देशभक्ति पढ़ने के दिन आ गए (व्यंग्य)
अब समझदारों द्वारा शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल करने के निर्णय से लग रहा है कि देशभक्ति वाकई पढ़ने की चीज़ होगी। परम्परानुसार उगाई गई कमेटी के मुताबिक़ सैंकड़ों लहराते राष्ट्रध्वजों की प्रेरणादायक छाँव में उच्च मूल्यों और विचारों को स्थापित किया जाएगा...
ऑनलाइन पढ़ाई ने क्या क्या पढ़ा दिया यह ‘पढ़ना’ बाक़ी है इधर देशभक्ति पढ़ने के दिन भी आ गए हैं। किसी भी विषय में प्रवीणता हासिल करने के लिए संजीदगी ज़रूरी है संभवत इसीलिए देशभक्ति को फिर से समझने और समझाने बारे नियमित कक्षाएं शुरू की जा रही हैं। हालांकि पहले देशभक्ति संजोए रखने के लिए फ़िल्में भी बनाई जाती रही लेकिन उनमें व्यवसायिक भक्ति ज्यादा होती थी। विश्वगुरुओं के आश्रम में देशभक्ति की क्लास लेने के लिए अब तो हर कोई अध्यापक हुआ जाता है तभी देशवासियों का विद्यार्थी हो जाना स्वाभाविक है। भारत चीन युद्ध के बाद सिनेमा हाल में फिल्म समापन पर राष्ट्रगान दिखाया जाता था, तब देशभक्ति का जुनून होता था, लेकिन कालांतर में दर्शक फिल्म समाप्त होते ही हॉल से बाहर निकलने लगे। ऐसी स्थिति में देशभक्ति खुद असमंजस में पड़ जाती थी। क्या तब देशभक्ति आराम से ओढ़ने की चीज़ हो चुकी थी? फिर कुछ बुद्धिजन कहते रहे कि देशभक्ति प्रमाणित करने या बाज़ू पर चिपकाकर चलने जैसी चीज़ नहीं है लेकिन दूसरे महा बुद्धिजनों को यह कहना अच्छा नहीं लगा। इस दौरान स्थापित सांस्कृतिक परम्परा के निमित ‘प्रबुद्ध’ नेता, ‘ईमानदार’ अफसर व ‘चुस्त’ ठेकेदार जमकर ‘देशभक्ति’ का निर्माण करते रहे।
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अब समझदारों द्वारा शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल करने के निर्णय से लग रहा है कि देशभक्ति वाकई पढ़ने की चीज़ होगी। परम्परानुसार उगाई गई कमेटी के मुताबिक़ सैंकड़ों लहराते राष्ट्रध्वजों की प्रेरणादायक छाँव में उच्च मूल्यों और विचारों को स्थापित किया जाएगा ताकि आत्मबोध से प्रेरित सवैंधानिक व सामाजिक मूल्यों से ओतप्रोत, प्रतिबद्ध नागरिकों का निर्माण हो सके। देशभक्ति सीखने के बाद उन्हें जिंदगी में ‘कुछ’ बनने या कैसे भी दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ का पाठ पढ़ना ही होगा। पता नहीं इस चीज़, माफ़ करें इस विषय में पास होना ज़रूरी होगा या नहीं। देशभक्ति का सिलेबस ज़ाहिर है विषय विशेषज्ञ ही डिजाइन करेंगे। ऐसे नेता, मंत्री, जिन पर भ्रष्टाचार, हत्या, लूट, बलात्कार के मामले हैं, जिनकी हठीली ज़बान ने समाज में ‘देशभक्ति’ का खून घोल रखा है, का परामर्श तो बिल्कुल नहीं लिया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो देशभक्ति में विशेष ‘महारत’ हासिल की जा सकेगी और ‘देशभक्तों’ की कमी न रहेगी। इस कोर्स की लोकप्रियता बढ़ने के बाद नौजवानों के पास ज़रूर कुछ ठोस करने को होगा। वे समाजवादी, माफ़ करें समाजसेवी भी बनना पसंद करेंगे। उन्हें हैप्पीनेस कोर्स करने की ज़रूरत खत्म हो जाएगी, अगर ऐसा नहीं हुआ तो देशभक्ति का नया कोर्स भी शक के घेरे में आ जाएगा।
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उम्मीद है इस योजना से प्रभावित होकर निजी सेक्टर भी देशभक्ति की कक्षाएं प्रारंभ करेंगे। अनेक ईमानदार कोचिंग सेंटर भी खुलेंगे जहां इस विषय में टॉप करने के लिए टिप्स और खाना मुफ्त दिया जाएगा। क्या इस विषय को इतिहास या हिंदी वाले पढ़ा सकेंगे। आशा है देशभक्ति की कक्षा में पुस्तक प्रेम, वाणी नियंत्रण, पर्यावरण जागरूकता, सचरित्र निर्माण, सामाजिक व आर्थिक समानता के माध्यम से राष्ट्रनिर्माण की शिक्षा दी जाएगी। देशभक्ति कोर्स में बिगड़े हुए, पुराने व युवा नेताओं को सच बोलने, अफवाहों पर विश्वास न करने, झूठे विज्ञापन, जातिवाद, सम्प्रदायवाद और क्षेत्रवाद को बढ़ावा न देने की वैक्सीन दी जाएगी। देशभक्ति के सम्बन्ध में स्थायी मित्र अमरीका से प्रेरणा ली जा सकती है, जहां देशभक्ति पहनने की चीज़ भी रही है, ऐसा वहां के खास कपड़े भी दिखाते हैं।
- संतोष उत्सुक
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