Uttar Pradesh की ऐसी दो सीटें जहां मोदी-योगी की एक नहीं चली
खीरी में पहले आम चुनाव से अब तक सबसे ज्यादा नौ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा, एक-एक बार जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) ने जीत दर्ज कराई है। 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के रामेश्वर प्रसाद नेवरिया सांसद निर्वाचित हुए।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में एक बार फिर मोदी-योगी मैजिक चलता दिख रहा है। बीजेपी का शायद ही कोई ऐसा उम्मीदवार होगा, जो बिना इस मैजिक के चुनाव जीतने की कल्पना कर सकता हो, लेकिन दो लोकसभा सीटें ऐसी भी हैं जहां मोदी-योगी पर क्षेत्रीय नेता भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। इसमें से एक लखीमपुर खीरी की और दूसरी कैसरगंज लोकसभा सीट है, जहां के मौजूदा सांसदों का टिकट काटने का साहस बीजेपी आलाकमान भी नहीं कर पाया। इसमें से एक खीरी सीट पर 13 मई और दूसरी कैसरगंज लोकसभा सीट पर 20 मई को मतदान होना है। पहले बात खीरी लोकसभा सीट की,जहां बीजेपी आलाकमान पर मौजूदा सांसद और प्रत्याशी बदलने का काफी दबाव था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इसी के चलते लगातार दो बार से जीतकर केंद्र में मंत्री का पद प्राप्त करने वाले अजय कुमार मिश्र ‘टेनी” चौथी बार मैदान में हैं। इस बार वह क्या तीसरी बार भी चुनाव जीतकर कीर्तिमान बनाएंगे? यह सवाल खीरी की राजनीति को मथ तो रहा है, लेकिन इससे बेफिक्र टेनी और उनके समर्थक केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से चुनावी लाभ के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं। टेनी उस समय विवाद में आ गये थे जब उनके बेटे ने आंदोलन कर रहे किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी थी, जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई थी।
दूसरी ओर, विपक्षी दल जातीय धुव्रीकरण कर अपने पक्ष में समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं, विशेषकर सपा-कांग्रेस गठबंधन। सपा प्रत्याशी के उत्कर्ष वर्मा ‘मधुर’ को सबसे बड़ा भरोसा अपनी बिरादरी (कुर्मी) के 18 प्रतिशत वोट पर है। यहां जातीय गणित में 4.75 लाख ओबीसी, 3.25 लाख मुस्लिम, 4.25 लाख दलित मतदाता हैं। 16 प्रतिशत ब्राह्मण हैं और सिख मतदाता भी ठीकठाक हैं। ओबीसी में कुर्मी बिरादरी के मतदाता ही इस सीट पर निर्णायक भूमिका अदा करेंगे। उधर, बसपा 1989 से इस सीट से दिल्ली पहुंचने की राह देख रही है। बसपा ने अमरोहा के रहने वाले अंशय सिंह कालरा को मौका दिया है। वह पार्टी के कैडर वोट, युवाओं और हर उस शोषित वंचित मतदाताओं के बल पर मैदान में होने का दावा कर रहे हैं जिनको सरकार ने अब तक हाशिए पर रखा।
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खीरी में पहले आम चुनाव से अब तक सबसे ज्यादा नौ बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा, एक-एक बार जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) ने जीत दर्ज कराई है। 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस के रामेश्वर प्रसाद नेवरिया सांसद निर्वाचित हुए। 1957 में प्रसोपा से कुंवर खुशवंत राय सांसद चुने गए। 1962, 1967 व 1972 तक लगातार कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा जीते। 1977 में जनता पार्टी के सुरथ बहादुर शाह ने जीत दर्ज की। 1980 में फिर कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा जीते, मगर कुछ दिन बाद उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी ऊषा वर्मा कांग्रेस के टिकट पर तीन बार 1980, 1985 और 1989 में सांसद चुनी गईं। 1991 और 1996 में लगातार दो बार भाजपा के जीएल कनौजिया सांसद बने। बाल गोविंद वर्मा के पुत्र रवि प्रकाश वर्मा ने सपा से लगातार तीन बार 1998, 1999 व 2004 में जीत दर्ज कराई। 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी जफर अली नकवी ने अजय कुमार मिश्रा “टेनी” को हराया था। 2014 व 2019 में टेनी सांसद बने।
खीरी जिले की सभी आठ विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। इसके अलावा चार नगर पालिकाओं व आठ नगर पंचायत में भी भाजपा ज्यादातर जगह काबिज है और लगभग सभी ब्लाकों पर भी। 2019 के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत 64 प्रतिशत से ज्यादा था जो 2014 के चुनाव से ज्यादा आगे नहीं निकल सका। खीरी की जनता से जब पूछा जाता है तो उनका कहना रहता है कि इस सरकार में गरीबों की ओर ध्यान दिया गया है। कानून व्यवस्था बेहतर है। वैसे तो माहौल सब राममय है लेकिन दो पार्टियां मिलकर एक साथ लड़ रही हैं तो इसका असर चुनाव में दिखाई पड़ेगा। विपक्ष पहले से मजबूत है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन जिस तरह से गन्ना का मूल्य बढ़ा है, किसानों के लिए फायदेमंद है। बाकी तो मतदाता खामोश है और निर्णय मतदान के दिन ही लेगा।
20 मई को पांचवें चरण में कैसरगंज लोकसभा सीट पर मतदान होना हैं। यहां से बीजेपी ने अपने बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह का टिकट तो काट दिया, लेकिन वह इतना साहस नहीं जुटा सकी की बृजभूषण के परिवार के किसी सदस्य की जगह किसी दूसरे प्रत्याशी को मैदान में उतार कर जीत हासिल कर पाती। इसलिये आलाकमान ने काफी माथापच्ची के बाद उनके बेटे को ही टिकट थमा दिया।
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