लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से उजड़ रहे परिवार, सदन में आंकड़ें बताते सुशासन कुमार
सरकार की ओर से एईएस से मौत को आपदा मानते हुए पीड़ित परिवारों को 4-4 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा भी हुई है। वैसे तो हिंदुस्तान में ज़िंदगी की कीमत बहुत ही सस्ती है। यह ज़िंदगी और भी सस्ती हो जाती है जब आदमी गरीब होता है। थोड़ी और सस्ती हो जाती है जब आदमी गरीब होने के साथ ही गांव में रहता है और तब तो लगभग मुफ़्त ही हो जाती है जब वह गांव का गरीब होने के साथ ही राजधानी से दूर किसी वीरान क़स्बे में जीवन गुजार रहा हो।
फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो, फिर से एक बार नीतीशे कुमार हो। लिखने वाले ने क्या लिखा था और गाने वाले ने क्या गाया था। लेकिन नीतीश कुमार ने इन दिनों बिहार को जो बनाया है उसे बहारे वाला बिहार तो बिल्कुल भी नहीं कहेंगे। 154 मौतों के एक महीने बाद मुख्यमंत्री जब विधानसभा में बोलने आते हैं तो अपनी तारीफों की झड़ी लगा देते हैं। बिहार के सुशासन वाले मुख्यमंत्री ने 14 सालों में कितना बड़ा तीर मारा है, वो उन्होंने आंकड़ों के सहारे विधानसभा में बताने की कोशिश की। नीतीश ने सदन में जो आंकडें पेश किए उस पर पहले नजर डालते हैं। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रॉम (एईएस) आम बोलचाल की भाषा में कहें तो चमकी बुखार से 2012 में 424 बच्चों की मौत होती है। 2013 में यह आंकड़ा 222 और 2014 में 379 पहुंचता है। 2015 में 90 और 2016 में 103 और 2017-18 में क्रमश: 54 और 33 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। वहीं साल 2019 में 154 बच्चे मर जाते हैं। 2019 के ये सरकारी आंकड़े 28 जून तक के ही हैं और इसमें इजाफा भी हो सकता है। लेकिन 2018 के मुकाबले 2019 में पांच गुणा ज्यादा मौतें हुई हैं और लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार ने कुछ किया ही नहीं, तो ये आंकड़ा क्या ऐसे ही जमा हुए हैं। एक-एक बच्चे की लाश का हिसाब देते नीतीश कुमार ने 14 बरस के सुशासन का निचोड़ सामने रख दिया।
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