Shaurya Path: BRICS Summit 2023, Russia-Ukraine War, Sri Lanka-China, UAE और Eastern Ladakh से जुड़े मुद्दों पर Brigadier DS Tripathi (R) से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अमेरिका को यह भी लगता है कि ब्रिक्स अमेरिका विरोधी एजेंडे पर चलने वाला ऐसा संगठन है जिस पर चीन हावी है। हालांकि ब्रिक्स ने सदैव अमेरिका विरोधी बयानबाजी से परहेज किया है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, श्रीलंका में आते चीनी युद्धपोतों, सऊदी अरब बॉर्डर गार्ड्स द्वारा मारे गये इथोपियन प्रवासियों की और राहुल गांधी के चीनी सेना के घुस आने संबंधी आरोपों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 

प्रश्न-1. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की क्या उपलब्धियां रहीं? क्या यह अमेरिका को घेरने वाला एक मंच बनता जा रहा है?

उत्तर- ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कहने को तो बहुत उत्साह और उल्लास वाले वातावरण में संपन्न हुआ लेकिन माहौल में तनाव भी साफ दिख रहा था। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया से यह सम्मेलन भी प्रभावित रहा। साथ ही खासतौर पर जिस तरह रूस के कमजोर पड़ने के चलते चीन अपना प्रभुत्व इस संगठन पर बढ़ा रहा है उससे सभी चिंतित दिखे। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों के नेताओं ने अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को समूह के नए सदस्यों के रूप में शामिल करने का जो फैसला किया है वह भले सर्वसम्मति से लिया गया है लेकिन यह भी साफ दिख रहा है कि इन देशों के चीन से ही सर्वाधिक करीबी संबंध हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सम्मेलन से पहले चर्चा थी कि ब्रिक्स समूह एक मुद्रा पर सहमत हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी में आयोजित किये गये ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर आयोजित कारोबारी प्रतिनिधियों की चर्चा के दौरान तो ब्रिक्स मुद्रा के बारे में चर्चा हुई। लेकिन किसी भी सदस्य देश के नेता ने अपने संबोधन में इस मुद्दे का उल्लेख नहीं किया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक और खास बात यह रही कि ब्रिक्स सम्मेलन में जहां भारत ने दुनिया की बेहतरी के बारे में बातें कीं वहीं चीन और रूस गोलमोल बात करते रहे। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ब्रिक्स समूह के विस्तार में तेजी लाने के अलावा सदस्य देशों के बीच राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर जोखिमों से संयुक्त रूप से निपटने के प्रयासों का आह्वान किया तो किया लेकिन वह कभी सहयोग करते नहीं हैं। साथ ही चीनी राष्ट्रपति ने अपने देश की खराब होती अर्थव्यवस्था का जरा भी जिक्र अपने संबोधन में नहीं किया। इसके अलावा वह ब्रिक्स व्यापार मंच में भी शामिल नहीं हुए थे, जिससे शिखर सम्मेलन में भी उनकी अनुपस्थिति को लेकर अटकलें लगने लगी थीं। शी जिनपिंग ब्रिक्स व्यापार मंच से अनुपस्थित एकमात्र नेता थे। उनके स्थान पर चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेन्ताओ ने उनका भाषण पढ़ा, जिसमें स्पष्ट रूप से अमेरिका के लिए एक सख्त संदेश था। इस तरह चीन ने इस मंच से अमेरिका पर निशाना साधने का प्रयास किया तो वहीं दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी इस मंच का उपयोग युद्ध को सही ठहराने के लिए किया। पुतिन ने अपने संबोधन में पश्चिमी देशों पर यूक्रेन में डोनबास क्षेत्र में रहने वाले लोगों के खिलाफ ‘‘युद्ध छेड़ने’’ का आरोप लगाया और कहा कि रूस का विशेष सैन्य अभियान उस युद्ध को समाप्त करने के लक्ष्य को लेकर है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारतीय प्रधानमंत्री के संबोधन की बात है तो उन्होंने अपने संबोधन के जरिये भारत की विश्व कल्याण की भावना को प्रदर्शित किया। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान, एक मजबूत ब्रिक्स का आह्वान किया जो इस प्रकार है-

बी- ब्रेकिंग बैरियर्स (बाधाओं को तोड़ना)

आर- रिवाइटलाइजिंग इकोनॉमीज(अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना)

आई- इंस्पायरिंग इनोवेशन(प्रेरक इनोवेशन)

सी- क्रिएटिंग अपॉर्चुनिटी(अवसर पैदा करना)

