BBC पर कार्रवाई को अघोषित आपातकाल कहने वाले बताएं कि देश में घोषित आपातकाल किसने लगाया था?

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जो लोग बीबीसी पर आयकर विभाग की कार्रवाई को गलत बता रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि भारत में पहली बार किसी मीडिया संस्थान के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई नहीं हुई है। इससे पहले भी जिसने गलती की है उसके खिलाफ नियम सम्मत कार्रवाई हुई ही है।

देश में ऐसे कई राजनेता और संस्थाएं हैं जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन इन मुद्दों के प्रति दोहरा रवैया रखते हैं। यह लोग मीडिया स्वतंत्रता की बात करते हैं लेकिन मीडिया पर सर्वाधिक हमले भी यही लोग करते हैं। आज बीबीसी पर आयकर विभाग ने कार्रवाई की तो जैसे पूरा टूलकिट गैंग ही परेशान हो गया। कांग्रेस आग बबूला हो गयी। पार्टी ने कह दिया कि यह अघोषित आपातकाल है। यहां कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि वह उस पार्टी का नाम बताये जिसने देश में घोषित आपातकाल लगाया था। देश में आपातकाल लगा कर जनता पर अत्याचार का मजा लूटने वाले भला क्या जानेंगे कि आपातकाल क्या होता है। यदि बीबीसी पर मोदी सरकार की कार्रवाई पर कांग्रेस को आपत्ति है तो वह बताए कि इंदिरा गांधी ने बीबीसी पर क्यों प्रतिबंध लगाया था?

बीबीसी पर आयकर विभाग की कार्रवाई पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या कर चोरी का मामला अगर है तो आयकर विभाग चुपचाप बैठा देखता रहे? इसके अलावा, बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई के विरोध में जिस तरह एक साथ और एक समय पर कांग्रेस के नेताओं, वामपंथी दलों के नेताओं, आम आदमी पार्टी के नेताओं, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और पत्रकारों के साथ होने वाले अन्याय को चुपचाप देखते रहने वाले एडिटर्स गिल्ड ने हमला बोला है, वह भी कई सवाल खड़े करता है। कमाल की बात यह है कि सबने एक लाइन पकड़ते हुए बीबीसी पर आयकर विभाग की कार्रवाई को मोदी संबंधी डॉक्यूमेंट्री से जोड़ दिया। देखा जाये तो देश में एक चलन-सा बनता जा रहा है कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई को ही संदेह के घेरे में ला दिया जाये जिससे गुनाहगार को बचने का अवसर मिल जाये। आज जो लोग भारत की छवि खराब करने वाले बीबीसी के समर्थन में खड़े हो रहे हैं वह यह भी दर्शा रहे हैं कि उनकी मानसिकता अब भी औपनिवेशिक काल की ही है। वह यह भूल गये हैं कि अब ब्रिटिश राज नहीं है और वहां के संस्थानों के साथ खड़ा होने की कोई मजबूरी भी नहीं है। लेकिन मोदी विरोध में कुछ लोग कुछ भी करने के लिए तैयार हैं, भारत का विरोध करना पड़े तो संभवतः वह भी करने को तैयार हैं। जो लोग बीबीसी पर आयकर विभाग की कार्रवाई को गलत बता रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि भारत में पहली बार किसी मीडिया संस्थान के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई नहीं हुई है। इससे पहले भी जिसने गलती की है उसके खिलाफ नियम सम्मत कार्रवाई हुई ही है।

बीबीसी का बयान

बहरहाल, जहां तक इस पूरे प्रकरण की बात है तो आपको बता दें कि ब्रिटेन के सार्वजनिक प्रसारक बीबीसी ने कहा है कि भारतीय आयकर विभाग के अधिकारी नयी दिल्ली और मुंबई स्थित उसके कार्यालयों में हैं तथा वह उनके साथ पूरा सहयोग कर रहा है। बीबीसी ने आयकर सर्वे के संबंध में अधिक विवरण नहीं दिया। बताया जा रहा है कि इस सर्वे के दौरान स्थानीय बीबीसी कर्मचारियों को कथित तौर पर कार्यालय परिसर में प्रवेश करने से रोका गया और उनके मोबाइल फोन बंद कर दिए गए। 

