आज से ठीक 194 साल पहले जन्मी थीं भारत की पहली महिला शिक्षिका, स्कूल जाते समय Savitribai Phule पर लोग फेंकते थे कीचड़

Savitribai Phule
प्रतिरूप फोटो
ANI
Anoop Prajapati । Jan 3 2025 9:09AM

सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा और मानवता को ही अपना पहला और अंतिम धर्म माना है। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। सावित्रीबाई फुले लोगों की किसी भी तरह की आलोचना से डरे बिना काम करने के सिद्धांत पर विश्वास करती थीं। वे उस समय अपने पति को पत्र लिखती थीं, जब देश की महिलाओं तक पढ़ना-लिखना तक नहीं आता था।

भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा और मानवता को ही अपना पहला और अंतिम धर्म माना है। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। सावित्रीबाई फुले लोगों की किसी भी तरह की आलोचना से डरे बिना काम करने के सिद्धांत पर विश्वास करती थीं। वे उस समय अपने पति को पत्र लिखती थीं, जब देश की महिलाओं तक पढ़ना-लिखना तक नहीं आता था। उन पत्रों में वे सामाजिक कार्यों के बारे में लिखती थीं। यह समझने के लिए काफी है कि सावित्रीबाई अपने समय से आगे की सोच रखने वाली महिला थीं। वे अंधविश्वासी समाज में पली-बढ़ी तार्किक महिला थीं। 

सावित्रीबाई बचपन में एक बार जब अंग्रेजी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तो उनके पिता ने उन्हें पढ़ते हुए देख लिया था। उनके पिता ने उनसे किताब छीन ली थी क्योंकि उस समय केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही शिक्षा का अधिकार था। इसी के चलते सावित्रीबाई का पूरा जीवन शिक्षा के अधिकार को हर उस व्यक्ति तक पहुँचाने के इर्द-गिर्द घूमता रहा, जो इससे वंचित था। उन्हें भारत में नारीवाद की पहली मुखर आवाज़ भी माना जाता है। वह एक समाज सुधारक और मराठी कवि भी थीं। उन्हें उस दौर की पहली मराठी कवि के रूप में भी प्रसिद्धि मिली। 

बाल विवाह के बाद पति ने पूरा किया पढ़ने का सपना

भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में पहचानी जानी वाली सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। उस दौर के सामाजिक ताने-बाने के अनुसार सिर्फ 13 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह हो गया। उनके पति का नाम ज्योतिराव फुले था। शादी के दौरान फुले पढ़ना-लिखना नहीं जानती थीं लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि और लगन को देखकर उनके पति बेहद प्रभावित हुए और उन्हें आगे पढ़ाने का मन बना लिया। शादी के दौरान ज्योतिराव खुद एक छात्र थे लेकिन बावजूद इसके उन्होंने सावित्रीबाई को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी का परिणाम रहा कि सावित्रीबाई ने शिक्षा प्राप्त कर टीचर की ट्रेनिंग ली और देश की पहली महिला टीचर बन गईं।

रूढीवादी लोग बरसाते थे पत्थर और कीचड़

अंग्रेजी शासन के दौरान देश के दूसरे लोगों के साथ-साथ महिलाओं को कई स्तरों पर भेदभाव और सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ता था। खासतौर पर जब बात दलितों की आती तो भेदभाव का स्तर और बढ़ जाता था। सावित्रीबाई को भी दलित परिवार में जन्म लेने का खामियाजा भुगतना पड़ता था। जब वे स्कूल जाती तो लोग उनपर पत्थर बरसाते थे। केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी फुले पर गोबर, कीचड़ आदि फेंकते थे। लेकिन इन सब अत्याचारों ने भी सावित्रीबाई का हौसला कम नहीं होने दिया और वे लगातार महिलाओं के हित के लिए कार्य करती रहीं।

महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला

महाराष्ट्र के पुणे में फुले ने अपने पति के साथ मिलकर लड़कियों के लिए स्कूल खोला। साल 1848 में खुले इस स्कूल को लड़कियों के खुला देश का पहला स्कूल माना जाता है। इतना ही नहीं बल्कि सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव फुले ने देश की महिलाओं के लिए 18 स्कूल खोले। इस कार्य के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार से सम्मानित भी किया गया था। इन स्कूलों की सबसे खास बात यह थी कि इसमें सभी वर्ग और जाति की महिलाएं शिक्षा प्राप्त करने आ सकती थीं। जहां उस समय महिलाओं को घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी वहां फुले का यह कदम बेहद सराहनीय था।

कवितायें भी करती थीं फुले

उन्होंने विधवाओं के लिए भी आश्रम खोला और परिवार से त्याग दी गई महिलाओं को भी शरण देने लगीं। सावित्रीबाई समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक कवयित्री भी जिसने जाति और पितृसत्ता से संघर्ष करते हुए अपनी कविताएं लिखीं। उनका जीवन आज भी महिलाओं को संघर्ष करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। भारत ने 10 मार्च 1897 को देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले को खो दिया था। एक समाज सुधारक, शिक्षाविद् और कवयित्री के रूप में फुले ने देश में कई अहम भूमिकाएं निभाईं। आज पूरा देश उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें नमन कर रहा है। सावित्रीबाई फुले ने अपना पूरा जीवन महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए बिता दिया। देश की पहली महिला शिक्षक होने के नाते उन्होंने समाज के हर वर्ग की महिला को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मी फुले को आज भी महिलाओं के प्रेरणा के रूप में याद किया जाता है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़