जातिसूचक बस्तियों के नाम बदलने की तैयारी में उद्धव सरकार, पर ऐसा क्यों?
नाम को लेकर आपसी सहमति बनाना मुश्किल होता है। लेकिन सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि उद्धव ठाकरे इस काम को बखूबी कर सकते हैं। उनके इस काम से सामाजिक समरसता बढ़ेगी।
समय-समय पर महाराष्ट्र की महा विकास आघाड़ी सरकार ऐसे निर्णय लेती है जिस पर विवाद हो ही जाता है। वर्तमान में महाराष्ट्र की सरकार ने एक और बड़ा निर्णय लिया है। दरअसल, महाराष्ट्र की सरकार ने शहरों व गांवों में जातिसूचक बस्तियों के नाम को बदलने की तैयारी कर रही है। इसको लेकर मंत्रिमंडल की बैठक में भी फैसला ले लिया गया है। माना जा रहा है कि राज्य में ऐसी कई बस्तियां हैं जिनका नाम जातियों के नाम पर रखे गए हैं। उदाहरण के लिए महारावाड़ा, बोधवाड़ा, मांगवाड़ा, ढोर बस्ती, ब्राम्हणवाड़ा, माली गल्ली जैसे नाम है। नाम में बदलाव के बाद इन बस्तियों के नाम समता नगर, भीम नगर, ज्योतिनगर, शाहू नगर, क्रांति नगर ऐसे होंगे। इससे पहले राज्य सरकार ने दलित बस्ती सुधार योजना का नाम बदलकर अनुसूचित जाति व नव बौद्ध बस्ती विकास योजना किया था। साथ ही साथ सरकार ने डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर दलित मित्र पुरस्कार का भी नाम बदलकर डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार कर दिया है।
इसे भी पढ़ें: महाराष्ट्र में कोविड-19 के 521 नए मामले, 11 लोगों की मौत
अब सवाल यह उठता है कि आखिर महाराष्ट्र सरकार ऐसा क्यों कर रही है? दरअसल, अगर सरकारी प्रवक्ताओं की मानें तो वह साफ कह रहे हैं कि सरकार समाज में जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए यह कदम उठा रही है। लेकिन हम सिर्फ इस तर्क पर जाएं तो यह काम सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जातिसूचक बस्तियों के नाम लोगों की भावनाओं से जुड़े होते हैं। ऐसे में लोग इतनी आसानी से नाम बदलवाने को तैयार होंगे, इस पर थोड़ा संशय है। साथ ही साथ, कई बार हमने देखा है कि ऐसी परिस्थितियों में स्थानीय लोगों को नए नाम स्वीकार नहीं होते हैं। नाम को लेकर आपसी सहमति बनाना मुश्किल होता है। लेकिन सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि उद्धव ठाकरे इस काम को बखूबी कर सकते हैं। उनके इस काम से सामाजिक समरसता बढ़ेगी।
इसे भी पढ़ें: हैदराबाद चुनावों के असली विजेता ओवैसी हैं, मुस्लिम लीग बनने की राह पर है उनकी पार्टी
राजनीतिक विशेषज्ञ इसे एक नया रूप दे रहे हैं। दरअसल राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति में शिवसेना हिंदुत्व और सेकुलरिज्म के बीच सामंजस्य बैठाने की कोशिश में है। हिंदुत्व उसका पुराना एजेंडा रहा है तो वहीं सरकार में बने रहने के लिए सेकुलरिज्म का उसे सहारा लेना पड़ रहा है। ऐसे में भाजपा हिंदुत्व को लेकर उद्धव ठाकरे पर लगातार हमलावर है। भाजपा यह लगातार आरोप लगा रही है कि शिवसेना अपने मूलभूत एजेंडे को भूल कर सत्ता के लिए हिंदुओं के खिलाफ जा रही है। ऐसे में शिवसेना को लगता है कि अगर बस्तियों के नाम बदलकर कुछ जातियों को साथ ले तो हिंदुत्व से दूर जाने के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। खैर, आने वाले दिनों में शिवसेना के लिए परिस्थितियां कितनी चुनौती भरी रह सकती है यह देखना होगा।
अन्य न्यूज़