आयकर विभाग का स्पष्टीकरण

उधर, आयकर विभाग के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के कार्यालयों में आयकर अधिकारियों के पहुंचने के साथ ही सुबह 11 बजे अचानक से यह कार्रवाई शुरू हुई। उन्होंने कहा कि बीबीसी के कर्मचारियों को परिसर के अंदर एक विशेष स्थान पर अपने फोन रखने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा कि विभाग, लंदन मुख्यालय वाले सार्वजनिक प्रसारक और उसकी भारतीय शाखा के कारोबारी संचालन से जुड़े दस्तावेजों पर गौर कर रहा है। सूत्रों ने संकेत दिया कि जांच बीबीसी सहायक कंपनियों के अंतरराष्ट्रीय कराधान के मुद्दों से जुड़ी है। यह खबर फैलते ही मध्य दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित बीबीसी कार्यालय के बाहर भारी संख्या में राहगीरों और मीडिया कर्मियों को देखा गया। मुंबई में बीबीसी का कार्यालय सांताक्रूज में है। हम आपको बता दें कि सर्वे के तहत, आयकर विभाग केवल कंपनी के व्यावसायिक परिसर की ही जांच करता है और इसके प्रवर्तकों या निदेशकों के आवासों और अन्य स्थानों पर छापा नहीं मारता है।

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भाजपा का पलटवार

बीबीसी पर आयकर छापों के बाद विपक्षी हमलों को गलत बताते हुए भाजपा ने बीबीसी को विश्व का सबसे ‘‘भ्रष्ट बकवास कार्पोरेशन’’ करार दिया और कहा कि इस मीडिया समूह के खिलाफ आयकर विभाग का जारी ‘‘सर्वे ऑपरेशन’’ नियमों और संविधान के तहत है। भाजपा ने बीबीसी पर भारत के खिलाफ ‘जहरीली’ रिपोर्टिंग करने का आरोप लगाया और कहा कि उसका दुष्प्रचार और कांग्रेस का एजेंडा साथ-साथ चलता है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए आयकर (आईटी) विभाग की कार्रवाई की कांग्रेस द्वारा की गई आलोचना की निंदा की और कहा कि सरकारी एजेंसी को अपना काम करने देना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को आड़े हाथ लेते हुए उन्हें याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी बीबीसी पर प्रतिबंध लगाया था। भाटिया ने कहा, ‘‘बीबीसी के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई नियमानुसार और संविधान के तहत हो रही है।’’ उन्होंने कहा कि भारत संविधान और कानून के तहत चलता है और आज केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार है। उन्होंने कहा, ‘‘आयकर विभाग... ये पिंजरे का तोता नहीं है। वह अपना काम कर रहा है।’’ भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कोई भी एजेंसी हो, मीडिया समूह हो, अगर भारत में काम कर रहा है और अगर उसने कुछ गलत नहीं किया है तथा कानून का पालन किया है, तो फिर डर कैसा? उन्होंने आरोप लगाया कि बीबीसी में पत्रकारिता की आड़ में ‘‘एजेंडा’’ चलाया जाता है।

कांग्रेस का बयान

उधर, कांग्रेस ने कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि।’’ पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘मोदी सरकार में समय-समय पर प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला होते रहा है। यह सब आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए किया गया है। यदि संस्थाओं का उपयोग विपक्ष और मीडिया को दबाने के लिए होगा, तो कोई भी लोकतंत्र नहीं बच सकता।’’ खरगे ने कहा कि लोग सरकार के इस कदम का प्रतिरोध करेंगे। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने संवाददाताओं से कहा, "हम अडाणी मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की मांग कर रहे हैं और सरकार बीबीसी के पीछे पड़ गई है। विनाशकाले विपरीत बुद्धि।"

