Book Review। 'एक देश-एक चुनाव: भारत में राजनीतिक सुधार की संभावना' चुनावी प्रक्रिया की जटिलताओं को समझाती है किताब

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अनूप बरनवाल 'देशबंधु' ने किताब में सरल भाषा में आंकड़ों को प्रस्तुत किया है और वह सराहनीय है, क्योंकि टेबल के जरिये आंकड़ों को समझना मौजूदा परिस्थितियों में आसान हो जाता है। हालांकि, किताब में अखबार के आंकड़ों को प्रदर्शित किया गया है।

देश में एक देश एक चुनाव को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी। इस बीच, 'एक देश-एक चुनाव: भारत में राजनीतिक सुधार की संभावना' नामक यह पुस्तक आम जन के बीच सार्थक बहस को आगे बढ़ाने का काम करेगी। इस किताब के लेखक अनूप बरनवाल 'देशबंधु' हैं, जो पेशे से अधिवक्ता हैं, लेकिन अपने परिचय में अधिवक्ता की जगह विधिवक्ता शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

अब जैसे की लेखक विधिवक्ता हैं, तो उन्होंने किताब में आंकड़ों के साथ ही तथ्यों को भी समाहित करने का प्रयास किया है। इस किताब में लगभग हर एक पहलू पर बात की गई है। किताब कुल तीन खंडों में है और हर खंड में एक देश एक चुनाव की अवधारणा को बारीकी से समझाया गया है। यूं तो एक देश एक चुनाव हमारे देश के लिए नया नहीं है, क्योंकि आजाद भारत में 1952, 1957, 1962 और 1967 तक लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे, लेकिन 1968-69 में यह परंपरा टूटने लगी और कुछ राज्यों की विधानसभा को समय से पहले ही भंग कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि सिर्फ विधानसभा को ही समयपूर्ण भंग किया गया हो, बल्कि 1970 में चौथी लोकसभा को भी भंग कर दिया गया था और 1971 में लोकसभा के साथ ही कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल का आपस में तालमेल समाप्त हो गया। 

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लेखक ने किताब में एक देश-एक चुनाव की चुनौतियों और समाधान के बारे में, नगरम: शासन-विकेंद्रीकरण की दिशा में और राजनीतिक पार्टी: वंशवाद से लोकतांत्रिक मूल्य की दिशा में तथ्यात्मक चर्चा की। किताब में इन्हीं तीन खंडों का उल्लेख है।

लेखक ने किताब की शुरुआत चुनावी पृष्ठभूमि से की और इसे सटीकता के साथ भविष्य के साथ जोड़ा है, जो लोगों को विषय के साथ बांधकर रखने का भरसक प्रयास है।  

अनूप बरनवाल 'देशबंधु' ने किताब में सरल भाषा में आंकड़ों को प्रस्तुत किया है और वह सराहनीय है, क्योंकि टेबल के जरिये आंकड़ों को समझना मौजूदा परिस्थितियों में आसान हो जाता है। हालांकि, किताब में अखबार के आंकड़ों को प्रदर्शित किया गया है। अगर किसी सरकारी स्त्रोत का इस्तेमाल होता तो इससे विश्वसनीयता और भी ज्यादा बढ़ जाती।

पुस्तक लेखन में अक्सर देखा जाता है कि लेखक किसी एक विचार से प्रेरित हो जाता है और वह उसी एक विचार के इर्द गिर्द एक दुनिया पिरोने की कोशिश में जुटा रहता है, लेकिन इस पुस्तक में ऐसा दिखाई नहीं देता है, बल्कि लेखक की गंभीरता और विचारों की स्पष्टता उभर कर सामने आ रही है और इसमें तथ्यों को प्रधानता दी गई है।

इस किताब में लेखक ने स्पष्ट और सरल भाषा का उपयोग किया है, जो पुस्तक को आम पाठकों के लिए भी सुलभ बनाता है। 'एक देश-एक चुनाव: भारत में राजनीतिक सुधार की संभावना' नामक किताब उन सभी के लिए उपयोगी है, जो भारत की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में रुचि रखते हैं और उसे बारीकी से समझना चाहते हैं।

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