देश के सबसे बड़े मंदिर-मस्जिद के विवादों की कहानी: ज्ञानवापी, मथुरा और ताजमहल के साथ ही इन 10 जगहों को लेकर भी फंसा है पेंच
अयोध्या में बीजेपी के मीडिया प्रभारी ने ताजमहल के 22 कमरों को खोलने को लेकर कोर्ट में याचिका दी है। वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में कुतुबमीनार परिसर में पूजा-पाठ को लेकर हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन भी किया। कुतुबमीनार नहीं विष्णु स्तंभ, शाही ईदगाह की जगह श्रीकृष्ण जन्मभूमि, ताजमहल या तेजो महल देश में इन दिनों मंदिर-मस्जिद को लेकर घमासान मचा है।
देश में एक तरफ अजान और हनुमान चालीसा पर घमासाल है। दूसरी तरफ काशी-मथुरा का नारा बुलंद हो रहा है। इस सब के बीच देश के तीन शहरों में माहौल गर्म है। ज्ञानवापी के साथ-साथ अब ताजमहल और कुतुबमीनार पर भी किचकिच शुरू हो गई है। अयोध्या में बीजेपी के मीडिया प्रभारी ने ताजमहल के 22 कमरों को खोलने को लेकर कोर्ट में याचिका दी है। वहीं दूसरी तरफ देश की राजधानी दिल्ली में कुतुबमीनार परिसर में पूजा-पाठ को लेकर हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन भी किया। कुतुबमीनार नहीं विष्णु स्तंभ, शाही ईदगाह की जगह श्रीकृष्ण जन्मभूमि, ताजमहल या तेजो महल देश में इन दिनों मंदिर-मस्जिद को लेकर घमासान मचा है। वैसे आपको बता दें कि भारत में मंदिर और मस्जिद से जुड़ा विवाद कोई नया नहीं है। इमें सबसे ज्यादा चर्चा राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर हुई। लेकिन देश में ऐसे कई विवादित स्थल हैं जिसको लेकर दोनों पक्षों में अलग-अलग राय है। ऐसे में आइए आपको देश के सबसे बड़े मंदिर-मस्जिद विवादों की कहानी बताते हैं। बताते हैं कि कौन से 10 चर्चित मंदर और मस्जिद से जुड़े विवाद हैं, इनकी वजह क्या है और इसका पूरा इतिहास क्या है।
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खत्म हुआ राम लला का वनवास
साल 2019 और 9 नवंबर को भक्तों की आस पर कार्तिक के मास में आखिरकार रामलला का खत्म हुआ था वनवास। सुप्रीम कोर्ट के रामलला के नाम जमीन के हक पर हस्ताक्षर के साथ ही ये तय हो गया था कि अयोध्या में भगवान राम का भव्य और दिव्य मंदिर बनेगा। लेकिन 5 अगस्त 2020 को क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी अपने भगवान अपने इमामे हिन्द के अद्भूत मंदिर के नींव रखे जाने के साक्षी बने। अयोध्या का जिक्र होता है तो साथ ही जिक्र राम मंदिर आंदोलन का भी होता है। जब कारसेवकों ने विवादित ढांचे को 1992 में ढाह दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश का सबसे चर्चित विवाद अब सुलझ चुका है।
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विष्णु स्तंभ- कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
राजधानी दिल्ली स्थित कुतुबमीनार परिसर में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के ढांचे में लगी मूर्तियों को लेकर एक बार फिर से विवाद गहरा गया है। हिंदू संगठनों नाम बदलने की मांग को लेकर कुतुबमीनार के ठीक सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान जय श्रीराम के नारे वहां पर लगाए जा रहे हैं। लोगों की मांग है कि कुतुबमीनार का नाम बदलकर विष्णु स्तंभ कर दिया जाए। विवाद इस बात पर भी है कि कुतुबमीनार के अंदर जगह-जगह देवी-देवताओं की मूर्ति का अवशेष देखने को मिलता है। आरोप है कि मस्जिद परिसर में भगवान की मूर्तियों को जमीन पर रखकर अपमानित किया जा रहा है। कुतुबमीनार परिसर में उल्टी गणेश प्रतिमा पर भी विवाद हो रहा है। संगठनों का कहना है कि मस्जिद में लगी उल्टी मूर्तियों से हिंदू धर्म के लोगों