जम्मू से बाहर के लोगों को भी मतदाता बनाने का आदेश वापस, कड़े राजनीतिक विरोध के बाद 24 घंटे में बदला गया फैसला
जम्मू और कश्मीर की हाल ही में अमित शाह ने यात्रा कि थी और इस दौरान उन्होंने ऐलान किया था कि राज्य में परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका हैं राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव करवाएं जाएंगे। अब राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर हैं।
जम्मू और कश्मीर की हाल ही में अमित शाह ने यात्रा कि थी और इस दौरान उन्होंने ऐलान किया था कि राज्य में परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका हैं राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव करवाएं जाएंगे। अब राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर हैं। इसी कड़ी को एक कदम और आगे बढ़ाते हुए जम्मू की जिला उपायुक्त और जिला निर्वाचन अधिकारी अवनी लवासा ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि जम्मू में जो लोग एक साल से ज्यादा समय से रह रहे हैं वह अपना पहचान पत्र या आवास प्रमाण पत्र दिखाकर मतदाता सूची में शामिल हो सकेंगे और वोट भी डाल सकेंगे। ऐसे में इस आदेश का राज्य में कड़ा विरोध होने लगा। नेशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी ने प्रशासन के इस आदेश को लेकर केंद्र सरकार पर आपोर लगाया कि सरकार मन मानी कर रही हैं और राज्य में गैर-स्थानीय लोगों को बसाने की प्लानिक कर रही हैं।
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पहला आदेश जारी होने के 24 घंटे के अंदर फैसला वापस
आदेश का क्षेत्रीय दलों ने तत्काल विरोध किया। फैसले को 24 घंटे के अंदर वापस ले लिया गया हैं। यानी कि अब एक साल से ज्यादा समय से रह रहे लोगों का वोट देने का अधिकार नहीं होगा। पुराने नियमों के अनुसार ही वोट देने का अधिकार कश्मीरी प्राप्त कर सकेंगे।
Letter issued by Deputy Commissioner of Jammu for acceptance of documents for registration as electors authorizes all tehsildars to issue certificate of residence to people residing in Jammu "for more than one year." pic.twitter.com/V958ZAQilm
— ANI (@ANI) October 12, 2022
क्या थी पहले आदेश की परिस्थितियां?
गैर-स्थानीय लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति देने का मुद्दा अगस्त से चल रहा है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) हिरदेश कुमार ने घोषणा की थी कि गैर-स्थानीय लोग, जिनमें कर्मचारी, छात्र, मजदूर या बाहर का कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं, वोटिंग लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं और मतदान कर सकते हैं। पहले के आदेश के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो जम्मू जिले में एक वर्ष से अधिक समय से रह रहा है, आधार कार्ड, पानी/बिजली/गैस कनेक्शन, बैंक पासबुक, पासपोर्ट, पंजीकृत भूमि विलेख आदि जैसे दस्तावेजों का उपयोग करके मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकता है।
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इस फैसले का केंद्र शासित प्रदेश के राजनीतिक नेताओं ने तुरंत विरोध किया। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि भाजपा "जम्मू-कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं से समर्थन नहीं मिलने के बारे में असुरक्षित है कि उसे सीटें जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात करने की आवश्यकता है"। 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद पहली बार चुनावी संशोधन किया जा रहा है।
2022 में विधानसभा चुनाव नहीं
अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन को लेकर विवादों के साथ, जम्मू और कश्मीर के निवासियों को विधानसभा चुनाव के बिना एक और साल बीत जाएगा। नवंबर 2018 से केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा के बिना रहा है, जब पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद तत्कालीन राज्यपाल सत्य पाल मलिक द्वारा विधानसभा भंग कर दी गई थी।
भाजपा द्वारा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार से हटने के बाद जून 2018 में केंद्र शासित प्रदेश में राज्यपाल शासन लगाया गया था।
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