कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद भी जारी रहा आंदोलन तो क्या करेगी सरकार? जानें प्लान 'बी'
कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिकता पूरी होने के बावजूद भी अगर किसान आंदोलन जारी रहता है तो सरकार के लिए यह मुश्किल हो सकता है। हालांकि सरकार प्लान बी को लेकर भी चल रही है।
पिछले 1 साल से जारी किसान आंदोलन के मद्देनजर सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। सरकार की ओर से संसद सत्र में इस कानून को वापस लेने के लिए एक संबंधित बिल पेश किया जाएगा और कोशिश रहेगी कि इसी सप्ताह दोनों सदनों से इसे पास करा कर राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर बिल को वापस करने की औपचारिकता पूरी हो जाए। सरकार इस दिशा में आगे भी बढ़ रही है और बिल को लोकसभा में पास करा चुकी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बिल वापसी के बाद किसानों का आंदोलन खत्म हो जाएगा? दरअसल, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बावजूद किसान अभी भी आंदोलन कर रहे हैं और कई सारी मांगों को लेकर अब भी सरकार को चेता रहे हैं।
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क्या है सरकार का प्लान 'बी'
कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिकता पूरी होने के बावजूद भी अगर किसान आंदोलन जारी रहता है तो सरकार के लिए यह मुश्किल हो सकता है। हालांकि सरकार प्लान बी को लेकर भी चल रही है। माना जा रहा है कि संसद से औपचारिकताएं पूरी कर लेने के बाद सरकार किसान नेताओं के साथ बातचीत एक बार फिर से शुरू कर सकती है। इस साल 22 जनवरी तक 11 दौर की बातचीत सरकार और किसानों के बीच हुई थी। लेकिन 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद बातचीत का दरवाजा लगभग बंद हो गया। लेकिन अब सरकार का मानना है कि बातचीत शुरू होने के साथ ही किसानों से समझौता हो सकता है। किसान नेताओं की ओर से भी बातचीत की मांग लगातार की जा रही है। सूत्र यह बता रहे हैं कि सरकार जल्द ही किसान नेताओं को बातचीत का बुलावा भेज सकती है।
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एमएसपी को लेकर क्या है रणनीति
किसान अपनी कई मांगों को लेकर अब भी अड़े हुए हैं। इसमें एमएसपी गारंटी कानून की भी मांग है। हालांकि सरकार हड़बड़ी में इसको लेकर कोई भी कानून नहीं लाना चाहती है। इसके लिए सरकार ने पहले ही कह दिया है कि एमएसपी को लेकर कानूनी रास्ता तलाशने के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिसमें किसान प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसके अलावा किसानों के लगभग सभी मांगों को सरकार ने मान लिया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ कमेटी भर बना देने से किसान मान जाएंगे या फिर वह गारंटी कानून लेकर ही आंदोलन से पीछे हटेंगे।
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सरकार का अपना आकलन
इसके बावजूद भी अगर किसानों का आंदोलन जारी रहता है तो इसको लेकर सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा का अपना अलग आकलन है। सरकार और पार्टी दोनों को यह लगता है कि अगर किसानों की लगभग सारी मांगों को मान लेने के बावजूद भी उनका आंदोलन जारी रहता है तो भाजपा को नुकसान कम होगा। आंदोलन जारी रहने से किसानों की नीयत पर सवाल उठने लगेंगे और तब पार्टी नेताओं की ओर से यह संदेश दिया जाएगा कि जो पहले बात कही जा रही थी वह सही साबित होगी। भाजपा हमेशा कहती रही है कि किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित है यह सिर्फ चुनावी फायदे के लिए विरोध किया जा रहा है। आगामी पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के दौरान भाजपा अपने मंच से इस बात का बार-बार दावा कर सकती है।
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