Chip War: दुनिया जिस चिप्स/सेमीकंडक्टर की कमी से जूझ रही है, वो है क्या? भारत आज तक इसे क्यों नही बना पाया ?
सेमीकंडक्टर का मतलब अर्धचालक होता है। इसमें एक खास तरह का पदार्थ होता है। इसमें विद्युत के सुचालक और कुचालक के गुण होते हैं। ये विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करने का काम करते हैं।
क्या आपने हाल ही में एक कार बुक की और डिलर अब आपको बता रहा है कि डिलीवरी में देरी हो सकती है। क्या आपको नया गेमिंग कंसोल प्राप्त करने में परेशानी हो रही है। क्या स्मार्टफोन की बढ़ती कीमतें आपको अभी के लिए अपने पसंदीदा फोन से दूर कर रही है या फिर जो फोन आप लेना चाह रहे हैं वो चाह कर भी नहीं ले पा रहे हैं। हम यहां विभिन्न उद्योगों में कमी के बारे में बात कर रहे हैं। चाहे वो ऑटोमोबाइल, गेमिंड कंसोल, स्मार्टफोन ये सभी कमियां आपस में जुड़ी हुई हैं। एक छोटा कंप्यूटर चिप, दुनिया जिसकी कमी से जूझ रही है। दुनिया चिप्स और सेमीकंडक्टर की कमी से जूझ रही है। इलेक्ट्रॉनिक से लेकर कार निर्माता तक सभी इस कमी से प्रभावित हैं। ऐसा क्यों हो रहा है और निहितार्थ क्या हैं इसके निहितार्थ क्या है? इससे बचाव का रास्ता क्या है?
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दुनिया जिस चिप्स/सेमीकंडक्टर की कमी से जूझ रही है, वो है क्या?
सेमीकंडक्टर का मतलब अर्धचालक होता है। इसमें एक खास तरह का पदार्थ होता है। इसमें विद्युत के सुचालक और कुचालक के गुण होते हैं। ये विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करने का काम करते हैं। इनका निर्माण सिलिकॉन से होता है। उसमें कुछ विशेष तरह के गुणों में बदलाव लाया जा सके। पर्दाथ का इस्तेमाल करेक विद्युत सर्किट चिप बनाया जाता है। कई हाईटेक उपकरणों में इस चिप को इंस्टॉल किया जाता है। सेमीकंडक्टर चिप के जरिए ही डाटा की प्रोसेसिंग होती है। इस कारण इसको इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिमाग कहा जाता है। दुनिया इसे विभिन्न नामों से जानती है। कोई इसे चिप्स तो कोई सेमीकंडक्टर कहता है। किसी के लिए ये न्यू ऑयल है तो कहीं 21वीं सदी का हार्स शू नेल कहलाता है। चाहे आप इसे जिस नाम से भी पुकारे लेकिन इनका इस्तेमाल सभी जगहों पर होता है। स्मार्टफोन से लेकर कार तक में ये यूज में आता है।
उत्पाद में करनी पड़ रही कटौती
अमेरिका, जापान, यूरोप और एशिया में वाहनों का उत्पादन धीमा पड़ गया। जापानी निर्माताओं का प्रदर्शन 2022 की अंतिम तिमाही में लगभग दो वर्षों में सबसे कम हो गया। वैश्विक मांग में कमी की संभावना ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए दृष्टिकोण को धूमिल कर दिया। यानी जापानी वाहन निर्माता अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह इन पार्ट्स का न होना है जो चिप्स के सहारे ही चलते हैं। टोयोटा के अपने इस साल के उत्पादन लक्ष्य में कटौती करने की उम्मीद है। जिसकी सबसे बड़ी वजह चिप्स की कमी है और यही हाल कार कंपनी निसान का भी है।
चिप की कमी के पीछे 3 कारण
1. चिप की मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है। इसके पीछे की वजह कोरोना महामारी भी है। कोविड से जुड़े प्रतिबंधों की वजह से इसका उत्पाद प्रभावित हुआ। इस वजह से पिछले एक साल से इसके उत्पादन में भारी कमी आई है। जिससे इसकी सप्लाई डिमांड की तुलना में काफी कम हो गई है।
2. लॉकडाउन में घरों में कैद रहने की वजह से लोगों ने ज्यादा डिवाइस की ओर रुख किया। वर्क फ्रॉम होम से लेकर ऑनलाइन क्लासेज जैसी चीजों ने कंप्यूटर, टैबलेट, फोन की खरीद में काफी वृद्धि की। नतीजतन निर्माता ने चिप्स जमा करना शुरू कर दिया। इसने एक ऐसी कमी पैदा कर दी है जिसका सामना दुनिया अभी भी कर रही है।
3. सबसे बड़ी समस्या ये है कि पूरी दुनिया में बहुत कम कंपनियां सेमीकंडक्टर चिप बनाती है। ताइवान, चीन, साउथ कोरिया और जापान जैसे देश दुनिया में सबसे बड़े सेमीकंडक्टर बनाने वाले देश हैं। ये सभी अभी प्रेशन में हैं। ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) के हाथ में चिप के ग्लोबल मार्केट का आधे से ज्यादा हिस्सा है। अनुमान है, कंपनी 90% आधुनिक माइक्रो प्रोसेसर सप्लाई करती है। चीन अमेरिका ट्रेड वॉर की वजह से सप्लाई चेन भी प्रभावित हुई है। रही सही कसर रूस यूक्रेन युद्ध ने आर्थिक रूप से प्रभावित किया है। माना जा रहा है कि कंपनियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के बावजूद साल 2023 तक इसकी कमी बनी रहेगी। जाहिर है इसका असर कार निर्माता कंपनियों के निर्माण पर भी पड़ेगा।
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पिछले 50 साल में सेमीकंडक्टर चिप्स का बढ़ा महत्व
पिछले 50 साल में सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्व बेहद बढ़ा है। 1969 में अंतरिक्ष यान अपोलो के लुनार मॉड्यूल ने 35 किलो वजनी हजारों ट्रांजिस्टर चंद्रमा पर भेजे थे। आज एपल की मेकबुक में 16 अरब ट्रांजिस्टर का वजन केवल डेढ़ किलो है। मोबाइल फोन, इंटरनेट से जुड़ी वस्तुओं , 5 जी, 6 जी टेलीकॉम नेटवर्क और कंप्यूटिंग की बढ़ती मांग से चिप्स के उपयोग में विस्तार होता रहेगा। 2020 में विश्व में 33 लाख करोड़ रुपए से अधिक चिप की बिक्री हुई थी। इसमें हर साल 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है।
भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर
भारत में कोई भी कंपनी अपनी सेमीकंडक्टर चिप नहीं बनाती है। देश इस मामले में पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। अधिकांश चिप भारत के कार निर्माताओं को मलेशिया से सप्लाई किए जाते हैं। भारत में चिप बनाने वाले फैब्रिकेशन प्लांट या फैब यूनिट नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के निवेशकों को आमंत्रित करते हुए कहा, '' भारत में 2026 तक 80 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर की खपत होने लगेगी और 2030 तक ये आंकड़ा 110 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
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