इस वजह से अमित शाह को मिली नए मंत्रालय की कमान, कभी कहा गया था सहकारिता आंदोलन का पितामह
अमित शाह को ये जिम्मेदारी देने के पीछे मकसद है सहकारिता समिति में जान फूंकने की रणनीति। अमित शाह को इस क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव है। गुजरात की राजनीति में रहते हुए सहकारिता क्षेत्र में पार्टी का परचम तो लहराया ही साथ ही मुनाफा कमाने के कई रिकॉर्ड भी कायम किए।
राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में जब नए मंत्री शपथ ले रहे थे उससे ठीक एक दिन पहले मोदी सरकार ने एक नया मंत्रालय बनाने की घोषणा कर दी। देश में बने सहकारी समितियों को मजबूत बनाने के लिए कैबिनेट विस्तार से ठीक एक दिन पहले सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। कहा गया कि ये मंत्रालय देश में सहकारी समितियों के उत्थान के लिए काम करेगा और सहकारी समितियों को मजबूत करेगा। कुछ राज्यों में इस तरह के विभाग हैं लेकिन केंद्र स्तर पर अब तक सहकारिता सेक्टर के लिए अलग से कोई मंत्रालय नहीं था। ऐसे में अब इस मंत्रालय की कमान अमित शाह के हाथों में है और उन्हें इस मंत्रालय में काम करने का लंबा अनुभव भी है।
अमित शाह को चुने जाने के पीछे की वजह
किसी नए मंत्री को इसकी जिम्मेदारी देने की बजाए देश के गृह मंत्री को इसकी जिम्मेदारी दी गई। दशकों के बाद किसी गृह मंत्री को दूसरे मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। दरअसल, सहकारी समितियों की पहुंच गांव-गांव तक होती है। इन समितियों के संगठन को दुरुस्त करके सरकार सहकार से समृद्धि यानी की गरीबों तक सहकारिता का फायदा पहुंचाना चाहती है। इसलिए लंबे अनुभव वाले अमित शाह को ये मंत्रालय सौंपा गया है। अमित शाह को ये जिम्मेदारी देने के पीछे मकसद है सहकारिता समिति में जान फूंकने की रणनीति। अमित शाह को इस क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव है। गुजरात की राजनीति में रहते हुए सहकारिता क्षेत्र में पार्टी का परचम तो लहराया ही साथ ही मुनाफा कमाने के कई रिकॉर्ड भी कायम किए।
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सहकारिता क्षेत्र में शाह का गुजरात मॉडल
अमित शाह बीजेपी की राष्ट्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ के संयोजक रह चुके हैं। महज 36 साल की उम्र में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसीबी) के सबसे युवा अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उस दौरान सिर्फ एक साल में अमित शाह ने न सिर्फ 20.28 करोड़ का बैंक का घाटा पूरा किया, बल्कि 6.60 करोड़ के लाभ में लाकर 10 प्रतिशत मुनाफे का वितरण भी किया। गुजरात में सहकारिता सेक्टर में बेहतरीन कार्य के लिए अमित शाह को सहकारिता आंदोलन का पितामह भी कहा जाने लगा था।
कोऑपरेटिव्स से जुड़े घोटालों पर लगेगी लगाम?
देश में चल रहे बहुत सारे बैंक या तो भ्रष्टाचार का शिकार हैं या फिर घाटे में डूबे हैं। पिछले कुछ सालों में कोऑपरेटिव्स से जुड़े घोटालों में काफी इजाफा हुआ है। इन पर अंकुश लगाने के लिए भी एक कानूनी फ्रेमवर्क की जरूरत है। हाल ही में महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने कार्रवाई की है। इन्हें उबारने के लिए अब अमित शाह का अनुभव काम आने वाला है।
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