पिता ने की JP संग पढ़ाई, मुंबई में जन्मा बड़ा भाई, पंडित नेहरू ने घर जाकर दी थी बधाई, जानें श्रीलंका के नए PM का भारतीय कनेक्शन
साल 1920 की शुरुआत में जब अमेरिका में आजादी का संघर्ष तेज हुआ तो इसमें फिलिप ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने भारत की आजादी के लिए आवाज भी उठाई। बाद में साम्राज्यवाद के विरोध में लंदन में संघर्ष किया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फिलिप और उनकी पत्नी कुसुमा श्रीलंका से बचकर भारत में आकर छिप गए थे।
भारत में जहां नए राष्ट्रपति चुनाव, वोटों की गिनती और फिर नए महामहिम का शपथग्रहण समारोह चल रहा था। मीडिया भी इन तमाम खबरों से अटा पड़ा है। लेकिन भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका में राजपक्षे के फरार होने के बाद डूबती लंका को भी राष्ट्रपति की तलाश थी। कई जगह मीम्स भी शेयर किए जा रहे थे कि यशवंत सिन्हा भारत में तो जीतने से रहे। इसलिए उन्हें श्रीलंका का राष्ट्रपति बना दिया जाए। राजपक्षे की फरारी के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को श्रीलंका का नया राष्ट्रपति बनाया गया। जिसके बाद से प्रधानमंत्री का पद खाली था। अब संकटों से जूझ रही श्रीलंका को नया प्रधानमंत्री भी मिल गया है। दिनेश गुणवर्धने ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। गुणवर्धने श्रीलंका के 15वें प्रधानमंत्री बने हैं। वे काफी अनुभवी शख्स हैं। राजपक्षे की सरकार में दिनेश गृह मंत्री थे। वहीं वो विदेश और शिक्षा मंत्रालय भी संभाल चुके हैं।
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जयप्रकाश नारायण के रह चुके हैं सहपाठी
बहुत कम लोग जानते हैं कि नए श्रीलंका प्रधानमंत्री का भारत से घनिष्ठ संबंध रहा है। पूरे गुणवर्धने परिवार का भारत समर्थक झुकाव है। उनके पिता भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग तक ले चुके हैं। उनके पिता फिलिप गुणवर्धने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में जयप्रकाश नारायण और पूर्व भारतीय रक्षा मंत्री वीके कृष्णा मेनन के सहपाठी रह चुके हैं। उन्होंने अमेरिकी राजनीतिक हलकों में साम्राज्यवाद से स्वतंत्रता की वकालत की थी। बाद में लंदन में भारत की साम्राज्यवाद विरोधी लीग का नेतृत्व भी किया था। दिनेश गुणवर्धने के पिता फिलिप गुणवर्धने एक स्वतंत्रता सेनानी रहे थे और भारत जब आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तो इस दौरान वो जेल भी गए। पिता फिलिप को श्रीलंका में समाजवाद के पितामह के तौर पर जाना जाता है। फिलिप भारत से बहुत प्यार करते थे।
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मुंबई में बड़े भाई इंडिका का जन्म
साल 1920 की शुरुआत में जब अमेरिका में आजादी का संघर्ष तेज हुआ तो इसमें फिलिप ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने भारत की आजादी के लिए आवाज भी उठाई। बाद में साम्राज्यवाद के विरोध में लंदन में संघर्ष किया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फिलिप और उनकी पत्नी कुसुमा श्रीलंका से बचकर भारत में आकर छिप गए थे। उसके बाद वो उन सेनानियों से जा मिले जो भारत की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। काफी समय तक वो गिरफ्तारी से बचते रहे। उनके बड़े भाई इंडिका का जन्म 1943 में बम्बई (अब मुंबई) में उस समय हुआ था, जब उनके माता-पिता भारत में छिपे हुए थे। लेकिन 1943 में ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने गिरफ्तार कर लिया। मुंबई की आर्थर रोड जेल में उन्हें रखा गया। एक साल बाद उन्हें श्रीलंका प्रत्यार्पित कर दिया गया। फिर जब युद्ध खत्म हो गया तो उन्हें रिहा करने का फैसला किया गया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके घर जाकर फिलिप और कुसुमा को उनके योगदान के लिए धन्यवाद कहा था। जब श्रीलंका को 1948 में ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी मिली तो फिलिप भी वहां के प्रभावी राजनेता बनकर उभरे। उनके चार बच्चें हैं और चारों ने बहुत ही प्रभावशाली पदों को संभाला है। उनके बेटे देश के कैबिनेट मंत्री भी बने रहे।
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नीदरलैंड से लौटकर संभाली पार्टी की कमान
2 मार्च 1949 को जन्में दिनेश गुणवर्धने ने संसद सदस्य, कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया है। वर्तमान में वो महाजन एकथ पेरामुना (एमईपी) के नेता हैं। शुरुआती शिक्षा रॉयल प्राइमरी स्कूल में हुई है। एमईपी 1956 में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा बना था। उच्च शिक्षा पूरी कर 1979 में नीदरलैंड से लौटने के बाद दिनेश गुणवर्धने ने अपने पिता फिलिप गुणवर्धने की जगह पार्टी का नेतृत्व किया। गुणवर्धने ने 1983 में कोलंबो के उपनगर महारागामा से जीत हासिल कर संसद में प्रवेश किया और 1994 तक एक प्रमुख विपक्षी नेता की भूमिका निभाई। वर्ष 2000 में गुणवर्धने पहली बार मंत्रिमंडल का हिस्सा बने। 2015 तक मंत्रिमंडल में वह वरिष्ठ पदों पर बने रहे।
सामने क्या हैं चुनौतियां?
एक गंभीर आर्थिक संकट के बीच में श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति गुणवर्धने और विक्रमसिंघे दोनों के लिए राह इतनी आसान नहीं है। मुद्रास्फीति की दर अब तक के उच्चतम स्तर पर है और देश के पास भोजन और दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए भुगतान करने के लिए पर्याप्त नकदी नहीं है। विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली नई सरकार के सामने देश को गंभीर आर्थिक संकट से बाहर निकालने और राजनीतिक स्थिरता कायम करने की चुनौती है। श्रीलंका में अप्रैल के मध्य से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी आर्थिक संकट को लेकर अपने नेताओं के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।
-अभिनय आकाश
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