एस-शेपिंग द फ्यूचर (भविष्य को आकार देना)

इस दौरान प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित पहलुओं पर भी प्रकाश डाला-

-यूएनएससी सुधारों के लिए निश्चित समयसीमा तय करने का आह्वान किया

-बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया

-डब्ल्यूटीओ में सुधार का आह्वान किया

-ब्रिक्स से अपने विस्तार पर आम सहमति बनाने का आह्वान किया

-ब्रिक्स से ध्रुवीकरण नहीं बल्कि एकता का वैश्विक संदेश भेजने का आग्रह किया

-ब्रिक्स स्पेस एक्सप्लोरेशन कंसोर्टियम के निर्माण का प्रस्ताव पेश किया

-ब्रिक्स भागीदारों को इंडियन डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर- भारतीय स्टैक की पेशकश की गई

-ब्रिक्स देशों के बीच स्किल मैपिंग, कौशल और गतिशीलता को बढ़ावा देने का उपक्रम प्रस्तावित

-इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस के तहत चीतों के संरक्षण के लिए ब्रिक्स देशों के संयुक्त प्रयासों का प्रस्ताव

-ब्रिक्स देशों के बीच पारंपरिक चिकित्सा का भंडार स्थापित करने का प्रस्ताव

-ब्रिक्स साझेदारों से जी20 में एयू की स्थायी सदस्यता का समर्थन करने का आह्वान किया

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस समूह के अमेरिका विरोधी मंच बनने की बात है तो ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि भारत और ब्राजील के अमेरिका से अच्छे रिश्ते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका की विदेश नीति निर्माताओं का मानना है कि पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाये थे, ब्रिक्स समूह ने एक तरह से उसका विरोध करके यूक्रेन के संबंध में अमेरिका की रणनीति को कमजोर करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका की नजर ब्रिक्स पर इसलिए थी कि कहीं ईरान, क्यूबा या वेनेजुएला के सदस्यता संबंधी आवेदन को स्वीकार कर लिया गया तो एक तरह से अमेरिका विरोधी बड़ा संगठन खड़ा हो जायेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि ब्रिक्स ने अमेरिका विरोधी ईरान को शामिल किया है साथ ही अमेरिका के साझेदार मिस्र को भी सदस्यता देने पर सहमति जताई है। साथ ही अमेरिका इसलिए भी चौकन्ना है क्योंकि अल्जीरिया और मिस्र जैसे अमेरिकी साझेदार भी ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका को यह भी लगता है कि ब्रिक्स अमेरिका विरोधी एजेंडे पर चलने वाला ऐसा संगठन है जिस पर चीन हावी है। हालांकि ब्रिक्स ने सदैव अमेरिका विरोधी बयानबाजी से परहेज किया है। यहां तक कि साल 2009 में चीनी विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट रूप से कहा था कि ब्रिक्स को ‘‘किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध निर्देशित’’ नहीं होना चाहिए। वैसे अमेरिका का यह सोचना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि ब्रिक्स चीन द्वारा संचालित है, क्योंकि चीन कुछ प्रमुख नीतिगत प्रस्तावों को इस मंच से आगे बढ़ाने में असमर्थ रहा है। जबकि भारत ने ब्रिक्स सहयोग के सुरक्षा आयाम को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाई है और आतंकवाद विरोधी एजेंडे पर समर्थन भी जुटाया है।

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प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? साथ ही वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन की जिस तरह विमान हादसे में मौत हुई उसको लेकर सबकी उंगलियां रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर क्यों उठ रही हैं? 

उत्तर- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का इतिहास रहा है कि वह अपने विरोधियों को कभी माफ नहीं करते। चाहे वह विरोधी राजनीतिक हों या सैन्य विद्रोही। उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पुतिन ने प्रिगोझिन की बगावत के बाद उन्हें मिटाने का संकल्प ले लिया था। भले बाद में दोनों के बीच सुलह हो गयी थी लेकिन वैगनर ग्रुप के चीफ की मौत दर्शाती है कि पुतिन ने अपना संकल्प पूरा कर लिया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैगनर ग्रुप ने अपने आका पुतिन को जिस तरह आंखें दिखाईं थीं उससे दुनिया भर को यह संदेश गया था कि अपने लगभग ढाई दशक के कार्यकाल में पुतिन पहली बार कमजोर पड़े हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन यह नहीं भूले थे कि किस तरह रोस्तोव में येवगेनी प्रिगोझिन के साथ सेल्फी लेने और उनसे हाथ मिलाने के लिए रूसियों में होड़ लगी हुई थी। पुतिन वह दृश्य देखकर समझ गये थे कि उनको आंख दिखाने और उनके शासन को चुनौती देने की हिम्मत दिखाने वाले को जनता सराह रही है। उन्होंने कहा कि बात सिर्फ यही नहीं है कि प्रिगोझिन ने पुतिन ने पंगा लिया था, बात यह भी है कि जिस तरह कई देशों में वैगनर ग्रुप का आधार बढ़ गया था वह रूस के लिए मुश्किलों का सबब बन रहा था। उन्होंने कहा कि अब प्रिगोझिन की मौत के बाद वैगनर ग्रुप फिर से एक बार पूरी तरह रूस के लिए भाड़े पर काम करने वाला सैन्य संगठन बन कर रह गया है।

