बिहार सरकार ने 2.79 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया, वृद्धि दर देश में सबसे अधिक
अगले वित्त वर्ष के लिए राज्य का प्रस्तावित बजट 2,78,725.72 करोड़ रुपये है, जो चालू वित्त वर्ष की तुलना में 16,840 करोड़ रुपये अधिक है। कुल व्यय में एक लाख करोड़ रुपये वार्षिक योजना परिव्यय के लिए निर्धारित किए गए हैं, जिसका सबसे बड़ा हिस्सा (22.20 प्रतिशत) शिक्षा विभाग के लिए आरक्षित है। इसके बाद 13.84 प्रतिशत ग्रामीण विकास के लिए है।
पटना। बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने मंगलवार को 2.79 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। बजट के मुताबिक राज्य की वित्तीय स्थिति अच्छी है और वृद्धि दर देश में सबसे अधिक 10 प्रतिशत से ज्यादा है। राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने विधानसभा में बजट पेश करते हुए कहा कि यह बिहार के लिए गर्व की बात है कि उसकी वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक 10.64 प्रतिशत है। वित्त विभाग संभालने वाले चौधरी ने कहा, हम राज्य के समग्र विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम चालू वित्त वर्ष में 2.5 करोड़ लोगों को गरीबी के चंगुल से बाहर निकालने में सफल रहे। उन्होंने विपक्ष के हंगामे के बीच बजट पेश किया।
इस दौरान विपक्षी दल के सदस्य पलटूराम होश में आओ जैसे नारे लगाते हुए सदन से बाहर चले गए। चौधरी ने राज्य की प्रमुख उपलब्धियां गिनाते हुए मातृत्व मृत्यु में उल्लेखनीय गिरावट का जिक्र किया और कहा कि इसमें 47 प्रतिशत की कमी हुई है। अगले वित्त वर्ष के लिए राज्य का प्रस्तावित बजट 2,78,725.72 करोड़ रुपये है, जो चालू वित्त वर्ष की तुलना में 16,840 करोड़ रुपये अधिक है। कुल व्यय में एक लाख करोड़ रुपये वार्षिक योजना परिव्यय के लिए निर्धारित किए गए हैं, जिसका सबसे बड़ा हिस्सा (22.20 प्रतिशत) शिक्षा विभाग के लिए आरक्षित है। इसके बाद 13.84 प्रतिशत ग्रामीण विकास के लिए है।
स्वास्थ्य पर अनुमानित व्यय वार्षिक योजना परिव्यय का 7.41 प्रतिशत है, जबकि 1.88 प्रतिशत हिस्सा पिछड़े वर्गों और अति पिछड़े वर्गों की भलाई के लिए रखा गया है। बजट दस्तावेज में दावा किया गया है कि राज्य की वित्तीय स्थिति अच्छी है। हालांकि यह भी कहा गया कि राजकोषीय घाटा, राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 5.97 प्रतिशत है, जो निर्धारित सीमा से काफी ऊपर है। बजट दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष में अधिक राजस्व संग्रह के साथ राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 2.98 प्रतिशत पर रह सकता है। यह राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून के अंतर्गत तीन प्रतिशत की सीमा के भीतर है।
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