महुआ मोइत्रा भड़कीं

दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने पूछा है कि क्या बीबीसी के कार्यालयों पर ‘‘छापेमारी’’ के बाद ‘‘मिस्टर ए’’ पर छापा मारा जाएगा? उन्होंने यह बात स्पष्ट तौर पर अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी पर हमला बोलते हुए कही। टीएमसी सांसद ने सेबी और प्रवर्तन निदेशालय को टैग करते हुए एक ट्वीट में कहा, "चूंकि एजेंसियां ये वैलेंटाइन डे 'सर्वे' कर रही हैं, ऐसे में आयकर विभाग और सेबी का सरकार के सबसे चहेते व्यक्ति ‘मिस्टर ए’ पर छापे के बारे में क्या कहना है?"

महबूबा भी आग बबूला

वहीं, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि मुंबई और दिल्ली में बीबीसी के कार्यालयों में आयकर विभाग का ‘‘सर्वे अभियान’’ केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा ‘‘आलोचकों को खुल्लमखुल्ला प्रताड़ित करना’’ है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘बीबीसी कार्यालय पर छापों का कारण और प्रभाव काफी स्पष्ट है। भारत सरकार सच बोलने वालों को बेशर्मी से प्रताड़ित कर रही है। चाहे वह विपक्षी नेता हों, मीडिया हो, कार्यकर्ता हों या कोई और हो। सच्चाई के लिए लड़ने वाले को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है।’’

माकपा, भाकपा भी भड़के

दूसरी ओर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत में बीबीसी के दफ्तरों पर आयकर विभाग के ‘छापे’ को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा और सवाल किया कि क्या भारत अब भी ‘लोकतंत्र की जननी’ है। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, ‘‘पहले बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित करो। अडाणी के मामले में जेपीसी/जांच पर कोई जांच नहीं। अब बीबीसी के कार्यालयों पर छापा। भारत: लोकतंत्र की जननी?’’ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद विनय विश्वम ने कहा कि आयकर विभाग की यह कार्रवाई सच की आवाज को दबाने का प्रयास है। 

आम आदमी पार्टी क्या बोली?

उधर, आम आदमी पार्टी ने बीबीसी के कार्यालयों में आयकर विभाग के सर्वेक्षण अभियान को लेकर केंद्र पर निशाना साधा और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'तानाशाही के चरम' पर पहुंच गए हैं। आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने आयकर विभाग के सर्वेक्षण पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक ट्वीट में कहा, "मोदी जी, आप तानाशाही के चरम पर पहुंच गए हैं।" आप नेता ने कहा, ‘‘पहले बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी पर प्रतिबंध लगाया। अब इसके दफ्तरों पर छापेमारी..मोदी जी मत भूलिए, हिटलर की तानाशाही भी खत्म हो गई। आपकी तानाशाही भी खत्म हो जाएगी।’’

एडिटर्स गिल्ड का बयान

दूसरी ओर, बीबीसी इंडिया के कार्यालयों में आयकर विभाग के सर्वे को लेकर गहरी चिंता जताते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसे सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों को "डराने और परेशान करने" के लिए सरकारी एजेंसियों के उपयोग की "प्रवृत्ति" की निरंतरता करार दिया। एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान जारी कर मांग की कि ऐसी सभी जांच में काफी सावधानी और संवेदनशीलता बरती जाए, जिससे पत्रकारों और मीडिया संगठनों के अधिकार कमजोर नहीं हों। गिल्ड ने अपनी पुरानी मांग को दोहराया कि सरकारें सुनिश्चित करें कि इस तरह की जांच निर्धारित नियमों के तहत हों और वे स्वतंत्र मीडिया को डराने के लिए उत्पीड़न के तरीकों में नहीं बदल जाएं।

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