Delhi air pollution: CAQM ने एनसीआर स्कूलों के लिए GRAP दिशा-निर्देशों में महत्वपूर्ण बदलाव किया
वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ है। बुधवार को भी वायु गुणत्ता गंभीर श्रेणी में बनी रही थी। इस दौरान दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य इलाकों में धुंध की पतली चादर छाई रही।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर इन दिनों वायु प्रदूषण से बेहाल है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता गंभीर स्थिति में बनी हुई है। हालांकि वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार हुआ है। बुधवार को भी वायु गुणत्ता गंभीर श्रेणी में बनी रही थी। इस दौरान दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्य इलाकों में धुंध की पतली चादर छाई रही।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा शेयर की गई जानकारी के मतुाबिक हर रोज शाम चार बजे वायु प्रदूषण का स्तर चेक होता है। इस दौरान बीते 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पता किया जाता है जो कि बुधवार को 419 रहा। इससे पहले मंगलवार को इसका स्तर 444 था, जबकि सोमवार को यह "गंभीर प्लस" श्रेणी में लगभग 500 को छू गया था। सीपीसीबी ने कहा कि सोमवार का स्तर 2015 में एक्यूआई ट्रैकिंग शुरू होने के बाद से दर्ज किया गया दूसरा सबसे खराब वायु गुणवत्ता स्तर था।
ऐसा रहा दिल्ली के अन्य इलाकों का हाल
सीपीसीबी के अनुसार, दिल्ली के आनंद विहार (406), अशोक विहार (416), बवाना (419), द्वारका सेक्टर-8 (404), जहांगीरपुरी (437), मुनका (416), नेहरू नगर (410) और कुछ अन्य स्थानों का एक्यूआई गुरुवार 21 नवंबर को सुबह 6 बजे गंभीर श्रेणी में दर्ज हुआ है।
इस दौरान दिल्ली के अलग अलग इलाकों से काफी चिंताजनक फोटो और वीडियो सामने आए है। इंडिया गेट के निकट से प्राप्त फोटो में लोग अपनी रोज सुबह की सैर करते हुए दिखाई दिए है। हालांकि इस दौरान धुंध की चादर आसमान में छाई रही। मगर धुंध होने के बाद भी लोगकर्तव्य पथ पर जॉगिंग करते हुए दिखाई दिए।
दिल्ली-एनसीआर के लिए संशोधित सीएक्यूएम दिशानिर्देश
इस बीच, केंद्र की प्रदूषण निगरानी संस्था वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने बुधवार को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) में बदलाव कर दिया है। इसके तहत अब दिल्ली में योजना के चरण 3 और 4 के तहत दिल्ली और एनसीआर जिलों में स्कूलों को बंद करना अनिवार्य कर दिया गया। इससे पहले, इन उपायों को लागू करने का निर्णय राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया था।
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