अरविंद केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत के सियासी मायने को ऐसे समझिए

Arvind Kejriwal
ANI
कमलेश पांडे । May 11 2024 1:31PM

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शर्त रखी थी कि अगर चुनाव प्रचार के लिए जमानत दी जाती है तो वह मुख्यमंत्री के तौर पर काम नहीं करेंगे और न ही किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर करेंगे। फिर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल भिजवाने वाली ईडी परेशान हो गई।

सुप्रीम कोर्ट के एक साहसिक निर्णय से जेल में बंद भारतीय राजनेताओं के चुनावों के दौरान बाहर आने और चुनाव प्रचार में अपनी भागीदारी जताने का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। समझा जाता है कि कोर्ट के इस उदार पहल से भारत में एक नई सियासी क्रांति का आगाज हो सकता है। लिहाजा, इस निर्णय के सफेद और स्याह पक्ष पर चर्चा करने से पहले यह बता दें कि दिल्ली एक्साइज पॉलिसी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की जांच का सामना कर रहे और पिछले 50 दिन से जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने आगामी एक जून 2024 तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी है। 

ऐसा इसलिए कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति 2021-22 में कथित अनियमितताओं से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में विगत 21 मार्च 2024 को ईडी ने गिरफ्तार किया था। ईडी के इस निर्णय की तब बहुत आलोचना हुई थी, क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ही उन्हें गिरफ्तार किया गया था, जो भारतीय राजनीतिक इतिहास की अनोखी घटना बन चुकी है। इसी मामले में गत 8 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की।

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सुनवाई के दौरान ही न्यायमूर्ति खन्ना ने प्रवर्तन निदेशालय के वकील अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा था कि वह केजरीवाल को अंतरिम राहत पर शुक्रवार को आदेश पारित कर सकते हैं। इससे एक दिन पहले भी यानी गत 7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा था कि मामले की सुनवाई जल्दी पूरी होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में कोर्ट लोकसभा चुनाव को देखते हुए केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने पर विचार कर सकता है। 

हालांकि, कोर्ट ने शर्त रखी थी कि अगर चुनाव प्रचार के लिए जमानत दी जाती है तो वह मुख्यमंत्री के तौर पर काम नहीं करेंगे और न ही किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर करेंगे। फिर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल भिजवाने वाली ईडी परेशान हो गई। आनन-फानन में ईडी ने एक हलफनामा दायर करके उनके अंतरिम जमानत का विरोध किया और कुछ अकाट्य दलीलें भी दी। जिस पर केजरीवाल की लीगल टीम ने भी कड़ी आपत्ति जताई। जिसके दृष्टिगत सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की सभी दलीलों को दरकिनार करते हुए केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी।

यही वजह है कि जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मिलने के सियासी और न्यायिक मायने तलाशे जा रहे हैं। क्योंकि यह एक असाधारण न्यायिक आदेश है, जो अब बौद्धिक विमर्श का मुद्दा भी बन चुका है। समझा जा रहा है कि कोर्ट के ताजा निर्देश से जहां देश में जनतांत्रिक भावनाओं को बल मिलेगा, वहीं भ्रष्टाचार और अपराध में शामिल राजनेताओं का मनोबल भी बढ़ेगा। क्योंकि जेल से बाहर रहने का एक अमोघ कानूनी हथियार कोर्ट के फैसले से उन्हें मिल चुका है। लिहाजा, आने वाले दिनों में जेल में बंद भारतीय राजनेताओं के द्वारा चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांगे जाने के मामले बढ़ेंगे।

बता दें कि ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि केजरीवाल को किसी भी तरह की विशेष राहत देकर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दिया जाना समानता और कानून के शासन के लिए अभिशाप जैसा होगा। इससे ऐसी नजीर कायम होगी कि सभी अपराध करने वाले अनैतिक राजनेता चुनाव की आड़ में जांच को नजरअंदाज करेंगे, चाहे वो पंचायत चुनाव हो, नगरपालिका चुनाव हो, विधानसभा चुनाव हो या फिर आम चुनाव। यदि वे गिरफ्तार किए जाते हैं तो प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांगेंगे।