उन्होंने कहा कि जहां तक युद्ध के ताजा हालात की बात है तो रूस ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए अपने वायुसेना प्रमुख को हटा दिया है क्योंकि वह यूक्रेन से होने वाले हमले रोकने में विफल रहे। खासतौर पर क्रीमिया में रूस के मिसाइल डिफेंस सिस्टम को यूक्रेन जिस तरह तबाह करने का दावा कर रहा है यदि वह खबर सही है तो यह रूस के लिए बड़ा झटका है। उन्होंने कहा कि युद्ध में एक दूसरे पर छिटपुट हमले ही खबरों में स्थान पा रहे हैं लेकिन जैसे ही अमेरिकी एफ-16 विमान युद्धक्षेत्र में आ जायेंगे वैसे ही युद्ध का स्वरूप बदल सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालिया ब्रिक्स सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर से दिये गये संबोधन पर गौर करें तो प्रतीत होता है कि वह अपनी गलती मानने की बजाय पश्चिमी देशों पर यूक्रेन में डोनबास क्षेत्र में रहने वाले लोगों के खिलाफ ‘‘युद्ध छेड़ने’’ का आरोप लगा कर उस कहावत को सिद्ध कर रहे हैं कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। उन्होंने कहा कि चूंकि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है जिसके चलते वह ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जोहानिसबर्ग नहीं गये और सम्मेलन को डिजिटल तरीके से संबोधित कर एक तरह से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को जायज ठहराने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पुतिन का संबोधन यह संकेत देता है कि इस युद्ध के हाल फिलहाल समाप्त होने के आसार नहीं हैं। भले कुछ देश शांति वार्ता आयोजित कर रहे हैं लेकिन रूस पीछे हटने और यूक्रेन हार मानने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन चूंकि अगले साल अक्टूबर में रूस में होना है इसलिए देखना होगा कि क्या उससे पहले युद्ध समाप्त होता है या युद्ध नया मोड़ लेता है?

