देशद्रोह कानून: समीक्षा के लिए तैयार हुई केंद्र सरकार, SC से फिलहाल सुनवाई ना करने को कहा
केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देशद्रोह कानून (धारा 124ए) के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार किया जाएगा। ये पीएम मोदी द्वारा वर्तमान समय में इस औपनिवेशिक कानून की आवश्यकता के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश जारी करने के बाद आया है।
राजद्रोह कानून या देशद्रोह कानून ये वो कानून है जिसका नाम सुनकर ही न जाने कितने आंदोलनकारी, वक्ता और विरोधी नेता शिहर चुके हैं। ये वो कानून है जो हमेशा से ही चर्चा में रहा है। कई बार इस कानून में संशोधन की मांग उठ चुकी है तो कई बार इस कानून के प्रवाधानों को ज्यादा स्पष्ट करने की मांग उठी है। वहीं कुछ लोग अंग्रेजों के जमाने के इस कानून को रद्द कराने की मांग भी उठा चुके हैं। पिछले दिनों इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका दायक की गई थी। जिस पर कोर्ट में सुनवाई भी हुई थी। अब राजद्रोह से जुड़े इस कानून को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया गया है। केंद्र सरकार ने कोर्ट से राजद्रोह कानून पर पुर्नविचार करने की बात कही है। राजद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश की संप्रभुता बनाए रखने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।
राजद्रोह कानून पर केंद्र ने SC में क्या कहा?
केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देशद्रोह कानून (धारा 124ए) के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार किया जाएगा। ये पीएम मोदी द्वारा वर्तमान समय में इस औपनिवेशिक कानून की आवश्यकता के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश जारी करने के बाद आया है। सोमवार को सरकार ने अदालत से औपनिवेशिक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं करने और केंद्र द्वारा किए जाने वाले पुनर्विचार अभ्यास की प्रतीक्षा करने के लिए भी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख तय की थी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन पेज का हलफनामा दाखिल कर कहा है कि वह देश की संप्रभुता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के साथ-साथ पुराने औपनिवेशिक कानूनों को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र ने कहा कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, सरकार औपनिवेशिक बोझ को कम करने के लिए काम कर रही है।
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याचिका में क्या दी गई है दलील
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर मेजर जनरल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए (राजद्रोह) कानून में जो प्रावधान और परिभाषा दी गई है वह स्पष्ट नहीं है। इसके प्रावधान संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। इसके तहत अनुच्छेद-19 (1)(ए) में विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। साथ ही अनुच्छेद-19 (2) में वाजिब रोक की बात है। लेकिन राजद्रोह में जो प्रावधान है वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
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भारत में राजद्रोह कानून का इतिहास
एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही थे। भारतीय दंड संहिता को औपनिवेशिक भारत में 1860 में लागू किया गया था लेकिन इसमें राजद्रोह से संबंधित कोई धारा नहीं थी। इसे 1870 में इस आधार पर पेश किया गया था कि इसे गलती से मूल आईपीसी मसौदे से हटा दिया गया था। ब्रिटेन ने 2009 में देशद्रोह का कानून खत्म किया और कहा कि दुनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में है।
देशद्रोह की धारा 124ए क्या कहती है?
देश के खिलाफ बोलना, लिखना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो वो देशद्रोह कहलाएगी। अगर कोई संगठन देश विरोधी है और उससे अंजाने में भी कोई संबंध रखता है या ऐसे लोगों का सहयोग करता है तो उस व्यक्ति पर भी देशद्रोह का मामला बन सकता है। अगर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर मौलिक या लिखित शब्दों, किसी तरह के संकेतों या अन्य किसी भी माध्यम से ऐसा कुछ करता है। जो भारत सरकार के खिलाफ हो, जिससे देश के सामने एकता, अखंडता और सुरक्षा का संकट पैदा हो तो उसे तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है।
केदारनाथ बनाम बिहार सरकार
1962 में केदारनाथ बनाम स्टेट ऑफ बिहार केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। इस मामले में फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया से सहमति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ केस में व्यवस्था दी कि सरकार की आलोचना या फिर एडमिनिस्ट्रेशन पर कमेंट भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। बता दें कि बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज कर लिया था। लेकिन इस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। केदारनाथ सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने भी अपने आदेश में कहा था कि देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा या असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े। केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता।
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