काशी विश्वनाथ धाम से खास नाता है महारानी अहिल्या बाई का, जाने काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

 Kashi Vishwanath Dham

ही वजह है कि भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए मंदिर प्रांगण में अहिल्याबाई की मूर्ति लगाने का फैसला किया है। काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़े काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी कहते हैं, आचार्य नारायण भट्ट के निर्देशन में 1777 से लेकर 1780 में बाबा विश्वनाथ की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी।

काशी विश्वनाथ धाम और बनारस एक बार फिर चर्चा में है। और इस चर्चा का कारण 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करना है। 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों काशी विश्वनाथ का लोकार्पण अद्भुत और अकल्पनीय होगा। प्रधानमंत्री के हाथ से लोकार्पण होने वाले काशी विश्वनाथ धाम के पहले चरण का काम शुक्रवार को पूरा हो गया। 33 महीने बाद धाम से मशीनें बाहर निकाल दी गईं। हालांकि  कार्यदायी संस्था पीएसपी ने धाम के फर्निशिंग के लिए 12 घंटे का अतिरिक्त समय मांगा है। मंदिर प्रशासन धाम को 12 दिसंबर को हैंड ओवर कर लेगा।  इस मंदिर प्रांगण में लगाई जाने वाली एक मूर्ति चर्चा का विषय बनी हुई है।  यह मूर्ति इंदौर की महारानी  अहिल्याबाई की मूर्ति है। जिसे मंदिर के प्रांगण में लगाया जाएगा। आइए जानते हैं कौन थी महारानी अहिल्याबाई और क्या था उनका काशी विश्वनाथ धाम से जुड़ाव?

काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान है। हिंदू धर्म में काशी विश्वनाथ का अधिक महत्व है। कहते हैं काशी तीनों लोकों में सबसे न्यारी नगरी है जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। लोगों की मान्यता है कि जिस जगह ज्योतिर्लिंग स्थापित है वहां लोप नहीं होता और वह जगह जस की तस बनी रहती है।

इंदौर की महारानी ने कराया था निर्माण

इस मंदिर का 35 वर्षों का लिखित इतिहास है। इसके इतिहास से पता चलता है कि इस मंदिर पर कई बार हमले किए गए लेकिन उतनी ही बार इस मंदिर का निर्माण भी कराया गया। औरंगजेब के काशी विश्वनाथ मंदिर को तहस-नहस करने के बाद 1780 में इसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई के समय में फिर कराया गया।

 

कौन थी देवी अहिल्याबाई

जब महारानी देवी अहिल्याबाई का जिक्र हो रहा है तो उनके बारे में भी जान लेते हैं। महारानी अहिल्याबाई का जन्म 1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंठी गांव में हुआ था। महज 8 साल की आयु में उनकी शादी होलकर साम्राज्य के उत्तराधिकारी खंडेराव होलकर से कर दी गई। वह इंदौर राज्य के संस्थापक महाराजा मल्हार राव होलकर और गौतम बाई के इकलौते  पुत्र थे। सन 1754 में मराठा और जाटों के बीच लड़े गए युद्ध में खंडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई। इसके बाद अहिल्याबाई ने अपना सारा जीवन राज्य और धर्म के नाम कर दिया।  खंडेराव होलकर के मृत्यु के 12 वर्ष बाद उनके पिता मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गई।

अहिल्याबाई को देशभर में घाटों और मंदिरों के निर्माण कराने के लिए जाना जाता है। अहिल्याबाई ने 12 ज्योतिर्लिंगों में से शामिल काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया था।  मुगल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया गया था। इसके बाद जर्जर हो चुके मंदिर और गर्भ गृह का 11  शास्त्री आचार्य से पूजा पाठ करवा कर ज्योतिर्लिंग की पुनर्स्थापना भी करवाई। रानी अहिल्याबाई ने इसके लिए शिवरात्रि पर संकल्प भी लिया तब तब से काशी विश्वनाथ धाम का स्वरूप वैसा ही है जैसा अहिल्याबाई ने निर्माण कराया था। काशी विश्वनाथ के वर्तमान स्वरूप का पूरा श्रेय देवी अहिल्याबाई को जाता है।

यही वजह है कि भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए मंदिर प्रांगण में अहिल्याबाई  की मूर्ति लगाने का फैसला किया है। काशी कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़े काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी कहते हैं, आचार्य नारायण भट्ट के निर्देशन में 1777 से लेकर 1780 में बाबा विश्वनाथ की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। अहिल्याबाई ने काशी में घाटों और  काशी खंड में वर्णित विश्वेश्वर धाम का भी दुबारा निर्माण कराया था।  वाराणसी में रानी अहिल्याबाई के नाम से घाट भी बना हुआ है। रानी अहिल्याबाई को न्याय की देवी के नाम से भी जाना जाता है।  काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यह कई हजारों सालों से  बनारस की पहचान बना हुआ है। मान्यता है कि इस मंदिर में एक बार दर्शन और गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और तुलसीदास जी ने भी दर्शन किया है।  महारानी अहिल्या  बाई के निर्माण के बाद  महाराजा रणजीत सिंह ने इस धाम में 1000 किलो सोने का द्वार बनवाया था।

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