भारतीय सैनिकों पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले को लेकर चुप क्यों हैं प्रधानमंत्री मोदी : ओवैसी
ओवैसी ने कहा कि 2020 में भारत-चीन सीमा संघर्ष के दौरान गलवान में तेलंगाना के एक सहित 20 सैनिक मारे गए थे और प्रधानमंत्री इसे लेकर कुछ नहीं करेंगे। उन्होंने 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र को लेकर कहा कि अगर एजेंडा पहले से दिया गया होता, तो सांसदों के पास तैयारी करने और सत्र में भाग लेने के लिए समय होता। यह संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कोकेरनाग हमले की निंदा करते हुए शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल किया कि वह भारतीय सैनिकों की हत्याओं पर चुप क्यों हैं। ओवैसी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि संविधान के अनुच्छेद-370 के कुछ प्रावधानों के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म होने का दावा करने वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार को अब जवाब देना चाहिए कि यह कहां खत्म हुआ? ओवैसी ने कहा, ‘‘मैं इस घटना की निंदा करता हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं किजब पुलवामा हमला हुआ था,...हमारे प्रधानमंत्री ने इस घटना पर गुस्सा और पीड़ा व्यक्त की थी। अब वह बिल्कुल ठंडे और चुप बैठ गए हैं।
ऐसा कैसे हो सकता है? प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि उन्होंने अनुच्छेद- 370 को हटा दिया और आतंकवादीखत्म हो जाएगा। यह कहां ख़त्म हुआ? पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने एक कर्नल, मेजर और एक पुलिस उपाधीक्षक की हत्या कर दी। और अभी भी यह अभियानजारी है।’’ आतंकवादियों के साथ बुधवार सुबह मुठभेड़ में सेना की 19 राष्ट्रीय राइफल्स इकाई के कमांडिंग अधिकारी कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष ढोचक, जम्मू-कश्मीर पुलिस के उपाधीक्षक हुमायूं भट्ट और सेना का एक अन्य जवान शहीद हो गए थे।
ओवैसी ने कहा,‘‘ ये पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादी आ रहे हैं और हमारे कश्मीरी पंडितों, नागरिकों और हमारे सैनिकों को मार रहे हैं। क्या हम अहमदाबाद के उस स्टेडियम में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलेंगे जिसका नाम नरेन्द्र मोदी के नाम पर है? ’’ ओवैसी ने कहा कि 2020 में भारत-चीन सीमा संघर्ष के दौरान गलवान में तेलंगाना के एक सहित 20 सैनिक मारे गए थे और प्रधानमंत्री इसे लेकर कुछ नहीं करेंगे। उन्होंने 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र को लेकर कहा कि अगर एजेंडा पहले से दिया गया होता, तो सांसदों के पास तैयारी करने और सत्र में भाग लेने के लिए समय होता। यह संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
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