प्रश्न-3. श्रीलंका लगातार चीन के अनुसंधान पोत को आने दे रहा है जिससे भारत में चिंताएं बढ़ रही हैं। यह भी खबर रही कि भारतीय तटरक्षक ने समुद्री सहयोग को मजबूत करने के लिए फिलीपीन के तटरक्षक के साथ समझौता किया है। इसके अलावा आस्ट्रेलिया के तट पर 11 दिवसीय मालाबार नौसेना अभ्यास संपन्न हुआ है। इस सबको कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- श्रीलंका से आ रही खबरें चिंताजनक लग रही हैं क्योंकि श्रीलंका अनुसंधान से जुड़े एक पोत को देश में आने देने संबंधी चीन के अनुरोध पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि चीनी पोत ‘शी यान6’ के समुद्री अनुसंधान गतिविधियों के लिए अक्टूबर में पहुंचने की संभावना है। इसे अनुसंधान-सर्वेक्षण पोत बताया जा रहा है और इसकी क्षमता 1115 डीडब्ल्यूटी है। उन्होंने कहा कि मीडिया की खबरों में कहा जा रहा है कि भारत की ओर से संभावित चिंताएं उठाए जाने को लेकर श्रीलंका विदेश कार्यालय चीन के इस अनुरोध को लेकर असमंजस की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि माना जा रहा है कि यह पोत राष्ट्रीय जलीय संसाधन अनुसंधान एवं विकास एजेंसी के साथ मिलकर अनुसंधान करेगा। उन्होंने कहा कि वैसे चीन नियमित तौर पर अपने पोत श्रीलंका भेजता रहता है। दो सप्ताह पहले चीनी सेना का युद्धक पोत ‘हाई यांग 24 हाओ’ दो दिन की यात्रा पर श्रीलंका पहुंचा था। उन्होंने कहा कि माना जा रहा है कि भारत की ओर से चिंताएं जताए जाने के कारण 129 मीटर लंबे पोत के आगमन में देरी हुई। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष अगस्त में चीनी बैलेस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह ट्रैकिंग पोत ‘युवान वांग 5’ हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचा था, जिस पर भारत ने गंभीर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि भारत को आशंका थी कि श्रीलंकाई बंदरगाह जाने के रास्ते में पोत की ट्रैकिंग प्रणाली भारतीय रक्षा प्रतिष्ठानों के बारे में पता लगाने की कोशिश कर सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत लगातार तटरक्षा की ओर ध्यान दे रहा है इसीलिए भारतीय तटरक्षक ने फिलीपीन के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिए उसके तटरक्षक बल के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि इसका मकसद क्षेत्र में सुरक्षित, संरक्षित और स्वच्छ समुद्र सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के संयुक्त बयान पर गौर करें तो उसमें कहा गया है कि भारत और फिलीपीन के बीच द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तहत भारतीय तट रक्षक ने समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिए फिलीपीन तट रक्षक (पीसीजी) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा कि इस समझौते का उद्देश्य समुद्री कानून प्रवर्तन (एमएलई), समुद्री खोज और बचाव (एम-एसएआर) और समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया (एमपीआर) के क्षेत्र में दोनों तटरक्षकों के बीच पेशेवर संबंध को बढ़ाना है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा हमारी नौसेना लगातार अभ्यासों के जरिये भी अपनी क्षमता में वृद्धि का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की नौसेनाओं की भागीदारी वाला 11 दिवसीय मालाबार नौसेना अभ्यास इस सप्ताह संपन्न हो गया। उन्होंने कहा कि आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर हुए अभ्यास के 27वें सत्र में हवा, सतह और समुद्र के अंदर जटिल अभ्यास देखने को मिला। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना, रॉयल आस्ट्रेलियन नेवी, जापान मेरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स और यूएस नेवी (अमेरिकी नौसेना) के युद्ध पोत, पनडुब्बी और विमानों ने अभ्यास में भाग लिया। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना का प्रतिनिधित्व स्वदेश निर्मित विध्वंसक पोत आईएनएस कोलकाता, युद्धपोत आईएनएस सहयाद्री और पी8आई समुद्री गश्त विमान ने किया। उन्होंने कहा कि नौसेना ने इस बारे में बयान जारी कर कहा है कि मालाबार के समुद्री चरण अभ्यास में हवा, सतह और समुद्र के अंदर जटिल और अधिक गहन अभ्यास देखने को मिला।

प्रश्न-4. सऊदी अरब बॉर्डर गार्ड्स ने हजारों इथोपियन प्रवासियों को क्यों मार डाला? साथ ही एक सवाल यह भी है कि इतने बड़े नरसंहार पर दुनिया खामोश क्यो हैं?