दो कदम आगे की सोचते हुए उसने तर्क दिया कि आजतक किसी भी राजनेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई, चाहे जेल में बंद वह व्यक्ति स्वयं भी प्रत्याशी क्यों न रहा हो, जबकि केजरीवाल तो उम्मीदवार भी नहीं हैं। ऐसे भी कई उदाहरण हैं कि अपराधी जेल से ही चुनाव लड़े और जीत भी गए, लेकिन उन्हें कभी इस आधार पर जमानत नहीं मिली। वैसे भी चुनाव प्रचार न तो संवैधानिक अधिकार है और न ही मौलिक अधिकार। लिहाजा ऐसा होने से कानून का उल्लंघन करने वाले हर अपराधी को राजनीतिज्ञ बनने और वर्ष भर प्रचार के मोड में रहने का प्रोत्साहन मिलेगा। राजनेता आम आदमी से ऊपर होने और विशेष दर्जे का दावा नहीं कर सकता।

ईडी ने अपनी दलील में चुनाव प्रचार के लिए केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि मतदान का अधिकार, जिसे कोर्ट ने संवैधानिक अधिकार माना है, वह भी हिरासत के दौरान नहीं रहता। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) जेल में बंद व्यक्ति के मतदान के अधिकार में कटौती की बात करती है। यह चीज देखने लायक है कि पिछले पांच सालों में करीब 123 चुनाव हुए हैं और अगर किसी राजनेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाने लगे तो किसी भी राजनेता को गिरफ्तार करके जेल में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि चुनाव तो सालभर चलने वाली गतिविधि है। हर राजनीतिज्ञ हर स्तर पर यह दलील दे सकता है कि अगर उसे जमानत नहीं दी गई तो उसे न भरपाई होने वाला नुकसान होगा।

ईडी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इस समय सिर्फ पीएमएलए कानून में ही बहुत से नेता जेल में हैं। उनके मामलों को जांचने के बाद सक्षम अथॉरिटी ने उनकी हिरासत को सही ठहराया है। बहुत से नेता पीएमएलए के अलावा अन्य अपराधों में जेल में होंगे। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के साथ विशेष व्यवहार करने और उनकी विशेष मांग स्वीकार करने का कोई कारण नहीं है। 

उसने तो यहां तक कह दिया कि केजरीवाल ने कई समन के बाद भी जांच एजेंसी के सामने पेश न होने के पीछे पांच राज्यों में चुनाव का यही आधार दिया था। ऐसे में अगर कोर्ट ने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी तो उनके द्वारा आप के स्टार प्रचारक होने के आधार पर प्रचार के लिए समन को नजरअंदाज करने का कारण बनाये जाने पर न्यायिक मुहर लग जाएगी। साथ ही प्रचार के लिए अन्तरिम जमानत से प्रचार की इच्छा रखने वाले नेताओं का एक अलग वर्ग बन जायेगा। 

हालांकि कोर्ट ने ईडी की एक न सुनी और अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देकर यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र को किंतु-परन्तु के आधार पर नहीं, बल्कि स्पष्ट और पारदर्शी नीतियों के आधार पर ही चलाया जाएगा। संभव है कि अगली संसद इससे सबक लेगी और नेताओं के लिए आवश्यक कानून बनाएगी या फिर पूर्व की विसंगतियों को दूर करेगी। 

यह स्वाभाविक सवाल है कि जब चुनावी मौसम हो और दल विशेष का प्रमुख नेता ही जेल में हो तो उसकी पार्टी को सही जनादेश कैसे मिल पाएगा। शायद इसलिए कोर्ट ने अंतरिम जमानत की नई राह दिखा दी और सियासी नकेल अपने हाथों में रख ली।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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