CAA को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सबरीमला प्रकरण के बाद न्यायालय करेगा सुनवाई
कपिल सिब्बल ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने इस मामले में अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। सिब्बल ने कहा कि इस मामले को सुनवाई के लिये जल्दी सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है ताकि यह निरर्थक नहीं हो।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सबरीमला प्रकरण में भेजे गये मामले में बहस पूरी होने के बाद सुनवाई की जायेगी। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने इस मामले में अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। सिब्बल ने कहा कि इस मामले को सुनवाई के लिये जल्दी सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है ताकि यह निरर्थक नहीं हो।
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अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि केन्द्र अगले कुछ दिन में अपना जवाब दाखिल करेगा।सिब्बल ने कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की आवश्यकता है। पीठ ने सिब्बल से कहा कि वह इस बारे में विचार करेगी और उसने होली के अवकाश के बाद इस मामले का उल्लेख करने की उन्हें अनुमति प्रदान कर दी। इस समय प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ सबरीमला मंदिर और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने के प्रचलन सहित अनेक धार्मिक मुद्दों पर फिर से गौर कर रही है। नागरिकता संशोधन कानून, जो 10 जनवरी को अधिसूचित किया गया, में अफगानिस्तान, पाकिस्तानऔर बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना की वजह से भागकर 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आये गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक-हिन्दू, सिख, बौध, जैन, पारसी और ईसाई- समुदायों के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
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शीर्ष अदालत ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 18 दिसंबर को इसकी वैधता पर विचार करने का निश्चय किया था लेकिन उसने इसके अमल पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद न्यायालय ने इस साल 22 जनवरी को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया था कि नागरिकता संशोधन कानून के क्रियान्वयन पर रोक नही लगायी जायेगी। साथ ही न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केन्द्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि त्रिपुरा और असम के साथ ही उप्र से संबंधित मामले को इससे अलग किया जा सकता है।
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