ममता की जीत से गदगद विपक्षी नेता उन्हें पीएम पद के दावेदार के रूप में स्वीकार करेंगे ?
ममता बनर्जी की इस जीत के साथ ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अब कमजोर होती दिखाई देगी और ममता बनर्जी का उदय होगा। विपक्ष के कई नेता भी चाहेंगे कि ममता बनर्जी अब मोदी से सीधे-सीधे लोहा लें। हालांकि प्रधानमंत्री पद के लिए ममता बनर्जी को कितने दलों के नेताओं का समर्थन हासिल होगा यह तो वक्त ही बताएगा।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के साथ ही ममता बनर्जी अब विपक्ष के सबसे बड़े चेहरा के रूप में उभर सकती हैं। विपक्ष को भी ममता बनर्जी के रूप में एक बड़ा चेहरा मिल गया है। हालांकि यह बात भी सच है कि ममता बनर्जी खुद अपनी नंदीग्राम सीट हार गई हैं। विपक्ष कहीं ना कहीं मोदी के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी का नेतृत्व देख रहा है। इन नतीजों ने एक बार और भी स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल कांग्रेस अपने पतन की ओर है। कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। ऐसे में विपक्ष को ममता बनर्जी से अब बहुत ज्यादा उम्मीदें है। वर्तमान में विपक्षी नेताओं को भी यह लगने लगा है कि वह ममता बनर्जी ही है जो मोदी और अमित शाह से चुनौती ले सकते हैं। ममता बनर्जी को ही आगे बढ़ाने के बारे में सोचा जा सकता है। हालांकि ममता बनर्जी के सामने भी अब एक अलग चुनौती है। उन्हें अपने बंगाल में ही फिलहाल भाजपा के रूप में मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा।
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पांच चुनावी राज्यों के जो नतीजे आए उनमें असम और पुडुचेरी को छोड़ दें तो भाजपा के लिए तमिलनाडु, केरल में कुछ खास नहीं रहा जबकि पश्चिम बंगाल में वह 3 से 77 तक पहुंच गई है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी और 200 प्लस के लक्ष्य के साथ वह चुनावी मैदान में उतरी थी। लेकिन ममता बनर्जी के खेला होबे ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। यह बात भी सच है कि ममता बनर्जी अपने उस नंदीग्राम में हार गई जहां उन्होंने 10 साल पहले आंदोलन शुरू किया था जिसकी वजह से आज वह बंगाल में मुख्यमंत्री हैं। यह वही आंदोलन था जिसने वाम मोर्चे को खारिज करके राज्य की सत्ता में आने में तृणमूल कांग्रेस की मदद की थी। ममता बनर्जी की जीत के साथ ही कई दल ऐसे भी हैं जो अपनी हार से ज्यादा भाजपा की हार से खुश हैं। चुनावी जीत उस अफीम की तरह है जो जबरदस्त उत्साह और ऊर्जा प्रदान करता है। ममता बनर्जी में भी यही दिख रहा है। अपने टूटे पैर के साथ पूरे बंगाल में रैली करने वाली ममता बनर्जी फिलहाल उत्साह से लबालब है और वह भाजपा के खिलाफ पहले ही दिन से आक्रमक हो गई हैं। पैर में चोट के बाद वह लोगों की सहानुभूति पाने में भी कामयाब रही। हालांकि, जीत के बाद उन्होंने तुरंत प्लास्टर भी उतरवाया और व्हीलचेयर से भी छुटकारा पाया।
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विपक्ष के बड़े नेताओं का रुख अब कांग्रेस से अलग होकर ममता बनर्जी पर जा सकता है। ममता बनर्जी ने जिस आक्रामकता के साथ भाजपा के मशीनरी का सामना किया वह काबिले तारीफ है। विपक्षी नेता भी इस के कायल हो रहे हैं। तभी तो जीत के रुझान के साथ ही ममता बनर्जी को बधाई देने वालों का तांता लग गया। सबसे पहले उन नेताओं ने ममता बनर्जी को बधाई दी जो मोदी विरोध का स्वर लगातार उठाते रहते हैं। उद्धव ठाकरे, शरद पवार, उमर अब्दुल्लाह, महबूबा मुफ्ती, एमके स्टालिन, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, मायावती जैसे तमाम नेता ममता बनर्जी को बधाई देने वालों में शामिल रहे। शिवसेना ने तो ममता बनर्जी को शेरनी तक कह दिया। जाहिर सी बात है कि ममता बनर्जी में विपक्ष को एक नई उम्मीद दिखनी शुरू हो गई है। हालांकि अगर राष्ट्रव्यापी भाजपा के खिलाफ गठबंधन की बात होगी तो क्या ममता बनर्जी उसमें मोदी के खिलाफ प्रमुख चेहरा के रूप में शामिल होंगी, इसके लिए इंतजार ही करना पड़ेगा। लेकिन विपक्षी नेताओं की तरफ से जो रूख इस वक्त अख्तियार किया गया है उससे तो यही लगता है कि ममता बनर्जी को उन्हें स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं है।
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ममता बनर्जी की इस जीत के साथ ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अब कमजोर होती दिखाई देगी और ममता बनर्जी का उदय होगा। विपक्ष के कई नेता भी चाहेंगे कि ममता बनर्जी अब मोदी से सीधे-सीधे लोहा लें। हालांकि प्रधानमंत्री पद के लिए ममता बनर्जी को कितने दलों के नेताओं का समर्थन हासिल होगा यह तो वक्त ही बताएगा। यह बात भी सच है कि ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को, बिहार में तेजस्वी यादव को, तमिलनाडु में स्टालिन को, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव को कितना वोट दिलवा पाएंगी। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि ममता बनर्जी एक क्षेत्रीय दल तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख हैं। उनका बंगाल में दबदबा तो है लेकिन बाकी राज्यों में उनकी उपस्थिति शून्य है। ऐसे में विपक्ष का वह चेहरा तो बन सकती हैं लेकिन अपने दमखम पर मोदी से लोहा लेने के लिए उन्हें अपनी पार्टी के विस्तार के साथ-साथ विपक्ष के अन्य नेताओं के विश्वास की भी जरूरत पड़ेगी। सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या विपक्ष प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में ममता बनर्जी को स्वीकार करेगा? बात प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में आएगी तब क्या एनसीपी शरद पवार को छोड़कर ममता बनर्जी के नाम पर सहमत होगी? क्या पीएम बनने का ख्वाब पाले मायावती ममता बनर्जी को आगे बढ़ने में मदद करेंगी? लगातार दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री की वकालत करने वाले स्टालीन क्या ममता बनर्जी के नाम पर सहमत होंगे? यह ऐसे सवाल है जिसका जवाब वक्त आने पर ही मिल पाएगा। लेकिन यह तो तय है कि भले विपक्ष ममता बनर्जी के नेतृत्व में भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ ले लेकिन जब बात पद की आएगी तब कहीं ना कहीं मामला फंसेगा।
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