हस्ताक्षर अभियान, यात्रा की कमान, ऐसे ही नहीं हो गए रामलला विराजमान, सारथी के रथ को अपने मुकाम पर पहुंचाने की कहानी

Modi role in Ram Janmabhoomi
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jan 22 2024 2:31PM

चाणक्य कहते हैं कि जो शासक धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म माना जाता है। जिसमें ये दो गुण हैं वही राजा बनने योग्य है। रामजन्म भूमि आंदोलन का शंखनाद करने वाली लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जारी थी, जो अब 32 साल बाद अपनी मंज़िल पर पहुंची।

वो आए तो सबने कहा- आने दो देख लेंगे, उसने देखा तो सबने कहा- देखने दो कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन उसने जीत लिया तो सबने कहा- भारतीय लोकतंत्र का इतिहास नेपोलियन हिटलर को देख रहा है। लेकिन इन सब बातों से बेपरवाह उसने वो पुरानी कहावत को सोलह आने सच साबित करके दिखाया कि ‘''वो आया, उसने देखा और जीत लिया''। अयोध्या में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई है। पीएम मोदी मुख्य यजमान रहे। उन्होंने विधि-विधान से अनुष्ठान की क्रियाएं पूरी कीं। पीएम ने कमल के फूल से पूजा-अर्चना करने  बाद भगवान राम के बालस्वरूप के दर्शन किए। अंत में पीएम मोदी रामलला के चरणों में साष्टांग हो गए। बाद में जब पीएम मोदी कार्यक्रम के मंच पर पहुंचे तो वहां उन्होंने 11 दिन का विशेष अनुष्ठान व्रत खोला। चाणक्य ने शासक बनने और सत्ता संभालने से संबंधित कुछ नीतियां बताई थीं। चाणक्य कहते हैं कि जो शासक धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म माना जाता है। जिसमें ये दो गुण हैं वही राजा बनने योग्य है। रामजन्म भूमि आंदोलन का शंखनाद करने वाली लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जारी थी, जो अब 32 साल बाद अपनी मंज़िल पर पहुंची। यात्रा में सारथी की भूमिका निभाने वाले नरेंद्र मोदी ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही रथ को अपने मुकाम पर पहुंचा दिया है। भाजपा में प्रतिनियुक्त होने से पहले मोदी, आरएसएस कैडर थे, ऐसा एक संगठन जो पहले से ही राम जन्मभूमि में गहराई से शामिल था। राम जन्मभूमि आंदोलन में मोदी की भूमिका के बारे में जानते हैं। 

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1980 का दशक

राम मंदिर के पीछे बीजेपी के संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। बीजेपी के अहम किरदार के तौर पर नरेंद्र मोदी सामने आते रहे हैं। 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को केवल दो सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद बीजेपी के साथ संघ ने तय किया था कि अब राम मंदिर को मुद्दा बनाया जाएगा। 1986 में लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की जगह ली। अध्यक्ष बनने के एक साल के अंदर ही संघ के एक प्रचारक नरेंद्र मोदी को सक्रिय राजनीति में एंट्री मिली। 1987 में आडवाणी ने मोदी को बीजेपी गुजरात ईकाई का संगठन सचिव बना दिया। इसके कुछ ही दिनों बाद एक यात्रा निकाली गई। जिसका नाम न्याय यात्रा था। ये राम मंदिर आंदोलन को तेजी देने के लिए निकाली गई थी। यात्रा गुजरात के गांव-गांव गई और काफी सफल भी रही। एंडी मैरिनो ने नरेंद्र मोदी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी में लिखा है मोदी ने अपनी सावधानीपूर्वक और संपूर्णता के साथ 600 गांवों के माध्यम से यात्रा के गुजरात चरण का आयोजन किया और मुंबई तक इसका अनुसरण किया। इस यात्रा के साथ ही मोदी का कद बड़ा होता गया। उन्हें भी बीजेपी की राष्ट्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाया गया। इस बीच 1989 के लोकसभा चुनान हुए और बीजेपी को 89 सीटें मिली। इसके अलावा, वह राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान बेहद सक्रिय थे और राज्य के विभिन्न गांवों से समर्थन पाने की कोशिश कर रहे थे। 1989 मे मोदी ने विहिप को 'राम शिला पूजन' आयोजित करने में मदद की थी, जहां समूह ने प्रस्तावित राम मंदिर के लिए लोगों से ईंटें एकत्र की थीं। मोदी के भाषणों में से एक 'लोक अदालत में अयोध्या' (जनता की अदालत में अयोध्या) को कथित तौर पर बहुत पसंद किया गया था और कैसेट की हजारों प्रतियां बेची गईं। 

