Patna Meeting से पहले Kejriwal, Mayawati और Jayant Chaudhary का रुख देखकर Nitish Kumar की परेशानी बढ़ी
जहां तक मायावती की बात है तो आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष ने कहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई यह बैठक ‘दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए’ की कहावत को चरितार्थ करती है।
पटना में विपक्षी दलों की बैठक से पहले सियासत गर्मा गयी है। एक एक कर विपक्षी नेता भाजपा को घेरने के लिए बयान दे रहे हैं तो दूसरी ओर पटना में भाजपा विरोधी दलों के नेताओं का पहुँचना शुरू भी हो गया है। गुरुवार को जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पटना पहुँचीं। विपक्ष की एक अन्य बड़ी महिला नेत्री मायावती हालांकि इस बैठक से दूरी बनाये हुए हैं और उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी ने भी ऐन मौके पर इस बैठक से दूरी बना ली है तो दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने शर्त रख दी है कि पहले कांग्रेस दिल्ली में अध्यादेश के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करे तभी वह बैठक में भाग लेंगे। इस बीच, भाजपा और एनडीए में शामिल दलों के नेताओं के भी बयान सामने आये हैं जोकि इस बैठक का उपहास उड़ाने से संबंधित रहे। इस बीच, बताया जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल और जयंत चौधरी का रुख देखकर नीतीश कुमार कुछ परेशान हैं क्योंकि उन्होंने दिल्ली में केजरीवाल से मुलाकात कर इस बैठक के लिए उन्हें निमंत्रण दिया था। खुद केजरीवाल ने भी पटना आकर नीतीश से मुलाकात की थी। यही नहीं नीतीश की जयंत से भी बात हुई थी लेकिन बैठक से ऐन पहले नेताओं के रुख में परिवर्तन ने नीतीश की परेशानी बढ़ाई है।
मायावती का बयान
जहां तक मायावती की बात है तो आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष ने कहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई यह बैठक ‘दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए’ की कहावत को चरितार्थ करती है। हम आपको बता दें कि मायावती को इस बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया है। बैठक में हिस्सा लेने वाली पार्टियों पर निशाना साधते हुए बसपा प्रमुख ने कहा कि विपक्षी दलों के रवैये को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि वे उत्तर प्रदेश में अपने लक्ष्य को लेकर गंभीर हैं। मायावती ने कहा, “उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों को चुनावी सफलता की कुंजी माना जाता है, लेकिन विपक्षी दलों के रवैये से ऐसा नहीं लगता है कि वे राज्य में अपने लक्ष्य के प्रति सही मायने में चिंतित और गंभीर हैं। उचित प्राथमिकताओं के बिना लोकसभा चुनाव की तैयारियां क्या यहां हकीकत में जरूरी बदलाव ला पाएंगी?” उन्होंने ट्वीट किया, “महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन, अशिक्षा, जातीय द्वेष, धार्मिक उन्माद/हिंसा आदि से जूझ रहे देश में बहुजन के त्रस्त हालात से स्पष्ट है कि भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों में परम पूज्य बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के मानवतावादी समतामूलक संविधान को सही तरीके से लागू करने की क्षमता नहीं है।” बसपा प्रमुख ने कहा, “ऐसे में नीतीश कुमार द्वारा 23 जून को विपक्षी दलों की पटना में बुलाई गई बैठक ‘दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए’ की कहावत को ज्यादा चरितार्थ करती है।” उन्होंने कहा, “वैसे इस तरह की पहल करने के पहले ये पार्टियां अगर अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को ध्यान में रखकर अच्छी नीयत से जनता में खुद के प्रति विश्वास जगाने का प्रयास करतीं, तो बेहतर होता। ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ आखिर कब तक चलेगा?”
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उधर, जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, “हमने सिर्फ उन दलों को आमंत्रित किया है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ लड़ने को तैयार हैं।” त्यागी ने कहा, “बसपा कह रही है कि वह गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। ऐसे में हम अपना निमंत्रण क्यों बर्बाद करें।”
रालोद के रुख में बदलाव!
इसके अलावा, राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रमुख जयंत चौधरी ने पूर्व निर्धारित पारिवारिक कार्यक्रम के चलते बिहार में होने वाली विपक्षी नेताओं की बैठक में शामिल होने में असमर्थता जतायी है। रालोद ने ट्वीट कर जयंत चौधरी का 12 जून को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखा पत्र जारी किया है। चौधरी के लिखे पत्र में कहा गया है, 'आगामी 23 जून 2023 को पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक में अपने पूर्व निर्धारित पारिवारिक कार्यक्रम के चलते, मैं भाग नहीं ले सकूँगा।' चौधरी ने कहा, 'मुझे विश्वास है कि यह बैठक विपक्षी एकता की राह में एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध होगी। उद्देश्य की सफलता के लिए शुभकामनाएं।' देखा जाये तो उत्तर प्रदेश के तीन प्रमुख विपक्षी दलों में से सिर्फ समाजवादी पार्टी ही बैठक में जा रही है। बसपा और रालोद इस बैठक में नहीं आ रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस का बयान
उधर, तृणमूल कांग्रेस का मानना है कि पटना में होने जा रही विपक्षी दलों की बैठक 2024 के आम चुनाव से पहले ‘‘एक अच्छी शुरुआत’’ है। तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर ‘‘अलोकतांत्रिक एवं तानाशाही नीतियों’’ का आरोप लगाते हुए इनके खिलाफ भाजपा विरोधी दलों के एकजुट होने के महत्व पर जोर दिया। तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी आज पटना पहुँच गयीं और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की। विपक्षी दलों की बैठक के लिए ममता बनर्जी के साथ तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी आये हैं। ममता ने लालू यादव से मुलाकात कर अपनी खुशी जाहिर की।
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी पटना में विपक्षी दलों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पहुंचीं हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा पटना में हवाई अड्डे पर पत्रकारों के किसी भी सवाल का जवाब दिए बिना सीधे उस गेस्ट हाउस चली गईं, जहां आमंत्रित नेताओं को ठहराया जा रहा है।
तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया
इस बीच, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव राष्ट्रीय राजधानी की नौकरशाही पर नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश को 23 जून को होने वाली गैर भाजपा दलों की बैठक के एजेंडे में शीर्ष पर रखने की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मांग को लेकर पूछे गए सवालों का सीधा जवाब देने से बचते नजर आए। तेजस्वी यादव ने कहा, “विपक्षी नेताओं की यह पहली बैठक नहीं है और न ही यह आखिरी होगी। अलग-अलग राय रखने वाले नेता एक साथ मिलने पर सहमत हुए हैं और वे सभी उन मुद्दों को उठाएंगे जिन्हें वे गंभीर मानते हैं। इसमें कोई समस्या नहीं है।”
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