Matrubhoomi: क्या है चीनी का इतिहास, गन्ने से बहुत मुश्किल से तैयार किया जाता था Sugar

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निधि अविनाश । Apr 21 2022 2:58PM

2 हजार साल बाद गन्ने की खेती इंडोनेशिया, फिलीपींस और उत्तर भारत तक पहुंच गया। चीनी की शुरूआत 8वीं शताब्दी में की गई। गन्ने की जानकारी के बारे में बताते हुए अंग्रेज़ी वेबसाइट च्विंगकेन के मुताबिक, 1520 तक गन्ने की खेती बढ़ती चल गई और 1535 में उत्तरी अमेरिकी में पहली चीनी मिल की स्थापना की।

सुबह की चाय से लेकर मिठाई तक में चीनी की मिठास होती है। जानकारी के लिए बता दें कि चीनी गन्ने से तैयार होता है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा कि आखिर गन्ने से चीनी बनाई कैसे गई और सबसे पहले गन्ने उगाए कहां गए थे? आज हम आपको बताएंगे गन्ने का इतिहास और गन्ने से चीनी बनने की कहानी के बारे में। सबसे पहले आपको बता दें कि गन्ने की खेती आठ हजार साल पहले दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में न्यू गिनी आइलैंड पर हुई थी। 2 हजार साल बाद गन्ने की खेती  इंडोनेशिया, फिलीपींस और उत्तर भारत तक पहुंच गया। चीनी की शुरूआत 8वीं शताब्दी में की गई। गन्ने की जानकारी के बारे में बताते हुए अंग्रेज़ी वेबसाइट च्विंगकेन के मुताबिक, 1520 तक गन्ने की खेती बढ़ती चल गई और 1535 में उत्तरी अमेरिकी में पहली चीनी मिल की स्थापना की। धीरे-धीरे गन्ने की खेती पेरू, ब्राजील, कोलम्बिया और वेनेजुएला तक फैलने लगी। 1600 तक अमेरिका के कई हिस्सों में चीनी का उत्पादन दुनिया का सबसे बड़ा उघोग बन गया था। 

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चीनी बिकती थी बहुत मंहगी

आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन इस दौरान चीनी की कीमत काफी मंहगी थी। महारानी एलिजाबेथ अपनी मेज पर एक चीनी का कटोरा पास रखती थीं और रोजोना खाने में इस्तेमाल करती थीं। इससे वह यह साबित करती थी कि वह कितनी ज्यादा धनवान हैं।

कैसे तैयार होती थी चीनी

चीनी उस समय ईंट या पत्थर की भट्टियों में तैयार किए जाते थे। हर भट्टी के ऊपर  तांबे की सात केतली लगाए जाती थी और हर केतली पहले वाले से छोटी और ज़्यादा गर्म होती थी। गन्ने का रस सबसे बड़ी केतली में होता था, जो गर्म होता रहता था और इसमें नींबू डालकर अशुद्धियां निकाली जाती थीं। इसी में जो झाग बनता था उसे हटाया जाता था और फिर ऊपर वाली केतलियों में भेजा जाता था।आखिरी केतली में पहुंचते हुए गन्ने का रस एक सिरप में बदल जाता था।फिर इसे ठंडा किया जाता थाऔर उसके बाद इन्हें टुकड़ों में बदला जाता था और अंतिम में लकड़ी के बैरल में इसे इकट्ठा करके इसे साफ चीनी बनाने के लिए क्योरिंग हाउस में भेज दिया जाता था। पश्चिमी अफ्रीका के गुलाम जब 1833 में आजाद हुए तो उन्होंने ब्रिटेन के गन्ने के खेतों में काम करना बंद कर दिया जिसके बाद गन्ने के खेत के मालिकों को नए मजदूरों की जरूरत पड़ गई और ये मजदूर कम दामों में चीन, पुर्तगाल और भारत में मिले। इन मजदूरों को एक समय के लिए अनुबंधित करके ले जाया जाता था।मजबूर श्रम, राष्ट्रीय अभिलेखागार, ब्रिटिश सरकार की 2010 की रिपोर्ट के मुताबिक, 1836 में भारत का मज़दूरों से भरा हुआ पहला जहाज़ इंग्लैंड गया था।

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भारत पहला देश

गन्ने का रस निकालने और क्रिस्टल प्राप्त करने के लिए उबालने की प्रक्रिया के बाद चीनी का उत्पादन शुरू करने वाला भारत पहला देश था। मूल रूप से लोग गन्ने की मिठास निकालने के लिए उसे कच्चा चबाते थे। भारतीयों ने लगभग 350 ईस्वी में गुप्त वंश के दौरान चीनी को क्रिस्टल बनाने की खोज की।1950-51 में भारत सरकार ने गंभीर औद्योगिक विकास योजनाएं बनाईं और चीनी के उत्पादन और खपत के लिए कई लक्ष्य निर्धारित किए। सरकार की इन योजनाओं ने अपनी पंचवर्षीय योजनाओं में चीनी उद्योग के लिए लाइसेंस और किस्त क्षमता का अनुमान लगाया। भारत चीनी और गन्ने के मूल घर के रूप में जाना जाता है।आज भारत ब्राजील के बाद गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। वर्तमान में 70 टन प्रति हेक्टेयर की औसत उपज के साथ गन्ने के लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर भूमि है।भारत चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें पारंपरिक गन्ना चीनी, खांडसारी और गुड़ शामिल हैं, जो कच्चे मूल्य के 26 मिलियन टन के बराबर है, इसके बाद ब्राजील 18.5 मिलियन टन के साथ दूसरे स्थान पर है। सफेद क्रिस्टल चीनी के मामले में भी, भारत पिछले 10 वर्षों में से 7 में नंबर 1 स्थान पर है। 

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