अंबेडकर विश्वविद्यालय ने और पांच छात्रों के निलंबन के फैसले का बचाव किया

Ambedkar University
ANI

संगठन ने कहा कि मामले के अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने मार्च में निलंबन की कार्रवाई शुरू होने के बाद से कुलपति से मिलने के छात्रों के प्रयासों को नजरअंदाज किया है।

अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली (एयूडी) ने पांच और छात्रों को निलंबित करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए रविवार को कहा कि प्रदर्शनकारियों द्वारा सरकारी वाहनों में कथित तौर पर तोड़फोड़ करने और विश्वविद्यालय के कामकाज में बाधा डाले जाने के बाद यह कार्रवाई की गई।

कुलसचिव नवलेंद्र कुमार सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि पूर्व में की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने शुक्रवार को उनकी और कुलपति अनु सिंह लाठर की कार रोक दी।

सिंह ने कहा, ‘‘वे मेरे वाहन के सामने खड़े हो गए और उसे आगे नहीं बढ़ने दिया। उन्होंने कुलपति की कार को भी रोक दिया और मेरी कार में तोड़फोड़ की। सुरक्षा कर्मियों और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई गई है और एक प्राथमिकी दर्ज की जाएगी।’’

विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने आरोपों को खारिज कर दिया और प्रशासन की कार्रवाई को ‘‘मनमाना एवं दमनकारी’’ बताया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा कि निलंबित किए गए छात्रों ने ‘‘आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा डाली, हमले का प्रयास किया और परिसर के कर्मियों को खतरे में डाला।’’

निलंबित छात्रों में शरण्या वर्मा (छात्र संघ कोषाध्यक्ष), शुभोजीत डे (पीएचडी छात्र), शेफाली (एसएफआई एयूडी सचिव), कीर्तन और अजय शामिल हैं। यह घटना तीन छात्रों--अनन, हर्ष और नादिया-को पांच मार्च को निलंबित किए जाने का आदेश रद्द करने की मांग को लेकर जारी विरोध-प्रदर्शनों के बाद हुई। अनन, हर्ष और नादिया को प्रथम वर्ष के एक छात्र के आत्महत्या के प्रयास से जुड़े मामले का कथित तौर पर राजनीतिकरण करने के लिए निलंबित किया गया था।

सिंह ने कहा, ‘‘मूल निलंबन आदेश प्रेस में जारी एक बयान के कारण दिया गया। इस बयान में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था और एक संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की गई थी।’’ एसएफआई ने एक बयान जारी कर विश्वविद्यालय पर ‘‘असहमति की आवाज को दबाने’’ का आरोप लगाया। उसने यह भी आरोप लगाया कि सुरक्षा कर्मियों और पुलिस ने छात्राओं के साथ ‘‘दुर्व्यवहार किया, उन्हें जबर्दस्ती छुआ और उन पर हमला किया।’’

विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के आंदोलन से परिसर के कामकाज में बाधा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए या कर्मचारियों और छात्रों की सुरक्षा को खतरा नहीं होना चाहिए। एसएफआई ने तोड़-फोड़ और हिंसा के आरोपों को खारिज किया और दावा किया कि छात्रों को परेशान किए जाने की यह अकेली घटना नहीं थी।

संगठन ने दावा किया कि हमले और उत्पीड़न के पिछले मामलों में प्रशासन की “निष्क्रियता” के कारण छात्रों ने प्रेस के समक्ष अपनी चिंताओं को उठाया। पांच मार्च को एयूडी के तीन छात्रों को निलंबित कर दिया गया। एसएफआई ने आरोप लगाया कि इन छात्रों को इसलिए निशाना बनाया गया, क्योंकि उन्होंने परिसर में छात्र को परेशान किए जाने की घटना के खिलाफ आवाज उठाई थी।

छात्र संगठन ने दावा किया कि वे लगातार कुलपति से बात करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्होंने उनसे मुलाकात नहीं की। उसने कहा कि “आनन बिजो और ओआरएस बनाम डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली” मामले में छात्रों के निलंबन को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी और इस पर एक अप्रैल 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई थी।

एसएफआई ने दावा किया कि प्रशासन ने और समय मांगा था तथा अगली सुनवाई आठ अप्रैल 2025 को हुई। संगठन ने कहा कि प्रशासन ने अदालत की सुनवाई के दौरान कहा था कि वह निलंबन के खिलाफ छात्रों के अनुरोध पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है।

एसएफआई ने दावा किया कि अदालत के आठ अप्रैल के आदेश में कहा गया है कि प्रशासन के वकीलों ने पुष्टि की है कि “याचिकाकर्ताओं ने भी अपने निलंबन की कार्रवाई के खिलाफ अपील दायर की है और उक्त अपील पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है।”

संगठन ने कहा कि मामले के अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने मार्च में निलंबन की कार्रवाई शुरू होने के बाद से कुलपति से मिलने के छात्रों के प्रयासों को नजरअंदाज किया है।

एसएफआई ने किसी भी तरह की तोड़फोड़ या हिंसा से इनकार किया और कहा कि कुलसचिव को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया। उसने कुलसचिव पर एक छात्र को कुचलने का प्रयास करने का आरोप लगाया और दावा किया कि “कार का पहिया उसकी गर्दन से महज छह इंच दूर था।”

संगठन ने आरोप लगाया कि प्रशासन का उद्देश्य मामले में देरी करना और प्रदर्शनकारी छात्रों का दमन करना है, जिससे उनके शैक्षणिक करियर को नुकसान पहुंचेगा। हालांकि, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के आंदोलन से परिसर के कामकाज में बाधा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए या कर्मचारियों और छात्रों की सुरक्षा को खतरा नहीं होना चाहिए।

प्रबंधन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालय प्रशासन बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन विरोध के नाम पर धमकाए जाने या हिंसा किए जाने को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।’’ एयूडी प्रशासन अपने फैसले पर अडिग है, जबकि एसएफआई ने सभी आठ छात्रों का निलंबन रद्द किए जाने तक विरोध-प्रदर्शन जारी रखने का संकल्प लिया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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