बर्थडे स्पेशल: पटियाला के राजघराने से है कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाता, सियासत के सफर में कई दिग्गजों को दी है शिकस्त
भारतीय राजनेता कैप्टन अमरिंदर सिंह राजघराने से ताल्लुक रखते हैं। वह पंजाब के दो बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस से अपना काफी पुराना रिश्ता खत्म कर भाजपा के साथ नई पारी की शुरूआत की है।
भारतीय राजनीति में कैप्टन अमरिंदर सिंह बहुचर्चित नामों में एक हैं। वह पंजाब के 2 बार सीएम भी रह चुके हैं। पंजाब की सियासत के बेताज बादशाह रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिलहाल भाजपा का दामन थाम लिया है। इससे पहले यह सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस में शामिल हुए थे। अपने दम पर पंजाब में कांग्रेस की वापसी करवाकर अमरिंदर सिंह शीर्ष पार्टी की आखों का तारा बन गए थे। पंजाब की राजनीति में इन्होंने अपना इतिहास बना दिया था। आज के दिन यानि की 11 मार्च को कैप्टन अमरिंदर सिंह का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर अमरिंदर सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पंजाब के पटियाला शहर में 11 मार्च 1942 को कैप्टन अमरिंदर सिंह का जन्म हुआ था। इनके पिता यादविंद्र सिंह पटियाला के महाराजा थे। वह दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इटली और वर्मा भी गए थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह की मां का नाम महारानी मोहिंदर कौर था। अमरिंदर सिंह ने अपनी शिक्षा वेल्हम बॉयज स्कूल और लॉरेन्स स्कूल सनावर से पूरी की है।
आर्मी करियर
अपनी शुरूआती पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरिंदर सिंह ने देहरादून के दून स्कूल से अपने आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने नेशनल डिफेन्स अकादमी और इंडियन मिलिट्री स्कूल ज्वॉइन कर लिया। साल 1963 में अमरिंदर सिंह ने नेशनल डिफेन्स अकादमी और इंडियन मिलिट्री अकादमी से ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर इसके बाद इंडियन आर्मी ज्वाइन कर ली। बता दें कि अमरिंदर सिंह ने साल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी अपना योगदान दिया। इस दौरान वह सिक्ख रेजिमेंट के कैप्टन हुआ करते थे।
राजनीतिक करियर
कैप्टन अमरिंदर सिंह और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी स्कूली मित्र थे। साल 1980 में राजीव गांधी ने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। वहीं राजीव गांधी ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को राजनीति में लाए थे। इसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इंडियन नेशनल कांग्रेस ज्वॉइन कर लिया। साल 1984 में तात्कालिक भारतीय प्रधानमंत्री के ऑपरेशन ब्लू स्टार के आर्मी एक्शन के विरोध के चलते अमरिंदर सिंह ने पार्टी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद वह पंजाब की आंचलिक राजनीतिक पार्टी अकाली दल से जुड़ गए। यहां से उन्होंने तलवंडी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। अकाली दल से चुनाव में जीत हासिल करने के बाद वह पंजाब सरकार में एग्रीकल्चर और फारेस्ट मिनिस्ट्री में शामिल हुए।
फिर मिलाया कांग्रेस से हाथ
साल 1992 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अकाली दल छोड़ दिया और अपनी एक पार्टी बनाई। जिसका नाम शिरोमणि अकाली दल था। लेकिन यह पार्टी कुछ खास कमाल नहीं कर सकी। आगामी विधानसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। हार से परेशान होकर साल 1998 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। हालांकि इसके बाद भी उन्हें इसी साल पटियाला से फिर हार का सामना करना पड़ा। इस बार उन्हें प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा के खिलाफ हार मिली थी। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पंजाब का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।
पहली बार बनें पंजाब के मुख्यमंत्री
इस दौरान वह साल 1999 से 2002 तक प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहे। इसके बाद वह साल 2002 में पंजाब के सीएम बनें। वहीं साल 2010 से साल 2013 तक फिर से पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष के पदभार को संभाला। साल 2014 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा उमीदवार और तात्कालिक वित्त मंत्री अरूण जेटली को लोकसभा चुनाव के दौरान करारी शिकस्त दी थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह 5 बार पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे। इसके बाद साल 2017 में वह एक बार फिर से सीएम बनें। वहीं साल 2021 में जब कांग्रेस ने उनके हाथ से पंजाब की कमान लेकर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को सौंपी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह बागी बन गए।
थामा बीजेपी का दामन
साल 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। लेकिन पंजाब के चुनावों में आम आदमी पार्टी की लहर ऐसी चली कि भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह में से किसी के हाथ पंजाब की सत्ता नहीं आई। पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी के भगवंत मान पर अपना विश्वास जताकर भारी मतों से विजयी बनाया। हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने इस लंबे राजनीतिक सफर में कई बड़े दिग्गज नेताओं को शिकस्त दी है।
किताबें
राजनीति के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह लेखन कार्य भी करते हैं, जहा वह अपने अनुभवों को लिखने का प्रयास करते हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने युद्ध और सिख इतिहास के विषय में काफी कुछ लिखा है। जिसमें ए रिज टू फार, लेस्ट वी फॉरगेट, द लास्ट सनसेट: राइज एंड फाल ऑफ़ लाहौर दरबार, द सिख्स इन ब्रिटेन: 150 इयर्स ऑफ़ फोटोग्राफ आदि मुख्य हैं।
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