शोकेस का टमाटर (व्यंग्य)

tomatoes
Creative Commons licenses

मैं कहना चाहता था कि कहीं टमाटर कैरट में बिकता है? और भला कोई इसे इतना महंगा बेचता है? लेकिन शोरूम की तड़क-भड़क देखकर मेरी हिम्मत नहीं हुई। मुझे लगा जब इतने बड़े शोरूम में रखा गया है तो कीमत भी वैसी ही होगी।

किलो में बिकने वाला टमाटर कब कैरेट में बिकने लगा, इसका मुझे अनुमान भी न लगा। सड़क पर बिकने वाली चीज़ कब शोरूम का हिस्सा हो गई इसका पता लगाने तक मेरे बाल सफेद हो गए। फिर भी हिम्मत कर टमाटर के शोरूम पहुँचा। मानो टमाटर मुझे ताक रहा था और मैं उसे। खा न सका तो क्या हुआ जी भर के टमाटर को देख भी नहीं सकता क्या? वहाँ मुझे टमाटर के पास ज्यादा देर रूका देख सेल्समेन सहायता के लिये पास आया। उसने आते ही बताया कि ‘यह’ बहुत अच्छा टमाटर है। एक दम 24 कैरट। किसी हीरे से कम नहीं है। हमारे शोरूम पर हर टमाटर देखभाल कर, संतुष्ट होने के बाद ही रखा जाता है । कीमत थोड़ी ज्यादा है लेकिन गैरंटी देंगे। देखकर आपका पेट न भर जाए तो पैसे लौटा देंगे। साथ में एक स्क्रेच कार्ड भी है। स्क्रेच करेंगे तो गिफ्ट मिलेगा। एक महीने बाद शोरूम का अपना बंपर ड्रा होने जा रहा है। यदि अभी आप यह टमाटर खरीदते हैं तो उसमें आपको भाग लेने का मौका मिलेगा। पहला इनाम ऑडी कार है। पिछली बार यह इनाम आप जैसे ही किसी बंदे को खुला था। इसके अलावा शोरूम दो पास देगा जिससे आप और आपकी पत्नी दोनों तीन दिन और दो रातों के लिए थाईलैंड घूम सकते हैं। इतना टमाटरी व्याख्यान देने के बाद वह मुस्कराते हुए बोला- पैक करवा दूं सर?

मैं कहना चाहता था कि कहीं टमाटर कैरट में बिकता है? और भला कोई इसे इतना महंगा बेचता है? लेकिन शोरूम की तड़क-भड़क देखकर मेरी हिम्मत नहीं हुई। मुझे लगा जब इतने बड़े शोरूम में रखा गया है तो कीमत भी वैसी ही होगी। मैं उसे कैसे बताता कि मेरे पास इतना महंगा टमाटर खरीदने के पैसे नहीं है। 

‘‘पैक करवा दूं सर ?’’ इस बार कहते हुए उसने टमाटर को शोकेस से बाहर निकाला।

इसे भी पढ़ें: बेंगलूरी टमाटर (व्यंग्य)

‘‘नहीं-नहीं, अभी नहीं, मैं फिर कभी आऊँगा।’’ मैंने कहा। उसकी आंखें चमकीं, जैसे कुछ ताड़ लिया हो 

‘‘फिर कभी क्यों सर?..... क्या कैश खत्म हो गया है ?’’

‘‘हां ।‘‘

‘‘क्रेडिट कार्ड नहीं है ?’’ इस बार उसने ‘आप’ और ‘सर’ का इस्तेमाल नहीं किया।

‘‘तो फिर यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘क्यों भई ! बाजार है...... कोई भी आ सकता है .....’’

‘‘ बिना पैसे के बाजार में आना महापाप है..... समझे ...। ..... गार्ड ..... गार्ड ..... इधर आना ....’’

मैं कुछ कहूं इसके पहले गार्ड आ जाता है। ‘‘इनको गेट दिखाओ।’’ कह कर वह चला जाता है। मैं लौटता हूं। पीछे से आवाज सुनाई देती है ‘बड़ा चला था टमाटर के दीदार करने’।

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़