उच्चतम न्यायालय में केंद्र ने न्यायाधिकरण सुधार पर कानून का बचाव किया
केंद्र ने उच्चतम न्यायलय में कहा है, ‘‘संविधान में बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल केवल संवैधानिक संशोधन की वैधता का परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन जब किसी कानून की वैधता की बात आती है तो उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती है।’’
नयी दिल्ली| केंद्र ने न्यायाधिकरणों में पीठासीन और अन्य सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल जैसे मुद्दों का नियमन करने वाले न्यायाधिकरण सुधार कानून की वैधता का उच्चतम न्यायालय में बचाव किया है।
केंद्र ने कहा कि ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’’ कोई आधार नहीं है जिसका उपयोग कानूनों की जांच के लिए किया जा सकता है। न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के लिए केंद्र का बचाव इस तथ्य के मद्देनजर महत्व रखता है कि प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने संसद में चर्चा के बिना न्यायाधिकरण संबंधी विधेयक के पारित होने को ‘‘गंभीर मुद्दा’’ करार दिया था।
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मद्रास बार एसोसिएशन, कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य द्वारा अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के जवाब में केंद्र ने यह हलफनामा दायर किया है। हलफनामे में कहा गया है कि भले ही बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ हो, लेकिन यह किसी कानून की वैधता पर हमला करने का आधार नहीं है।
केंद्र ने कहा, ‘‘संविधान में बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल केवल संवैधानिक संशोधन की वैधता का परीक्षण करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन जब किसी कानून की वैधता की बात आती है तो उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं होती है।’’
केंद्र ने यह भी दलील दी कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कोई ऐसा आधार नहीं है जिसका उपयोग कानूनों के परीक्षण के लिए किया जा सकता है।
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