंखों में एक चमक रहती थी और वह अपने दर्द के प्रति काफी उदासीन थे। लेकिन इसके बाद भी रमण महर्षि ने अपने भक्तों से मिलना जारी रखा। वहीं 14 अप्रैल 1950 को शाम से समय उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए और उन्होंने थोड़े समय के लिए अपनी आंखें खोली और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान थीं। एक गहरी श्वांस लेते हुए रमण महर्षि ने अपना शरीर छोड़ दिया।
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