ब्रिटेन में कीर स्टार्मर की जीत और ऋषि सुनक की हार के सियासी मायने को ऐसे समझिए
सच कहूं तो ब्रिटेन इन दिनों कई संकटों का सामना कर रहा है। इसका सबसे जीता-जागता उदाहरण वहां की अर्थव्यवस्था है, जिसमें वर्ष 2023 में महज 0.1 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई और वर्ष 2024 की शुरुआत में ही मंदी आ गई, जिससे वहां पर जीवन-यापन करना मुश्किल हो चुका है।
ब्रिटेन में पीएम कीर स्टार्मर के नेतृत्व में लेबर पार्टी 14 साल के लंबे इंतजार के बाद गत 6 जुलाई शुक्रवार को वहां सत्ता में आई और कीर प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को करारी शिकस्त दी है। उल्लेखनीय है कि 650 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमन्स में लेबर पार्टी के 412 सांसद जीते हैं, जबकि कंजर्वेटिव पार्टी के महज 121 सांसद। लेकिन वहां की सियासत में यह नौबत क्यों और कैसे आई, इसके सियासी मायने साफ हैं, जिसे जानने की दिलचस्पी ब्रिटिशर्स के अलावा भारतीयों में भी है। इसलिए इस बात की विस्तृत चर्चा हमलोग आगे देखेंगे।
ब्रिटिश सत्ता में भारतीयों की दिलचस्पी भला हो भी क्यों नहीं, क्योंकि ऋषि सुनक के पीएम बनते ही हिंदूवादियों ने उन्हें गौ-भक्त और मंदिर प्रेमी ठहरा दिया। लोगों ने यहां तक कहा कि जिस मुल्क ने भारत पर 200 सालों तक राज किया, आज वहां का शासक एक भारतीय मूल का व्यक्ति बतौर पीएम बन चुका है। वहीं, भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक के बीच के संवाद और जारी फोटोग्राफ भी बिना कुछ कहे सभी कुछ बतला गए।
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इसी कड़ी में भारत में जो कुछ भी कहा और बोला, उसे ब्रिटिश लोग भी बड़े ही ध्यान से सुन-समझ रहे थे और जब अगली बार चुनाव की नौबत आई तो अपना निर्णय सुना दिया और भारतीय मूल के ब्रिटिश व्यक्ति ऋषि सुनक को सत्ता से बाहर करते हुए ब्रिटिश मूल के अंग्रेज कीर स्टार्मर के हाथों अपनी बागडोर सौंप दी। यह तो महज एक कारण हुआ। लेकिन ऋषि सुनक के भारी पराजय की स्थिति वहां की आर्थिक बदहाली और अनवरत सत्ता संघर्ष में भी दृष्टिगोचर होते हैं।
सच कहूं तो ब्रिटेन इन दिनों कई संकटों का सामना कर रहा है। इसका सबसे जीता-जागता उदाहरण वहां की अर्थव्यवस्था है, जिसमें वर्ष 2023 में महज 0.1 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई और वर्ष 2024 की शुरुआत में ही मंदी आ गई, जिससे वहां पर जीवन-यापन करना मुश्किल हो चुका है। आंकड़े चुगली कर रहे हैं कि अक्टूबर 2022 में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। भले ही पीएम सुनक के उपायों से हाल ही में महंगाई में कमी आई है, लेकिन महंगाई डायन ने लोगों को नाराज कर दिया, जिससे ऋषि सुनक को नजर लग गई और उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि ब्रिटेन में सार्वजनिक सेवाएं चरमरा गई हैं। नेशनल हेल्थ सर्विस के समक्ष फंड का संकट उतपन्न हो चुका है। आम नागरिकों को समय पर और सस्ती मेडिकल सहायता प्राप्त करना कठिन हो गया है। वहीं, आप्रवासन विशेषकर तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान से शरण की तलाश में ब्रिटेन आने वाले लोगों ने पश्चिमी देश की चिंता बढ़ा दी है। यह देश के लिए एक गम्भीर मुद्दा है, जिसका दोष कंजर्वेटिव पार्टी के नेता ऋषि सुनक पर ही गया।
