कृषि विधेयकों को लेकर कांग्रेस ने कहा- 'ये किसानों के लिए डेथ वारंट पर हस्ताक्षर करने जैसा'

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विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त करने और कार्पोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए दोनों कृषि विधेयक लेकर आयी है। हालांकि सरकार ने इसका खंडन करते हुए कहा कि किसानों को बाजार का विकल्प और उनकी फसलों को बेहतर कीमत दिलाने के उद्देश्य से ये विधेयक लाए गए हैं।

नयी दिल्ली। राज्यसभा में रविवार को कांग्रेस नीत विभिन्न विपक्षी दलों ने कृषि संबंधी संबंधी दो विधेयकों की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि वे किसानों के ‘डेथ वारंट’ पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। कई दलों ने दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की वहीं सत्तारूढ़ भाजपा ने आरोप लगाया कि कुछ पार्टियां किसानों को गुमराह कर रही हैं। विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समाप्त करने और कार्पोरेट जगत को फायदा पहुंचाने के लिए दोनों कृषि विधेयक लेकर आयी है। हालांकि सरकार ने इसका खंडन करते हुए कहा कि किसानों को बाजार का विकल्प और उनकी फसलों को बेहतर कीमत दिलाने के उद्देश्य से ये विधेयक लाए गए हैं। सदस्यकृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 पर सदन में एक साथ हुयी चर्चा में भाग ले रहे थे।

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माकपा सदस्य के के रागेश, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, द्रमुक के टी शिवा तथा कांग्रेस के केसी वेणुगापोल ने दोनों विधेयकों को प्रवर समिति में भेजे जाने का प्रस्ताव पेश किया। दोनों विधेयकों पर चर्चा की शुरआत करते हुए कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा ने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक किसानों की आत्मा पर चोट हैं, यह गलत तरीके से तैयार किए गए हैं तथा गलत समय पर पेश किए गए हैं।उन्होंने कहा कि अभी हर दिन कोरोना वायरस के हजारों मामले सामने आ रहे हैं और सीमा पर चीन के साथ तनाव है। उन्होंने कहा कि हम किसानों के ‘डेथ वारंट’ पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। बाजवा ने आरोप लगाया कि सरकार का इरादा एमएसपी को खत्म करने का और कार्पोरेट जगत को बढ़ावा देने का है। उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार ने नए कदम उठाने के पहले किसान संगठनों से बातचीत की थी ? उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक देश के संघीय ढांचे के साथ भी खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि सरकार के नए कदम से पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का सबसे ज्यादा नुकसान होगा।

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 भाजपा के भूपेंद्र यादव ने दोनों विधेयकों का समर्थन करते हुए कहा कि इन दोनों विधेयकों की परिस्थिति पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आजादी के समय शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आय का अनुपात 2 : 1 (दो अनुपात एक) था जो अब 7 : 1 (सात अनुपात एक)हो गया है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसा क्यों हो गया ? उन्होंने कहा कि किसान 70 साल से न्याय के लिए तरस रहे हैं और ये विधेयक कृषि क्षेत्र के सबसे बड़े सुधार हैं। उन्होंने कहा कि दोनों विधेयकों से किसानों को डिजिटल ताकत मिलेगी और उन्हें उनकी उपज की बेहतर कीमत मिल सकेगी। इसके अलावा उन्हें बेहतर बाजार मिल सकेगा और मूल्य संवर्धन भी हो सकेगा। उन्होंने कहा कि 2010 में संप्रग सरकार के कार्यकाल में एक कार्यकारी समूह का गठन किया गया था और उसकी रिपोर्ट में अनुशंसा की गयी थी कि किसानों के पास विपणन का विकल्प होना चाहिए। उसी रिपोर्ट में कहा गया था कि किसानों के लिए बाजार प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। यादव ने आरोप लगाया कि अब कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है और किसानों को रोकना चाहती है।

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उन्होंने इस आशंका को दूर करने का प्रयास किया कि एमएसपी समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है और इन विधेयकों का मकसद एकाधिकारी प्रवृति को समाप्त करना है। सपा के रामगोपाल यादव ने कहा ‘‘ ऐसा लगता है कि कोई मजबूरी है जिसके कारण सरकार जल्दबाजी में है।’’ उन्होंने कहा ‘‘ दोनों महत्वपूर्ण विधेयक हैं और इन्हें लाने से पहले सरकार को विपक्ष के नेताओं, तमाम किसान संगठनों से बात करनी चाहिए थी। लेकिन उसने किसी से कोई बातचीत नहीं की। सरकार ने भाजपा से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ तक से बातचीत नहीं की।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों विधेयक किसान विरोधी हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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