Book Review: बालमन की सहज, सरल और मनोरंजक भाषा की उम्दा कृति
छोटी-छोटी कविताओं के साथ हर पृष्ठ पर विषय के अनुकूल चित्रों का समावेश पुस्तक की शोभा को कई गुणा बढ़ता है। पुस्तक को पढ़ कर कह सकता हूं की इनकी यह कृति जितनी आकर्षक है उतनी ही बालमन की अभिव्यक्ति को इन्होंने बहुत ही सहज, सरल एवं मनोरंजक भाषा में लिखा है।
हाड़ोती के प्रसिद्ध गीतकार और साहित्यकार महेश पंचोली ने गुरुवार एक फरवरी को मेरे निवास पर प्रकाशित तीन पुस्तकें दिया जलता रहा (हिन्दी काव्य संग्रह) एवं 'मम्मी का मैं राजदुलारा' (बाल कविता संग्रह) और धरती लागै बणी-ठणी' (राजस्थानी काव्य संग्रह) की प्रतियां भेंट की।
उनकी कृति "मम्मी का मैं राजदुलारा" बाल काव्य संग्रह आकर्षक कृति बन पड़ी है जिसका आवरण पृष्ठ एक दृष्टि में लुभा लेता है। छोटी-छोटी कविताओं के साथ हर पृष्ठ पर विषय के अनुकूल चित्रों का समावेश पुस्तक की शोभा को कई गुणा बढ़ता है। पुस्तक को पढ़ कर कह सकता हूं की इनकी यह कृति जितनी आकर्षक है उतनी ही बालमन की अभिव्यक्ति को इन्होंने बहुत ही सहज, सरल एवं मनोरंजक भाषा में लिखा है। पुस्तक के 60 पृष्ठ में 52 कवितायें शामिल हैं।
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हिंदी भाषा में उनका यह प्रथम काव्य संग्रह पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, जयपुर (राजस्थान) द्वारा पाण्डुलिपि प्रकाशन सहयोग योजना के अंतर्गत प्रकाशित किया गया है, जो इनके लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कविताएं चरित्र निर्माण के साथ-साथ शिक्षाप्रद हैं। 'टिक-टिक घड़ी' कविता के माध्यम से समय के महत्व को कितने सुंदर तरीके से बताते हुए समय का सदुपयोग करने संदेश दिया है...
"टिक-टिक करती है घड़ी, चलती समय पर है बड़ी।
वो हमेशा चलती रहती, सीख हमेशा देती रहती।
जो समय पर चलता है, राज उसी का चलता है।
समय बड़ा अनमोल है, हाथ नहीं आता गोल है।
सरताजों का है सरताज, जो करना कर लो आज।"
इसी प्रकार इन्होंने अपनी कविता 'भारत देश' में देश की विशेषताओं को खूबसूरती के साथ इस प्रकार प्रस्तुत किया है...
भारत देश हमारा है, सब देशों से न्यारा है।
सबसे निराली है पहचान, भिन्न भाषाएँ और परिधान।
महापुरुषों की है यह धरती, नदियाँ बहती कलकल करती।
हरियाली की अनुपम छटा, उमड़ - घुमड़ आती घटा।
बना तिरंगा इसकी शान, देश हमारा सबसे महान है।
कवि की कड़क जलेबी, लड्डु, मदारी आया,रिमझिम बारिश, सुरीली कोयल, घोड़े जी, राजा शेर, अजगर, तुलसी, रसीले आम, चिड़ियाघर, बंदर, ऊँट, मेरी मम्मी, बजती घंटी, नदी, हरे-भरे पेड़, मम्मी-पापा, मछली रानी, चिड़िया रानी, रंग-बिरंगी तितली, बादल, सूरज दादा, चंदा मामा, गाय माता, पार्क जाऊँगा, दादा घड़ियाल, चूहे भाई, हाथी दादा, काला कौआ, मच्छर, आई छिपकली, मियाँ मिठ्ठू, बिल्ली रानी, मेंढ़क, गिरगिट, सुन्दर मोर, गुटर-गूँ, बापू गांधी कविताएं भी रोचक और संदेश परक बन पड़ी हैं।
अपनी बात में कवि कहते हैं, "आज के समय में बच्चों पर शिक्षा का भारी दबाव है। ऐसे में उन्हें मनोरंजन के साथ पढ़ने में बाल काव्य संग्रह मानसिक तनाव को कम करने में मददगार साबित होती है। बच्चे देश के भावी नागरिक हैं अतः उनके चरित्र निर्माण और विभिन्न गुणों से संपन्न बनाने में अपनी साहित्यकार की जिम्मेदारी का निर्वहन करने का प्रयास किया है।" निश्चित ही कवि अपनी इन भावनाओं को साकार करने में पूर्ण रूप से सफल रहे हैं।
पुस्तक का नाम: मम्मी का मैं राजदुलारा
विधा: बाल कविता
लेखक: महेश पंचोली
प्रकाशक: साहित्यागार, जयपुर (राज.)
संस्करण: 2023
मूल्य: ₹ 200/-
पृष्ठ संख्या: 60
समीक्षक
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार,
कोटा (राज.)
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