क्या मंदिरों को सरकार के ही अधीन रहना चाहिए: मद्रास उच्च न्यायालय ने पूछा
न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘मंदिरों के प्रशासन से संबंधित एक मौलिक मुद्दा भी है। क्या उन्हें सरकार के अधीन रहना चाहिए? क्या धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली सरकार को सभी धार्मिक संस्थानों के साथ समान व्यवहार नहीं करना चाहिए?’’
मदुरै (तमिलनाडु)| मद्रास उच्च न्यायालय ने पूछा है कि क्या सरकार को सभी धार्मिक संस्थानों के साथ समान व्यवहार नहीं करना चाहिए और क्या मंदिरों को उसके अधीन ही रहना चाहिए।
न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन ने यहां कहा है कि तमिलनाडु मंदिरों की भूमि है जहां मंदिरों ने हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा, ‘‘उनके रखरखाव के लिए दी गई भूमि को निजी हितों द्वारा हथिया लिया गया है।प्राचीन मूर्तियों की चोरी और विदेशों में तस्करी की गई है। मंदिर के कर्मचारियों को एक मामूली भुगतान किया जाता है। हजारों मंदिर पूरी तरह से उपेक्षा का सामना कर रहे हैं यहां तक कि पूजा-अर्चना भी नहीं हो रही है। उनके गौरव को वापस लाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।’’
न्यायाधीश ने बृहस्पतिवार को तिरुचिरापल्ली में श्रीरंगम के याचिकाकर्ता, कार्यकर्ता रंगराजन नरसिम्हन के खिलाफ दायर दो प्राथमिकी को खारिज करते हुए टिप्पणी की। नरसिम्हन पर मानहानि और कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए मामला दर्ज किया गया था। प्रतिवादियों में उद्योगपति वेणु श्रीनिवासन, पूर्व अध्यक्ष, श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर, श्रीरंगम के न्यासी बोर्ड और मंदिर के तत्कालीन कार्यकारी अधिकारी शामिल थे।
न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘मंदिरों के प्रशासन से संबंधित एक मौलिक मुद्दा भी है। क्या उन्हें सरकार के अधीन रहना चाहिए? क्या धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली सरकार को सभी धार्मिक संस्थानों के साथ समान व्यवहार नहीं करना चाहिए?’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता मेरे पास परामर्श के लिए नहीं आये है। वह न्याय की मांग करने आये है और बेहतर होगा कि मैं अपनी भूमिका उसी तक सीमित रखूं।’’
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने यह मानते हुए कि अभियोग को जारी रखने की अनुमति देना केवल कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, नरसिम्हन के खिलाफ प्राथमिकी रद्द कर दी।
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