पूर्व मुख्यमंत्री के विचार (व्यंग्य)
विपक्ष में रहकर सत्ता की भूख ज्यादा लगती है। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री कभी कभी ऐसा भी कहते हैं कि नैतिकता भी एक चीज़ होती है। हमने अपनी हुकूमत में चाहे नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा नहीं दिया लेकिन उन्हें देना चाहिए क्यूंकि विपक्ष में रहते हुए नैतिकता का ढोल पीटना हमारा कर्तव्य है।
एक चुनावी सभा में पूर्व मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा, मुख्यमंत्री रहते हुए अगर हम वह सीट हार जाते तो नैतिक आधार पर तुरंत इस्तीफ़ा दे देते। शाम को जब वे घर आए तो उनकी पत्नी ने उनसे मज़ाक करते हुए कहा आज जनसभा में आपने कुछ और ही बात की। आप राजनीतिज्ञ लोग अपना वक़्त बिलकुल भूल जाते हो। आपके मुख्यमंत्री रहते तो दुष्कर्म कांड हुआ था, उस मामले में विपक्ष ने कितना विरोध किया आपका इस्तीफ़ा मांगते रहे, कई संस्थाएं कई महीने तक जुटी रही मगर आपने किसी भी आधार पर इस्तीफ़ा नहीं दिया। आजकल आप कम महत्त्वपूर्ण मामलों में नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा मांगते रहते हो।
उन दिनों मैं मुख्यमंत्री था यार, ऐसा कैसे कर सकता था। अगर ऐसा करता तो आपके ठाठ बाठ भी तो खत्म हो जाते। एक दम उनकी पत्नी को लगा कि बात तो उनके पति की सही, उचित और व्यवहारिक है। उन्हें पता है जब उनके पति विपक्ष में होते हैं, सरकार के पास बहुमत होने के बावजूद, हमेशा गिराने के ख़्वाब देखते रहते हैं। खुद से कहते रहते हैं, हमारा मत है कि सरकार के पास असली बहुमत नहीं है। कुछ ख़ास लोगों से कहते रहते हैं कि हम यदि घोड़ों का व्यापार शुरू कर दें तो वर्तमान सरकार हरी घास का मैदान बन जाएगी और हमारे खरीदे हुए घोड़े उस घास को खा जाएंगे।
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विपक्ष में रहकर सत्ता की भूख ज्यादा लगती है। इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री कभी कभी ऐसा भी कहते हैं कि नैतिकता भी एक चीज़ होती है। हमने अपनी हुकूमत में चाहे नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा नहीं दिया लेकिन उन्हें देना चाहिए क्यूंकि विपक्ष में रहते हुए नैतिकता का ढोल पीटना हमारा कर्तव्य है। वह सोचने लगते हैं कि पैसे देकर विधायक खरीदने के आरोप गंभीर तो हैं, सबूत हो तो सामने लाए जाने चाहिए लेकिन राजनेता सबूत को साबुत कहां छोड़ते हैं। उन्हें याद है जब वे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने भी विपक्ष पर ऐसे ही आरोप लगाए थे। उन्हें अच्छी तरह याद है कि उन्होंने और क्या क्या किया था। परिस्थितियां अनुकूल होते हुए समाज हित में क्या क्या कर सकते थे लेकिन बिलकुल नहीं किया।
रात को सोते हुए वे आंखे खोलकर सपना लेते रहते हैं कि इस बार अगर मुख्यमंत्री बने तो क्या क्या ज़रूर करेंगे। उनकी पत्नी तो कब की सो चुकी होती है। सोने से पहले खुद से कहती हैं, मैंने राजनीति से क्या लेना यार। भगवानजी, प्लीज़ इन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना देना, धन्यवाद।
- संतोष उत्सुक
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