एक इको-सिस्टम ने भारतीय रीति-रिवाजों के इतिहास को किया सेंसर, असम CM ने सेंगोल को लेकर कांग्रेस पर साधा निशाना
सेंगोल हमारी स्वतंत्रता का अभिन्न अंग था, लेकिन पंडित नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद वामपंथियों ने इसे एक संग्रहालय के कोने में 'वॉकिंग स्टिक' के रूप में चित्रित किया।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने नई संसद में स्पीकर की सीट के पास स्थापित होने वाले पांच फीट लंबे राजदंड को 'वॉकिंग स्टिक' के रूप में "रिलीगेट" करके हिंदू परंपराओं के प्रति उपेक्षा प्रदर्शित की है। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अहम भूमिका है। औपचारिक राजदंड को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने अगस्त 1947 में अंग्रेजों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में नेहरू को सौंप दिया था। इसे इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी में रखा गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब उसी सेंगोल को 28 मई को रिसीव करेंगे और नए संसद भवन में स्थापित करेंगे।
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सेंगोल हमारी स्वतंत्रता का अभिन्न अंग था, लेकिन पंडित नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद वामपंथियों ने इसे एक संग्रहालय के कोने में 'वॉकिंग स्टिक' के रूप में चित्रित किया। उन्होंने कहा कि एक और उदाहरण है कि कैसे एक पूरे इको-सिस्टम ने इतिहास की किसी भी घटना को सेंसर कर दिया, जिसने प्राचीन भारत और हिंदू रीति-रिवाजों का महिमामंडन किया। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने पहले कहा था कि राजदंड को उसका सही स्थान दिया गया है।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता में बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने सेंगोल को "अमृत काल" के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाने का निर्णय लिया। संसद का नया भवन 1947 में एक समान घटना का गवाह बनेगा, जिसमें अधीनम (पुजारी) समारोह को दोहराएंगे और पीएम मोदी को सेनगोल प्रदान करेंगे।
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