ब्रिटेन की जनता के बड़े हिस्से का दो टूक मानना है कि सरकार स्वास्थ्य और रक्षा से लेकर आव्रजन और अर्थव्यवस्था तक लगभग हर बड़े मुद्दे संभालने में विफल साबित हुई है। वहीं, बीते कुछ वर्षों में कंजर्वेटिव पार्टी विभाजित होती दिखाई पड़ी, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई और इसकी कीमत प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को अपनी सत्ता गंवा कर चुकानी पड़ी।
समझा जाता है कि यूरोपीय संघ से बाहर होने का ब्रिटेन का फैसला कई मामलों में उसपर भारी पड़ रहा है। इसलिए इस मुद्दे पर भी पुनर्विचार की जरूरत महसूस की जा रही है।
वहीं, दूसरी ओर लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर भारत से नई रणनीतिक साझेदारी के पक्षधर रहे हैं, जिसका फायदा उन्हें मिला। आंकड़े बता रहे हैं कि लेबर पार्टी से भारतीय मूल के सबसे ज्यादा 17 सांसद, जबकि कंजर्वेटिव पार्टी से महज 3 सांसद और लिबरल डेमोक्रेट्स से सिर्फ 1 सांसद चुने गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सियासी एक्सपर्ट की राय है कि कीर स्टार्मर ने भारतीय मूल के लोगों के साथ लेबर पार्टी के सम्बन्धों में सकारात्मक बदलाव की वकालत की है, जिसका सीधा फायदा उन्हें मिला। वहीं, भारतीय राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि भारतीय सत्ता पक्ष यानी भाजपा से प्रेरित होकर तत्कालीन ब्रिटिश विपक्ष लेबर पार्टी ने 400 पार का जो नारा गढ़ा, उसने उसे सत्ता तक पहुंचा दिया, जबकि इसके स्वप्नद्रष्टा पीएम नरेंद्र मोदी गठबंधन की बैशाखियों पर निर्भर हो गए।
इतना ही नहीं, स्टार्मर ने लेबर पार्टी को जनादेश मिलने पर भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) समेत नई रणनीतिक साझेदारी का संकल्प जताया था, जो ब्रिटिशर्स को रास आ गई। बता दें कि लेबर पार्टी ब्रिटिश भारतीयों के साथ अपनी पार्टी के रिश्ते को नए सिरे से आकार देने में जुटी है, जो पूर्व नेता जेरेमी कॉर्बिन के कार्यकाल में कश्मीर पर कथित भारत विरोधी रुख को लेकर प्रभावित हुए थे।
उल्लेखनीय है कि बीते साढ़े 4 साल तक पार्टी में जो बदलाव किए गए, उसका यही मकसद है कि एक बदली हुई लेबर पार्टी देश सेवा के लिए तैयार हो चुकी है और जनता ने भी उसे एक नया मौका दे दिया है। ऐसा इसलिए कि ब्रिटेन को कामकाजी लोगों की सेवा में फिर से लगाने को लेबर पार्टी तैयार है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि दिसंबर 2019 में करारी चुनावी हार के बाद लेबर पार्टी की किस्मत में प्रभावशाली और विजयी उलटफेर के लिए जो अद्भुत व अकल्पनीय प्रयास किये गए, उसका श्रेय अब स्वाभाविक रूप में कीर स्टार्मर के खाते में ही जायेगा।
बता दें कि हाउस ऑफ कॉमन्स के 650 सीटों में से लेबर पार्टी को 412 सीटों पर जीत मिली है, जबकि कंजर्वेटिव पार्टी महज 121 सीटों पर सिमट चुकी है। हालांकि सुकून की बात यह है कि भारतवंशी सांसदों की संख्या में वहां पर लगभग दुगुना इजाफा हुआ है, जो 15 से बढ़कर 27 तक पहुंच चुके हैं।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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