की भावनाओं को काफी ठेस पहुंच रही है इसलिए इन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए। कुतुबमीनार की मौजूदा कॉम्पलेक्स, दीवारों, खंभों पर देवी-देवताओं के चित्र और धार्मिक चिन्ह बने हुए हैं। इनमें भगवान गणेश, विष्णु, यक्ष-यक्षिणी, महावीर और नटराज की आकृतियां भी नजर आएंगी। इसके अलावा यहां भगवान गणेश की एक मूर्ति को लोहे की ग्रिल में कैद करके रखा गया है। कहा जाता है कि ये मूर्ति मंदिर के विध्वंस के बाद बनाई गई मस्जिद की दीवार में लगा दी गई। दावा किया जाता है कि ये मूर्तियां राजा अनंगपाल तोमर के बनाए 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर लाई गई थीं। कुतुब परिसर के खंभे पर आधे गोल आकार में सूर्य देव की मूर्ति उकेरी गई है। दावा है कि इस्लाम में बुत परस्ती हराम है तो कोई भी इस्लामी शासक ऐसी आकृतियां नहीं बनवाएगा। इसके अलावा कुतुबमीनार परिसर में मंगल कशल, शंख, गदा और पवित्र कमल के चिन्ह भी नजर आ जाएंगे। मस्जिद की शिलालेख पर दावा और कुतुबमीनार परिसर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां वो प्रमुख वजह है जो हिन्दू संगठनों को यहां पूजा-पाठ की मांग के लिए प्रेरित करती है और कुतुबमीनार के इस विवाद को ऐसे वक्त में हवा दी जा रही है जब आगरा में ताजमहल और काशी में ज्ञानवापी का विवाद पहले से ही चल रहा है।
ताजमहल-तेजो महल
विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल पर विवाद कोई नया नहीं है। मुगलों की ओर से देश में शासन के दौरान हिंदू धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने को पूरे विवाद का आधार माना जा रहा है। इस मामले में इतिहासविदों की राय अलग है। लेकिन इस विवाद में नया मोड़ तब आया जब ताजमहल के बंद 22 कमरों का राज बाहर लाने की मांग को लेकर ईलाहबाद हाईकोर्ट में अर्जी दी गई है। दावा किया गया है कि ताजमहल मकबरा नहीं महादेव का मंदिर है। ताजमहल को लेकर बीजेपी नेता की तरफ से दायर याचिका दावा करती है कि अंग्रेजों के जमाने से बंद इन कमरों में हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां, प्राचीन शिवलिंग और शिलालेख मौजूद हो सकते हैं। कोर्ट में दायर इस याचिका में ये भी कहा गया है कि आगरा में जिस जगह अभी ताजमहल है, वहां साल 1212 में राजा परमर्दिदेव ने भगवान शिव का मंदिर बनवाया था, जिसे तेजोमहालय या तेजोमहल का नाम दिया गया था लेकिन शाहजहां ने तेजो महालय को तुड़वाकर इसे मकबरा बना दिया।
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काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित श्रृंगार गौरी सहित अन्य विग्रहों में दर्शन पूजन और सुरक्षा की मांग को लेकर इन दिनों विवाद गर्माया हुआ है। वाराणसी के कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ परिसर में श्रृंगार गौरी मंदिर और दूसरे देवी-देवताओं के मंदिरों की स्थिति को लेकर सर्वे करने का निर्देश दिया गया। देवताओं की मूर्ति जिस स्थान पर स्थित है उसे साल भर में एक बार पूजा के लिए खोला जाता है। कोर्ट में पांच महिलाओं ने एक याचिका दायर करके कोर्ट से ऋंगार गौरी मंदिर में रोज पूजा करने की अनुमति दिए जाने की अपील की थी। कहा जाता है कि 11वीं सदी के अंत में विश्वनाथ मंदिर को मोहम्मद गोरी ने लूटा और तुड़वाया था। गोरी के विध्वंस के बाद मंदिर को दोबारा बनवाया गया और 1211 में ये काम गुजरात के एक व्यापारी द्वरा करवाया गया। लेकिन सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान द्वारा तोड़वा दिया गया। फिर राजा मान सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण शुरु किया। लेकिन उन्हें ये काम बीच में रोकना पड़ा। 