सीबीआई जांच के आदेश के बाद महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने दिया इस्तीफा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह द्वारा लगाए गए महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की 15 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह द्वारा लगाए गए महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की 15 दिनों के भीतर प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था। जांच के आदेश के बाद अनिल देशमुख के इस्तीफे की मांग तेज हो गयी थी जिसके बाद कई राजनीतिक दल राज्य गृह मंत्री का इस्तीफा मांग रहे थे। अब ताजा जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। राकांपा नेता और मंत्री नवाब मलिक ने बताया कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस्तीफा दिया है। इस बात की जानकारी अनिल देशमुख ने अपनी एक पोस्ट के जरिए भी कर दी है। उन्होंने मराठी भाषा में अपना त्यागपत्र सोशल मीडिया पर शेयर किया है। जिसमें उन्होंने उद्धव ठाकरे को अपना इस्तीफा सौंपा हैं।— ANIL DESHMUKH (@AnilDeshmukhNCP) April 5, 2021
परम बीर सिंह के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए, मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि अनिल देशमुख गृह मंत्री थे और पुलिस द्वारा कोई निष्पक्ष जांच नहीं की जा सकती थी। पुलिस के तबादलों और पोस्टिंग में भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक "असाधारण" और "अभूतपूर्व" मामला था जिसने एक स्वतंत्र जांच का उल्लंघन किया था। सीबीआई के निदेशक को प्रारंभिक जांच करने की अनुमति है। इस तरह की प्रारंभिक जांच कानून के अनुसार की जानी चाहिए और 15 दिनों के भीतर इसका निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए। एक बार प्रारंभिक जांच पूरी हो जाने के बाद, निदेशक सीबीआई (वसीयत) आगे की कार्रवाई के लिए (निर्णय पर) विचार होगा।
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अदालत ने कहा, "हम मानते हैं कि यह अदालत के समक्ष एक अभूतपूर्व मामला है ... देशमुख गृह मंत्री हैं जो पुलिस का नेतृत्व करते हैं ... एक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए ... लेकिन, सीबीआई को तुरंत एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने सभी याचिकाओं का सोमवार को निस्तारण कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा, “सीबीआई के निदेशक को प्रारंभिक जांच करने की अनुमति है। ऐसी प्रारंभिक जांच कानून के अनुरूप और 15 दिन के भीतर कराने का आदेश दिया जाए। एक बार प्रारंभिक जांच पूरी हो जाए तो आगे की कार्रवाई का फैसला सीबीआई निदेशक के विवेक पर होगा।” उच्च न्यायालय ने बुधवार को पूरे दिन इन याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने सोमवार को कहा, “हम इस बात पर सहमत हैं कि अदालत के सामने आया यह अभूतपूर्व मामला है..देशभुख गृह मंत्री हैं जो पुलिस का नेतृत्व करते हैं....स्वतंत्र जांच होनी चाहिए...लेकिन सीबीआई को तत्काल प्राथमिकी दर्ज करने की जरूरत नहीं है।”
गौरतलब है कि 25 मार्च को सिंह ने देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच का अनुरोध करते हुए आपराधिक पीआईएल दाखिल की थी जिसमें उन्होंने दावा किया कि देशमुख ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे समेत अन्य पुलिस अधिकारियों को बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा। शेष याचिकाएं भी उसी वक्त के आस-पास दायर की गईं थी। मंत्री ने इन आरोपों से इनकार किया है। सिंह के वकील विक्रम नानकनी ने तर्क दिया कि समूचा पुलिस बल हतोत्साहित था और नेताओं के हस्तक्षेप के कारण दबाव में काम कर रहा था।
अदालत ने इस पर पूछा कि सिंह को अगर देशमुख के कथित कदाचार की जानकारी थी तो उन्होंने मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कराई। याचिकाकर्ताओं में से एक, पाटिल ने अदालत को बताया कि उन्होंने सिंह और देशमुख दोनों के खिलाफ स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। राज्य सरकार का पक्ष रख रहे महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत से याचिकाएं रद्द करने का अनुरोध किया। सिंह ने शुरू में उच्चतम न्यायालय का रुख कर आरोप लगाया था कि देशमुख के “भ्रष्ट आचरण” की शिकायत मु्ख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और अन्य वरिष्ठ नेताओं से करने के बाद उन्हें मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से स्थानांतरित कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने मामले को काफी गंभीर बताया लेकिन सिंह को उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा।
सिंह ने फिर पीआईएल उच्च न्यायालय में दाखिल की और देशमुख के खिलाफ अपने आरोपों को दोहराते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता के खिलाफ सीबीआई से “तत्काल एवं निष्पक्ष” जांच कराने का अनुरोध किया। महाराष्ट्र में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की गठबंधन की सरकार है।
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