जब अचानक से प्रशासन ने जम्मू कश्मीर के कई प्रमुख नेताओं को किया था नजरबंद

Jammu Kashmir

पुलिस के आला अधिकारियों ने बताया था कि इन नेताओं को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। इसके पीछे अधिकारियों ने एलओसी पर पाकिस्तान से जारी तनाव और आतंकवादी धमकियों को प्रमुख वजह बताया था।

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में कई तरह की चर्चाओं और अमरनाथ यात्रा को अचानक से रोके जाने के बाद सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती की गई थी। यह 5 अगस्त 2019 से पहले का घटनाक्रम था। जब राजनीतिक दलों के बीच में आर्टिकल 370 के साथ छेड़छाड़ की भी सुगबुगाहट थी। इस दौरान जम्मू-कश्मीर में कई ऐसे कदम उठाएं नए जिसकी वजह से देश की नजरें वहीं टिकी हुई थीं। एक-एक करके जम्मू कश्मीर के नेताओं को उन्हीं के आवास में नजरबंद किया जा रहा था।

रविवार 4 अगस्त, 2019 की आधी रात को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला , पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और जम्मू कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन को उन्हीं के आवास में नजरबंद कर दिया गया था। इस दौरान पुलिस के आला अधिकारियों ने बताया था कि इन नेताओं को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। इसके पीछे अधिकारियों ने एलओसी पर पाकिस्तान से जारी तनाव और आतंकवादी धमकियों को प्रमुख वजह बताया था। 

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धीरे-धीरे नेताओं ने ट्वीट सामने आने लगे, जिसमें उन्होंने दावे किए कि उन्हें नजरबंद कर दिया गया है। 5 अगस्त से पहले की रात में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में किलेबंदी कर दी ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो। नेताओं को नजरबंद कर दिया गया, प्रदेश में कर्फ्यू लगा दिया गया, इंटरनेट सेवाएं रोक दी गईं। ताकि घाटी की आवाज किसी और को सुनाई न दे सके।

सरकार ने नेताओं को न सिर्फ जम्मू कश्मीर में नजरबंद किया बल्कि आगरा की जेलों में भी स्थानांतरित किया है। इनमें राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता भी शामिल थे। बता दें कि 140 से अधिक अलगाववादियों को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने उत्तर प्रदेश की अलग-अलग जेलों में स्थानांतरित किया था। 

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इन प्रमुख नेताओं को किया गया नजरबंद

सरकार ने जम्मू कश्मीर पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती, वरिष्ठ माकपा नेता यूसुफ़ तारिगामी, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रो. सैफुद्दीन सोज, एनसी के पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह राणा, सुरजीत सिंह सलाथिया, जावेद राणा, सज्जाद किचलू, अहमद गुरेजी, कांग्रेस के पूर्व विधायक रमण भल्ला, विकार रसूल, अब्दुल रशीद, जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी के पूर्व विधायक हर्षदेव सिंह, अब्दुल जब्बार, बशीर अहमद मीर, जहूर अहमद मीर, यासिर रेशी, गुलाम नबी, पीडीपी के अब्दुल हक खान, पीपुल्स कांफ्रेंस नेता मोहम्मद अब्बास समेत कई नेताओं को नजरबंद किया गया था।

बता दें कि प्रशासन ने यह नहीं बताया कि पांच अगस्त से कितने लोगों और नेताओं को नजरबंद किया गया है। हालांकि, जो आंकड़े सामने आए है उनके मुताबिक जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत गिरफ्तार करीब 300 लोगों को रिहा किया जा चुका है। जबकि 144 नेता अभी भी नजरबंद हैं। मिली जानकारी के मुताबिक नेताओं को राजनीतिक बयानबाजी नहीं करने की शर्त पर रिहा किया गया है।

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नजरबंदी पर उठे सवाल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रो. सैफुद्दीन सोज की नजरबंदी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि सैफुद्दीन सोज कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं। दरअसल, प्रो. सोज की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में नजरबंदी को लेकर एक याचिका दायर की थी। जिसको लेकर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने यह जवाब दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दिए गए जलाब पर उस वक्त सवाल उठने लगे जब प्रो. सोज का एक वीडियो सामने आया। आवास की दीवार से झाकते हुए प्रो. सोज ने प्रशासन के दावे को खंडित करते हुए कहा था कि वह 5 अगस्त, 2019 से नजरबंद हैं और कहीं बाहर नहीं जा सकते हैं।

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डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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