अनुबंध कृषि से राज्य सरकारों को ही निपटने दें : अहलूवालिया
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘और अगर आप कहते हैं कि बड़े उद्योग घराने की मौजूदगी ‘क्रॉनी कैप्टिलिज्म’ का संकेत है, तो आप भारत को एक बहुत पिछड़ा देश बताते हुए उसकी निंदा कर रहे हैं... लेकिन राजनीति ऐसे ही काम करती है।’’
अहमाबाद| नीती आयोग की पूर्ववर्ती संस्थायोजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने शुक्रवार को कहा कि राज्यों को अनुबंध कृषि से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि अनुबंध कृषि, केंद्र द्वारा वापस ले लिए गये तीन कृषि कानूनों में शामिल एक पहलू था।
अहलूवालिया नेकहा, ‘‘मैं सहमत हूं कि कृषि कानूनों को आधुनिक बनाने की जरूरत है। यहां तीन कृषि कानून हैं...इनमें से एक अनुबंध कृषि से जुड़ा है। देखिए, किसानों को अनुबंध के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि राज्य सरकार को अनुबंध कानून के लिए जो भी नियम की जरूरत हो उसे परिभाषित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें ऐसा करने देना चाहिए।’’
अहमदाबाद विश्वविद्यालय द्वारा ‘‘भारत में कोविड-19 महामारी के बाद के लिए सबक’ विषय पर आयोजित बैठक को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि वास्तविक समस्या मंडियों को लेकर है। ऐसा क्या हुआ कि कॉरपोरेट क्षेत्र को लेकर आशंकाएं अचानक से बढ़ गई। इन दिनों,कॉरपोरेट क्षेत्र का गठजोड़ होता है। अगर भारत को बड़ी आर्थिक शक्ति बनना है, तो साफ है कि कुछ बड़े भारतीय उद्योग घराने होने वाले हैं।’’
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘और अगर आप कहते हैं कि बड़े उद्योग घराने की मौजूदगी ‘क्रॉनी कैप्टिलिज्म’ का संकेत है, तो आप भारत को एक बहुत पिछड़ा देश बताते हुए उसकी निंदा कर रहे हैं... लेकिन राजनीति ऐसे ही काम करती है।’’
क्रॉनी कैप्टिलिज्म का अभिप्राय है कि ऐसी आर्थिक प्रणाली से है जहां कारोबार मुक्त उद्यमिता से नहीं बढ़ता, बल्कि पैसे के बल पर और कारोबार एवं राजनीतिक वर्ग के साठगांठ से बढ़ता है।
उन्होंने कहा कि किसानों ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया क्योंकि उन्हें ‘किसी न किसी तरह से सहमत’ कर दिया गया था कि इन्हें कॉरपोरेट की मदद के लिए बनाया गया है और किसान बड़ी कंपनियों की दया के मोहताज रह जाएंगे।
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