महापौर व अध्यक्ष पद के आरक्षण पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की रोक
दिनेश शुक्ल । Mar 13 2021 11:40PM
याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2014 में जो अध्यक्ष एवं महापौर के पद आरक्षित थे उन्हें फिर आरक्षित कर दिया गया है। इस कारण अन्य वर्ग को अध्यक्ष के पद पर प्रतिनिधित्व से वंचित किया जा रहा है। जो कि संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
ग्वालियर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने महापौर एवं अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने पर इनके चुनाव पर रोक लगा दी है। साथ ही राज्य शासन से प्रक्रिया के पालन के लिए अप्रैल माह तक जवाब देने को कहा है। जिसको लेकर चुनावी आरक्षण को लेकर लंबित अन्य तीन याचिकाओं के साथ सुनवाई होगी।
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न्यायमूर्ति शील नागू एवं न्यायमूर्ति आनंद पाठक की युगलपीठ ने याचिकाकर्ता मनवर्धन सिंह तोमर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए हैं। इस मामले में शासन की ओर से पैरवी करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी ने कहा कि शासन द्वारा इस मामले में विस्तृत जवाब प्रस्तुत किया जाएगा। याचिका में कहा गया कि 20 दिसम्बर 2020 को नगर परिषद में अध्यक्ष तथा नगर निगम में महापौर पद के लिए आरक्षण में नियमों का पालन नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2014 में जो अध्यक्ष एवं महापौर के पद आरक्षित थे उन्हें फिर आरक्षित कर दिया गया है। इस कारण अन्य वर्ग को अध्यक्ष के पद पर प्रतिनिधित्व से वंचित किया जा रहा है। जो कि संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
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याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इससे पहले इंदरगढ, दतिया तथा डबरा में नगर पालिका अध्यक्ष एवं नगर परिषद अध्यक्ष के आरक्षण में नियमों का पालन नहीं होने पर उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाई जा चुकी है। याचिकाकर्ता का कहना था कि इस मामले में आरक्षण में रोटेशन का पालन नहीं किया गया है। इसलिए शासन द्वारा किए गए आरक्षण को निरस्त कर नियमानुसार आरक्षण किए जाने के निर्देश शासन को दिए जाये। अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा न्यायालय को बताया गया कि अभी तक किसी भी नगर पालिका या नगर निगम के चुनाव की घोषणा नहीं की गई है। न्यायालय ने पाया कि शासन द्वारा आरक्षण की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है इससे वे लोग प्रभावित होंगे जिन्हें इसका लाभ मिलना चाहिए था, लिहाजा आरक्षण पर रोक लगा दी गई है।
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