1585 में राजा टोडरमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। राजा टोडरमल ने इसकी जिम्मेदारी पंडित नारायण भट्ट को सौंपी। भव्य मंदिर बनवाया गया। 18 अप्रैल को औरंगजेब ने पूरे देश में फैले अपने सभी सूबेदारों को खास फरमान जारी किया। सभी सूबेदार अपनी इच्छा से हिन्दुओं के सभी मंदिरों और पाठशालाओं को गिरा दें। मूर्ति पूजा को पूरी तरह से बंद करवा दें। इस आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को खबर दी गई कि काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है। विवादित स्थल के भूतल में तहखाना और मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार का दावा किया जाता है। ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अलावा मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। स्कंद पुराण में भी इन बातों का वर्णन है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर कोर्ट ने 19 मई तक फैसला सुरक्षित रख लिया है। लखनऊ की रहने वाली रंजना अग्निहोत्री ने श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर वाद दायर किया है। इसमें श्री कृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग की गई है। शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। इस स्थल को हिंदू धर्म में भगवान कृष्ण की जन्मस्थली माना जाता है। जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, वहां पहले वह कारागार हुआ करता थाकहा जाता है कि मुगल शासन औरंगजेब ने 1669 में श्रीकृष्ण मंदिर की भव्यता से चिढ़कर उसे तुड़वा दिया था और इसके एक हिस्से में ईदगाह का निर्माण कराया गया था। इसी ईदगाह को हटाने के लिए कोर्ट में वकील विष्णु जैन और रंजना अग्निहोत्री ने कोर्ट में केस दाखिल किया है।
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भोजशाला मंदिर- कमल मौला मस्जिद
मध्य प्रदेश के धार जिले में भोजशाला-कमल मौला मस्जिद का विवाद भी काफी पुराना है। वर्तमान समय में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया(एएसआई) इस विवादित जगह की देखरेख करता है। हिंदू पक्ष की तरफ से इसे माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर भोजशाला बताया जाता है। जबकि मुस्लिम इसे अपनी इबादतगाह यानी मस्जिद बताते हैं। इसके हक को लेकर दोनों पक्ष कोर्ट में केस लड़ रहे हैं। साल 2013 में बसंत पंचमी के दिन यहां काफी तनाव हुआ था। इस दौरान हुई हिंसा के बाद पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी थी क्योंकि हिंदुओं ने जगह छोड़ने से इनकार कर दिया था। इस मंदिर को लेकर दावा किया जाता है कि राजा भोज देवी सरस्वती के उपासक थे। उन्होंने धार में 1034 ईस्वी में भोजशाला के रूप में एक भव्य पाठशाला बनवाकर उनकी प्रतिमा स्थापित की। इतहासकार बातते हैं कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया। बाद में दिलावर खान गौरी ने 1401 ईस्वी में भोजशाला के एक भाग में मस्जिद बनवा दी। 1514 में महमूद शाह खिलजी ने शेष भाग पर भी मस्जिद बनवा दी। ब्रिटिश शासन के वक्त से ही यहां विवाद की स्थिति बनी जो आज तक कायम है।
चर्चिका देवी मंदिर- बीजा मंडल मस्जिद
