मीनाक्षी के सहारे पंजाबी समुदाय को साधने का प्रयास, मदनलाल खुराना के बाद नहीं मिली थी किसी को तरजीह !
साल 2014 से दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है। ऐसे में अन्य राज्यों की तरह मोदी मंत्रिमंडल में दिल्ली को भी शामिल किया जाना स्वभाविक था।
नयी दिल्ली। भाजपा का लोकप्रिय चेहरा और बेहतरीन वक्ता मीनाक्षी लेखी अपने राजनीतिक विरोधियों का मुकाबला करते हुए लंबे वक्त से पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों की वकालत करती रहीं और इसी काबिलियत के कारण उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह मिली। केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के इस्तीफा दिए जाने के बाद मीनाक्षी लेखी केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के तौर पर जगह मिली है। लेकिन इस फैसले के पीछे सरकार की क्या सोच रही होगी। इसके कयास लगाए जा रहे हैं।
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साल 2014 से दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है। ऐसे में अन्य राज्यों की तरह मोदी मंत्रिमंडल में दिल्ली को भी शामिल किया जाना स्वभाविक था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में डॉ. हर्षवर्धन को जगह दी गई। पहली और दूसरी मंत्रिमंडल में हर्षवर्धन को शामिल किया गया लेकिन कोरोना महामारी की वजह से उनकी कुर्सी छिन गई।
ऐसे में दिल्ली के कोटे से किसी-न-किसी नेता को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना था। तब इस रेस में सांसद व पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी, सांसद प्रवेश वर्मा, सांसद गौतम गंभीर जैसे नाम थे लेकिन सभी को निराशा ही हाथ लगी। जानकारों के मुताबिक मीनाक्षी लेखी पर सोच-समझकर दांव खेला गया है। एक तो मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के हिसाब से उन्हें शामिल किया गया लेकिन दूसरी वजह सबसे अहम है।
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जानकार बताते हैं कि दिल्ली में लंबे समय से पंजाबी समुदाय उपेक्षित महसूस कर रहा था। उनकी भागीदारी बिल्कुल न के बराबर ही थी। पिछले डेढ़ दशक से पंजाबी समुदाय के किसी नेता को न तो प्रदेश अध्यक्ष और न ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई प्रतिनिधित्व मिला था। ऐसे में इनकी नाराजगी को भी दूर करना अहम था। बता दें कि पंजाबी समुदाय के मदनलाल खुराना के बाद किसी को भी पार्टी में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला था। ऐसे में अब मीनाक्षी लेखी को आगे बढ़ाकर पंजाबी समुदाय को साधने का प्रयास किया गया है।
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