हाय! मास्क और दूरी की मज़बूरी (व्यंग्य)
नियमों की ड्राफ्टिंग करते हुए कहीं गलती से तो दो गज नहीं लिख दिया। सेल्फीज़ और फ़ोटोज़ भी इतनी दूर से और मास्क लगाकर अच्छी नहीं आती। रास्ते में चलते हुए बगल से चाहे जानी दोस्त या जानी दुश्मन निकल जाए पता ही नहीं चलता।
हम सांस्कृतिक, पारदर्शी व सभ्य होते जा रहे समाज के लोग हैं। हमें कुछ भी छिपाने की क्या ज़रूरत है। कभी मास्क पहन लेते हैं तो लगता है मानो झूठ का मुखौटा पहन लिया। वास्तव में बात यह है कि जब दूसरे नहीं पहनते तो फिर हमसे भी नहीं पहना जाता। कुछ समाज सेवीजी कहते रहते हैं कि नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, अगर मास्क पहनना कम मुश्किल मान भी लें लेकिन उसको बार बार ऊपर नीचे करने का समय नहीं है। बंदा फोन हैंडल करे या मास्क। वो अलग बात है कि इस बारे झूठा विज्ञापन करना पड़ता है। जो डब्ल्यूएचओजी कहें मानना पड़ता है। कई बार आंकड़ों को पका कर स्वादिष्ट प्रेस रिलीज़ समाज को खिलानी पड़ती है। मास्क पहन कर पता नहीं चलता कि चेहरे पर कुभाव हैं या सुभाव हैं। यह दिलवालों से पूछो कि दो गज कितना ज़्यादा फासला होता है, वो अलग बात है कि उन्हें पता है कि प्यार का पहला खत लिखने में वक़्त तो लगता है।
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नियमों की ड्राफ्टिंग करते हुए कहीं गलती से तो दो गज नहीं लिख दिया। सेल्फीज़ और फ़ोटोज़ भी इतनी दूर से और मास्क लगाकर अच्छी नहीं आती। रास्ते में चलते हुए बगल से चाहे जानी दोस्त या जानी दुश्मन निकल जाए पता ही नहीं चलता। अब तो आंखों से पहचानने वालों को भी, आत्मविश्वास के बावजूद बहुत मेहनत करनी पड़ती है। उनमें से कुछ ही लोग, बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान सकते हैं वो अलग बात है कि वो भी ज़िंदगी की असलीयत को पहचान पाएं या नहीं। कायदे क़ानून की बात भी बीच में आ ही जाती है, कहने में आ ही जाता है कि कायदे क़ानून किताबों की शान बढ़ाने के लिए होते हैं या फिर विरोधियों को किसी न किसी तरह से फंसाने के लिए होते हैं। बड़ा मुश्किल है अपने ऊपर अनुशासन लागू करना।
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ख़ास लोगों को तो चेहरे की मालिश करवाकर जनता के सामने जाना होता है ताकि मालिश और वैभव दोनों का मिला जुला असर पड़े। मास्क लगाकर तो सारा ग्लो मुरझा सकता है। मास्क के पीछे से भांप निकलकर चश्मे पर पसर जाती है और अरसा बाद दिखा मनपसंद व्यक्ति सामने आने पर पहचाना नहीं जाता। उसके चेहरे पर फ़ैली मुहब्बत भरी नफरत साफ़ नहीं दिखती। मंत्री या संतरी तो महाकिस्मत से बनते हैं, असली राजयोग उनकी जेब में जो रहता है इसलिए मास्क जैसी तुच्छ चीज़ उनकी रक्षा करने के काबिल नहीं होती। उन महाजनों की रक्षा में तो अच्छे दिन और बेहतर रातें पलकें बिछाए रहते हैं। ऐसे लोग जब प्रेरक हों तो उनके चाहने वालों पर उनके व्यक्तित्व का असर उग जाता है, उन्हें भी मास्क लगाने और दूर खड़े होने की ज़रूरत नहीं रहती और मास्क लटकाना आसान हो जाता है।
- संतोष उत्सुक
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