मध्यप्रदेश राज्य के विदिशा जिले का एक प्रमुख स्थान है जिसे बीजा मंडल के नाम से जाना जाता है। इतिहारकारों की माने तो बीजा मंडल के नाम से ही विदिशा शहर का नाम भेलसा पड़ा था। इसी भेलसा के अंदर बीजा मंडल नाम की इमारत हैं। जिस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही अपना दावा करते हैं। विजय मंदिर सौ गज ऊंचा था और यह तीन सौ मील दूर से दिखाई देता था। इस मंदिर को चर्चिका देवी का मंदिर भी कहा जाता है। इन मंदिरों की स्थापना 10 से 11वीं शताब्दी में हुई है और इनका निर्माण परमार राजाओं द्वारा कराया गया था। जब इस इमारत को लेकर विवाद होने लगा तो इसे जिला प्रशासन ने इसे आर्कियोलॉजी विभाग को सौंप दिया, जिसके बाद इसका नाम बदलकर बीजा मंडल रख दिया गया है। माना जाता है कि 1233-34 में औरंगजेब ने इस बीजा मंडल पर तोपों से हमला करके मंडल को तहस-नहस करा दिया था। औरंगजेब के काल में इस बीजा मंडल की जगह एक विशाल मस्जिद का निर्माण कराया गया था।
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भद्रकाली- जामा मस्जिद
ये कहानी कर्णावती शहर से जुड़ी है जिसे आज अहमदाबाद के नाम से जाना जाता है। गुजरात का ये गौरवशाली नगर अलग-अलग युग में अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा। कभी भद्रा, कभी कर्णावती, कभी राजनगर तो कभी असावल। 9वीं से 14वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र में मालवा-राजस्थान के शूरवीर परमार राजाओं का राज था। 14वीं शताब्दी के बाद मुसलिम अक्रांताओं के आक्रमण का दौर शुरू हुआ। कहा जाता है कि इस दौरान कर्णावती के विराट भद्रकाली माता के मंदिर के शिखर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह मस्जिद का निर्माण करवाया गया। अहमदाबाद में अभी जो जामा मस्जिद है, उसे अहमद शाह प्रथम ने 1424 में बनवाया था। इस मस्जिद के ज्यादातर खंभे हिन्दू मंदिरों के स्टाइल में बने हैं। इसके कई खंभों पर कमल के फूल, हाथी, कुंडलित नाग, नर्तकियों, घंटियों आदि की नक्काशी की गई है, जो अक्सर हिंदू मंदिरों में नजर आते हैं।
अटाला मस्जिद
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थित अटाला मस्जिद भी विवादों से घिरी रही है। कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 1408 में इब्राहिम शरीकी ने कराया था। लेकिन इसको लेकर दावा है कि इससे भी पहले यहां एक सुंदर नगर था, जिसे कन्नौज के राजा विजयचंद्र ने बसाया था, उन्होंने ही इस अटला देवी मंदिर का भी निर्माण करवाया था, लेकिन इब्राहिम के बर्बरता के चलते यह मंदिर धराशाही हो गया था।
आदीनाथ मंदिर- अदीना मस्जिद
दीना मस्जिद पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में स्थित है। भारत की विशालतम मस्जिदों में से एक यह मस्जिद 1396 ई. में सुल्तान सिकंदर शाह द्वारा डेल्ही सल्तनत के खिलाफ शानदार जीत की खुशी में बनवाई गई थी। माना जाता है कि उसने भगवान शिव के प्राचीन आदिनाथ मंदिर को नष्ट करके उसकी जगह अदीना मस्जिद बनवाई थी। अदीना मस्जिद के कई हिस्सों में हिंदू मंदिरों के स्टाइल की डिजाइन नजर आती हैं।
रुद्र महालय मंदिर- जामी मस्जिद
रुद्र महालय गुजरात गुजरात के राज्य के पाटन जिले के सिद्धपुर गांव में स्थित है। रुद्र महालय प्राचिन गुजरात के भव्य हिन्दू मंदिरो मे से एक था। जिसका विध्वंस किया गया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, रुद्र महालय मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में गुजरात के शासक सिद्धराज जयसिंह ने कराया था। रुद्र महालय भगवान शिव के एक और स्वरूप रुद्र स्वरूप को अर्पित है। रुद्र महालय की भव्यता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की सुल्तान अहमद शाह के इतिहासकारों ने इस मंदिर की मूर्तियों की तुलना चीन की मूर्तियों से की है। 1410-1444 के बीच अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर के परिसर को नष्ट कर दिया था। अहमदशाह ने वहां पर एक मस्जिद भी बना डाली जो अब जामी मस्जिद के नाम से जानी जाती है।
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