उत्तर- वाकई यह हैरत की बात है कि इतने बड़े नरसंहार पर पूरी दुनिया चुप है। उन्होंने कहा कि वहां जो कुछ हुआ वह मानवता के विरुद्ध बड़ा अपराध है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने कहा है कि सऊदी अरब के सीमा रक्षकों ने महिलाओं और बच्चों सहित सैंकड़ों इथियोपियाई प्रवासियों को मार डाला है, जिन्होंने यमन के साथ अपनी पहाड़ी सीमा के साथ सऊदी अरब में प्रवेश करने का प्रयास किया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी 73 पन्नों की रिपोर्ट में कहा है कि सऊदी गार्डों ने कुछ प्रवासियों को मारने के लिए विस्फोटक हथियारों का इस्तेमाल किया और कई लोगों पर करीब से गोली चलाई। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में मार्च 2022 और जून 2023 के बीच यमन-सऊदी सीमा पार करने की कोशिश करने वाले 38 इथियोपियाई लोगों के साथ-साथ प्रवासियों के रिश्तेदारों और दोस्तों की गवाही संकलित की गई है। उन्होंने कहा कि ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि प्रवासियों के समूहों के खिलाफ हमले, जो पैदल सऊदी अरब में प्रवेश करने के लिए दूरदराज के पहाड़ी रास्तों का इस्तेमाल करते थे, "व्यापक और व्यवस्थित" थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वहां पर "हत्याएं जारी हैं"।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वहीं सऊदी सरकार ने इन आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि यह आरोप विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित नहीं हैं। सऊदी अधिकारियों ने 2022 में संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों द्वारा लगाए गए उन आरोपों का भी दृढ़ता से खंडन किया है जिसमें कहा गया था कि सीमा रक्षकों ने पिछले साल व्यवस्थित रूप से प्रवासियों को मार डाला था। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर, ह्यूमन राइट्स वॉच का अपनी रिपोर्ट के बारे में कहना है कि यह रिपोर्ट गवाहों की गवाही के साथ-साथ घायल और मारे गए प्रवासियों के 350 वीडियो और तस्वीरों और सऊदी अरब गार्ड पोस्टों का स्थान दिखाने वाली उपग्रह इमेजरी पर आधारित है। संगठन का कहना है कि हालांकि, उसके शोधकर्ता यमन-सऊदी सीमा के उस हिस्से तक पहुंचने में असमर्थ थे जहां कथित हत्याएं हुई थीं। हालांकि इस रिपोर्ट की लेखिका नादिया हार्डमैन ने रॉयटर्स को दिये एक साक्षात्कार में कहा, "लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने वह मैदान देखे हैं जहां हत्याएं हुईं, पूरे पहाड़ी क्षेत्र में शव बिखरे हुए थे लोग आधे-अधूरे होकर पड़े थे।'' 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि समाचार समूह रॉयटर्स का भी दावा है कि उसने स्वतंत्र रूप से एचआरडब्ल्यू द्वारा उपलब्ध कराए गए वीडियो क्लिप का विश्लेषण किया जिसमें लाशें, घायल लोग, कब्रों की खुदाई और पहाड़ी रास्तों पर चलते लोगों के समूह दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि सड़कें, इमारतें और पहाड़ों का आकार उपग्रह और इलाके की तस्वीरों से मेल खाता है, इससे यह सत्यापित होने का दावा किया जा रहा है कि यह वीडियो यमन-सऊदी सीमा पर शूट किए गए थे। उन्होंने कहा कि हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है कि इन्हें कब फिल्माया गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के अनुसार, सऊदी अरब में अनुमानित 750,000 इथियोपियाई हैं। इथियोपिया में कई लोग आर्थिक तंगी से वहां भाग गए हैं। उन्होंने कहा कि इथियोपिया ने हाल के वर्षों में अपने उत्तरी प्रांत टाइग्रे को क्रूर संघर्ष से तबाह होते देखा है। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है और यहां इथियोपियाई प्रवासी पहले से आते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इस मुद्दे पर कहा है कि उसे सीमा पर सैन्य अभियानों के नागरिकों पर प्रभाव की ओर इशारा करने वाली जानकारी मिली है और वह "कुछ समय से" स्थिति की निगरानी कर रहा है। इसने एचआरडब्ल्यू के आरोपों की पूरी जांच करने और जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदार ठहराने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन डुजारिक ने न्यूयॉर्क में एक ब्रीफिंग में कहा, "बंदूक का उपयोग करके प्रवासन को रोकने की कोशिश करना असहनीय है।" उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में "बहुत गंभीर आरोप" लगाए गए हैं।

प्रश्न-5. राहुल गांधी ने हाल ही में कहा कि चीनी सेना भारत में घुसी हुई है। इस आरोप में कितना दम है?

उत्तर- यह आरोप सिर्फ राजनीतिक है। सब जानते हैं कि वहां का सच क्या है। हमारी सेना वहां जिस रक्षा साजोसामान के साथ भारी संख्या में तैनात है उसको देखते हुए किसी की हिम्मत नहीं है कि एक इंच भी भारतीय सीमा में घुस सके। हमारी सेना डोकलाम, गलवान और तवांग में चीन को करारा जवाब दे चुकी है जिससे ड्रैगन को सबक मिल चुका है फिर भी वह मनोवैज्ञानिक तरीके से भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करता है लेकिन हमारी तैयारी हर स्तर पर लाजवाब है। उन्होंने कहा कि चूंकि चुनावों का समय करीब आ चुका है इसलिए राजनेता तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप में मशगूल रहेंगे लेकिन एक बात सभी को ध्यान रखनी चाहिए कि सेना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए ना ही सेना के शौर्य पर सवाल उठाया जाना चाहिए और ना ही ऐसा कोई काम करना चाहिए जिससे हमारी सेनाओं या सुरक्षा बलों का मनोबल कमजोर हो।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले कुछ बिंदुओं पर तीन साल से अधिक समय से आमने-सामने हैं, जबकि दोनों पक्षों ने व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी पूरी कर ली है। उन्होंने कहा कि भारत कहता रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी, तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हो गया। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी गिरावट आई, जो दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य झड़प थी।

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