Prajatantra: INDIA गठबंधन में छिड़ा संग्राम, असमंजस में CM Nitish, दिल्ली दौरे का एजेंडा क्या

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ANI
अंकित सिंह । Aug 17 2023 3:05PM

नीतीश कुमार का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने का कार्यक्रम था। लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मामला फंस गया और जुबानी जंग तेज हो गई। माना जा रहा है कि यही कारण रहा कि नीतीश कुमार ने थोड़ी खामोशी बरती।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 16 अगस्त को दिल्ली के दौरे पर थे। दिल्ली पहुंचने के बाद वे सबसे पहले अटल समाधि स्थल पहुंचे। वहां उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके अलावा नीतीश कुमार ने किसी भी सार्वजनिक बैठक में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि माना जा रहा था कि नीतीश कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात कर सकते हैं। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा था इंडिया गठबंधन के नेताओं से भी उनकी मुलाकात हो सकती है। आज नीतीश कुमार पटना लौट रहे हैं। लेकिन अपने दौरे के दौरान उनकी किसी नेता से मुलाकात नहीं हुई है। इसके बाद चर्चाओं का दौर फिर से शुरू हो गया है। 

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नीतीश का एजेंडा

नीतीश कुमार का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने का कार्यक्रम था। लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मामला फंस गया और जुबानी जंग तेज हो गई। माना जा रहा है कि यही कारण रहा कि नीतीश कुमार ने थोड़ी खामोशी बरती। खबरों के मुताबिक नीतीश को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात भी करनी थी। लेकिन इंडिया गठबंधन के किसी नेता से उनकी मुलाकात नहीं हुई। बताया यह भी जा रहा है कि नीतीश कुमार महाराष्ट्र में शरद पवार और अजित पवार के लगातार हो रहे मुलाकात को लेकर भी असमंजस में हैं। ना सिर्फ नीतीश बल्की गठबंधन के कई नेता भी लगातार महाराष्ट्र के घटनाक्रम को लेकर पैनी नजर रख रहे हैं। 

फिर दिल्ली क्यों आए नीतिश

दिल्ली में नीतीश कुमार सीधे अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि स्थल पहुंचे। उनके साथ बिहार सरकार के मंत्री और नीतीश कुमार के बेहद करीबी संजय झा भी मौजूद र।हे दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार दिल्ली दौरे पर अपनी आंखों के इलाज के लिए आए थे। उनका यह रूटीन चेकअप था। पहले खबर थी कि नीतीश कुमार 18 अगस्त को पटना लौटेंगे। लेकिन 1 दिन पहले ही उनके पटना लौटने का कार्यक्रम बन गया। 

अपनी भूमिका स्पष्ट चाहते हैं नीतीश

अगर हम कहें कि विपक्षी गठबंधन की बुनियाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही रखी है तो इसमें दो राय नहीं। नीतीश कुमार ने हीं सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी और सबसे पहले पटना में बैठक के लिए आमंत्रित किया था। इंडिया गठबंधन के पहली बैठक के 23 जून को पटना में हुई थी। 18 जुलाई को बेंगलुरु में हुई। बैठक में उम्मीद की जा रही थी कि इंडिया गठबंधन के लिए एक संयोजक के नाम का ऐलान हो सकता है। संयोजक के रूप में नीतीश कुमार का नाम सबसे आगे चल रहा था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा दावा यह भी किया जाता रहा है कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के नाम से सहमत नहीं थे। उनकी नाराजगी की भी खबर आई। विपक्षी दलों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी वह शामिल नहीं हुए। हालांकि विवाद बढ़ने पर उन्होंने सफाई दी और कहा कि बिहार का कार्यक्रम तय हो चुका था इसलिए उन्हें जल्दी आना पड़ा। हालांकि, नीतीश अपनी भूमिका स्पष्ट चाहते हैं। यही कारण है कि खामोश रहकर भी विपक्षी दलों को एक संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। 

अटल बिहारी वाजपेयी की अचानक आई याद

पिछले 5 सालों में नीतीश कुमार पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि स्थल पर पहुंचे। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया। नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी का स्नेह भी उन्हें मिला है। हालांकि वर्तमान में नीतीश कुमार की राह भाजपा से बिल्कुल अलग है। यूं कहें कि नीतीश कुमार की दुश्मन नंबर वन अगर कोई पार्टी है तो वह भाजपा ही है। लेकिन कहीं ना कहीं अटल समाधि स्थल जाकर नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन को भी यह संदेश दे दिया कि उनके लिए भाजपा के दरवाजे भी खुले हुए हैं। 

सम्राट चौधरी का बयान

दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने साफ तौर पर कहा कि दिल्ली में नीतीश कुमार को विपक्षी नेताओं के द्वारा भाव नहीं दिया गया। नीतीश कुमार के सियासी हैसियत को लोग पहचानते हैं। यही कारण है कि वे बीच दौरे से ही पटना लौट रहे हैं। उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार अपनी पॉलिटिक्स के लिए दिल्ली गए होंगे। लेकिन गठबंधन के लोगों ने उन्हें भाव नहीं दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि बिहार को नीतीश कुमार से मुक्त बनाना है। 

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इंडिया गठबंधन का नाम तय हो गया है। 26 सियासी दल एक मंच पर आकर एक साथ चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। लेकिन आपसी खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सभी एक दूसरे पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सभी दलों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि वे जनता को अपने पक्ष में कैसे कर पाते हैं। यही तो प्रजातंत्र है। 

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