हरीश रावत: जन्म के लिए माता-पिता ने किया था तप, गांधी परिवार के भरोसेमंद नेताओं में से एक हैं
गांव लौटने के बाद हरीश रावत राजनीतिक कार्यों में खूब सक्रिय रहने लगे। वह शुरुआत से ही कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ गए। 1973 में हरीश रावत को कांग्रेस की जिला युवा इकाई का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद लगातार वह पार्टी में अपनी अलग पहचान बनाते गए।
वर्तमान में देखें तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हरीश रावत की भी विनती होती है। हरीश रावत को गांधी परिवार का बेहद ही करीबी माना जाता है। हरीश रावत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिनकी पहचान उत्तराखंड के साथ-साथ देश के अलग हिस्सों में भी है। हरीश रावत की पहचान संघर्षशील नेताओं की है जो कि लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं और उनकी समस्याओं को नेतृत्व तक पहुंचाते हैं। हरीश रावत का जन्म 27 अप्रैल 1948 को हुआ था। उनके पिता का नाम राजेंद्र सिंह रावत और माता का नाम देवकी देवी था। कहते हैं कि पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए इनके पिता ने हाथ पर दिया जलाकर 24 घंटे तक पूजा की थी। पूजा के 1 वर्ष बाद ही हरीश रावत का जन्म हुआ। हरीश रावत ने अपनी शुरुआती शिक्षा-दिक्षा अल्मोड़ा में ही हासिल की। रामनगर से इंटरमीडिएट पास करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ चले गए। लखनऊ से बीए और एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद वह वापस गांव लौट आए।
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गांव लौटने के बाद हरीश रावत राजनीतिक कार्यों में खूब सक्रिय रहने लगे। वह शुरुआत से ही कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ गए। 1973 में हरीश रावत को कांग्रेस की जिला युवा इकाई का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद लगातार वह पार्टी में अपनी अलग पहचान बनाते गए। 1980 में हरीश रावत ने पहली बार लोकसभा का चुनाव अल्मोड़ा से लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने उस दौरान भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी को हराया था। इसके बाद लोकसभा में 1984 और 1989 में भी हरीश रावत ने अल्मोड़ा का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि उन्हें 1991, 1996 और 1999 में इस सीट से हार का सामना करना पड़ा। उत्तराखंड के गठन के बाद उन्हें राज्य का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उत्तराखंड में कांग्रेस को मजबूत करने में हरीश रावत का योगदान बेहद ही ज्यादा रहा है।
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2002 में हरीश रावत को राज्यसभा के लिए चुना गया। 2009 में हरीश रावत ने अल्मोड़ा छोड़ हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। मनमोहन सिंह की सरकार में वे कई मंत्रालयों में मंत्री भी रहे। पहले उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया। बाद में उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। हरीश रावत के जीवन में बड़ा मौका तब आया जब उत्तराखंड में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को हटाने का फैसला लिया गया। बहुगुणा के विदाई के साथ ही हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हुआ। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी हरीश रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने रहें। वे पहली बार 1 फरवरी 2014 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वे दोबारा 21 अप्रैल 2016 को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री का पद संभाला। तीसरी बार में 11 मई 2016 को मुख्यमंत्री बने। उत्तराखंड में आज भी हरीश रावत की अपनी अलग पकड़ है। वे लगातार कांग्रेस में संगठन का काम देखते रहे हैं। पंजाब में भी तमाम राजनीतिक उठापटक के बीच उनकी भूमिका बेहद अहम थी।
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