Prajatantra: Jammu-Kashmir में परिसीमन से कैसे बदल गया पूरा सीन, क्या हैं इसके मायने
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2023 पर बोलते हुए गृह मंत्री ने कहा कि यह बिल 70 वर्षों से जिन पर अन्याय हुआ, अपमानित हुए और जिनकी अनदेखी की गई, उनको न्याय दिलाने का बिल है। उन्होंने कहा कि जब ये (कश्मीरी) विस्थापित हुए, तो अपने ही देश में उन्हें शरणार्थी बनना पड़ा।
लोकसभा ने बुधवार को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पारित कर दिया, जिसमें कश्मीरी प्रवासी समुदाय के दो सदस्यों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापित व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सदस्य को विधान सभा में नामित करने का प्रावधान है। परिसीमन की सिफारिश के आधार पर तीन सीटों की व्यवस्था की है। जम्मू कश्मीर विधानसभा में दो सीट कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए और एक सीट पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापित हुए लोगों के लिए है। गृह मंत्री के अनुसार, विधानसभा में नौ सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित की गई हैं। अमित शाह ने कहा कि पीओके लिए 24 सीटें आरक्षित की गई हैं क्योंकि ‘‘पीओके हमारा है’’।
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सरकार का दावा
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2023 पर बोलते हुए गृह मंत्री ने कहा कि यह बिल 70 वर्षों से जिन पर अन्याय हुआ, अपमानित हुए और जिनकी अनदेखी की गई, उनको न्याय दिलाने का बिल है। उन्होंने कहा कि जब ये (कश्मीरी) विस्थापित हुए, तो अपने ही देश में उन्हें शरणार्थी बनना पड़ा। आज के आंकड़ों के मुताबिक, 46,631 परिवार और 1,57,967 लोग अपने ही देश में विस्थापित हो गए और इस प्रकार से विस्थापित हुए कि उनकी जड़ें अपने देश और प्रदेश से उखड़ गईं। ये बिल उनको अधिकार देने का है, उनको प्रतिनिधित्व देने का है। उन्होंने कहा कि जो कहते हैं क्या हुआ धारा 370 हटने से? 5-6 अगस्त, 2019 को इनकी (कश्मीरी) वर्षों से न सुनी जाने वाली आवाज को मोदी जी ने सुना और आज उनको उनका अधिकार मिल रहा है।
क्या बदला
आंकड़ों के जरिए अगर इसे समझने की कोशिश करें तो क्या कुछ बदला है, यह हम आपको बताते हैं। परिसीमन से पहले जम्मू क्षेत्र में जहां 37 सीटें थी, वह अब बढ़ कर 43 हो गई हैं जबकि कश्मीर क्षेत्र में 46 सीटें थी जो अब 47 हो गई हैं। पीओके के लिए 24 सीट रिजल्ट रखी गई है। पहले ही व्यवस्था नहीं थी। वहीं शेड्यूल ट्राइब के लिए 9 सीटे हैं जो पहले नहीं थी। कश्मीरी विस्थापितों के लिए दो सीटे और पीओके से विस्थापितों के लिए एक सीट है जो पहले नहीं थी। नामांकित सीटों की संख्या की बात करें तो पहले यह दो थी जो अब बढ़कर पांच हो गई है। जम्मू कश्मीर विधानसभा में पहले 107 सीटें थी जो बढ़कर 114 हो गई हैं।
परिसीमन आयोग के बारे में
6 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। हालांकि इसको लेकर खूब विवाद भी रहे। विपक्ष का दावा था कि सिर्फ जम्मू कश्मीर के लिए परिसीमन किया जा रहा है जबकि यह 2026 तक स्थगित है। आपको बता दें कि 2019 में धारा 370 हटाने से पहले केंद्र सरकार राज्य की संसदीय सीटों का परिसीमन करती थी जबकि राज्य सरकार विधानसभा सीटों का परिसीमन कराती थी। लेकिन इस बार केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दोनों जिम्मेदारियां केंद्र सरकार के पास रही। जम्मू कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में किया गया था। जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने मई 2022 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।
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क्या हैं मायने
इन बदलाव के बाद जम्मू की 44 फ़ीसदी आबादी 48% सीटों के लिए मतदान करेगी। वहीं अगर कश्मीर की बात करें तो वहां रखने वाले 56% लोग 52 फ़ीसदी सीटों के लिए मतदान करेंगे। जम्मू की 6 नई सीटों में से चार हिंदू बहुल है। वहीं कश्मीर में जो एक सीट बढ़ाई गई है वह पीपुल्स कांफ्रेंस के गढ़ कुपवाड़ा में है जिसे भाजपा के करीबी के तौर पर देखा जाता रहा है। ऐसे में विरोधियों का दावा है कि भाजपा ने अपने चुनावी फायदे के हिसाब से परिसीमन कराया है। जम्मू जहां हिंदू बहुल क्षेत्र है तो वहीं कश्मीरों में मुसलमानों की सख्या ज्यादा है। ऐसे में 6 सीट बढ़ने से भाजपा को फायदा हो सकता है। हालांकि अब तक अगर आपने हमारी रिपोर्ट को अच्छे से पढ़ा होगा तो आपको इस बात की जानकारी हो ही गई होगी कि पहले की तुलना में जम्मू कश्मीर के हर वर्ग को अधिकार देने की कोशिश की गई है जिसमें विस्थापित कश्मीरी पंडित भी शामिल है जो आतंकवाद के दौर में अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए थे। इसके अलावा जातीय समीकरण को भी साधने की कोशिश की गई है ताकि सभी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
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