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1990 का दशक

राम मंदिर आंदोलन का फायदा बीजेपी को साफ साफ दिखने लगा था। इसे देखते हुए उस वक्त बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी ने एक रथ यात्रा की तैयारी की। इस रथ यात्रा के संयोजन का जिम्मा नरेंद्र मोदी को मिला।  सितंबर 1990 में सोमनाथ-अयोध्या राम रथ यात्रा शुरू हुई और नरेंद्र मोदी गुजरात भाजपा के महासचिव थे। उन्होंने यात्रा के गुजरात-चरण के सारथी के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाई। 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से निकली इस यात्रा में लाल कृष्ण आडवाणी के साथ नरेंद्र मोदी भी यात्रा के संयोजक के तौर पर मौजूद रहे थे। 12 सितंबर को सोमनाथ से यात्रा की शुरुआत से लेकर 28 सितंबर तक रथ यात्रा के ठाणे तक वो इस रथ यात्रा का सारा काम संभाले थे। राम रथ यात्रा गुजरात में पूरी शांति के साथ गुजरी। इसके हर पड़ाव, हर सभा को नरेंद्र मोदी मैनेज कर रहे थे। उन्होने काम सफलता से कर दिखाया। इसके साथ ही वो लाल कृष्ण आडवाणी और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में चढ़ गए।

 राम मंदिर के लिए  हस्ताक्षर अभियान 

1991 में विहिप द्वारा राम मंदिर के लिए चलाए गए हस्ताक्षर अभियान में भी मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से दिल्ली बोट क्लब में 1991 के वीएचपी कार्यक्रम में भी उनकी तस्वीर ली गई थी। जनवरी 1992 में मोदी ने भी प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मंदिर नहीं बनेगा तब तक वह अयोध्या नहीं लौटेंगे। दिसंबर में आडवाणी, जोशी और उमा भारती जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं की मौजूदगी में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। फरवरी 1993 में मोदी ने राम मंदिर निर्माण के पक्ष में विभिन्न गाँवों से हस्ताक्षर एकत्र करना शुरू किया, उस वर्ष जून तक, मोदी को उनमें से 10 करोड़ मिल गए थे। 

2000 से आज तक

2002 में विहिप ने राम मंदिर की मांग में फिर से जान फूंक दी। कारसेवक फिर से अयोध्या की ओर उमड़ने लगे। 27 फरवरी को गोधरा ट्रेन कांड में 59 तीर्थयात्रियों और कारसेवकों की मौत हो गई और इसके बाद हुए दंगों ने सड़कों को लाल कर दिया। बेशक, उस समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने धीरे-धीरे राम मंदिर मुद्दे के लिए कानूनी समाधान की ओर रुख करना शुरू कर दिया। 1993 में भाजपा के आधिकारिक रुख से एक स्पष्ट विचलन जिसने कानूनी समाधान की संभावना को छोड़ दिया। विहिप ने भी 2014 में राम मंदिर के लिए पत्थर इकट्ठा करने के अभियान की घोषणा की थी। मंदिर के लिए आवाज उठाने के लिए संगठन ने 2015 में मार्च से अप्रैल तक 'रामोत्सव' आयोजित किया था। 2018 मेंआरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी भाषण के दौरान मोदी सरकार से राम मंदिर के निर्माण के लिए एक कानून लाने का आग्रह किया। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट को सौंप दी जाएगी। यह फैसला मोदी के भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से कार्यभार संभालने के छह महीने बाद नवंबर में आया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, मोदी फिर से सामने आए संसद में घोषणा की- फरवरी 2020 में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन, जो अब मंदिर के निर्माण का प्रबंधन कर रहा है। उस वर्ष अगस्त में मोदी ने आधारशिला रखी और भूमि पूजन किया गया। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह पूरा हो गया है और इसके साथ ही लोगों का सदियों पुराना इंतजार भी खत्म हो गया है। रामलला गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं। सोने तथा फूलों से सजी 51 इंच की रामलला की मूर्ति की पहली तस्वीर सामने आई है। तस्वीर में रामलला के सिर पर स्वर्णमुकुट है और गले में हीरे- मोतियों का हार है।

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