शादी में शगुन भुगतान (व्यंग्य)
हालचाल लेने और देने के बाद वर्मानी, चुनिंदा कपड़े पहन कर आई जान पहचान की महिलाओं में शामिल हो गई। आजकल ज्यादा बेहतर मेकअप के कारण पहचानने में वक़्त लग जाता है। बेटा हाथ में मोबाइल पकड़े हुए सामने बैठे मोबाइल देखते, बतियाते युवाओं में बैठ गया।
कुछ दिनों बाद फिर शादी में जाने का मौक़ा मिला। चोपड़ा व शर्मा, राजकुमार के बेटे के वैवाहिक मेले में चाट और गोलगप्पों पर पिले हुए थे। चोपड़ा बोला, चाट खा लेनी चाहिए, कहीं गुप्ताजी के बेटे की शादी की तरह खाना नहीं मिला तो बीवी गुस्से में बनाई चाय के साथ ब्रैड खानी पड़ेगी। तभी सामने से वर्मा अपनी पत्नी व बेटे के साथ आता दिखा। शर्मा बोला, इनको सपरिवार बुलाया होगा, हमें अकेले बुलाया बीवी से गालियां खिलवाने के लिए। यह कहने के बाद उसने दो तीन मनपसंद गालियां भी चिपका दी।
हालचाल लेने और देने के बाद वर्मानी, चुनिंदा कपड़े पहन कर आई जान पहचान की महिलाओं में शामिल हो गई। आजकल ज्यादा बेहतर मेकअप के कारण पहचानने में वक़्त लग जाता है। बेटा हाथ में मोबाइल पकड़े हुए सामने बैठे मोबाइल देखते, बतियाते युवाओं में बैठ गया। सभी मिलकर तारीफ कर रहे थे, बढ़िया अरेंजमेंट किया है, स्वाद की वैरायटी और ड्रिंक्स जितनी मर्ज़ी।
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भटनागर बोला, वह टाईम गया जब एक बंदा बुलाने पर एक ही बंदा आता था, कार्ड पर पत्नी और पति का नाम लिखने पर बच्चे व बुजुर्ग घर में खिचड़ी खाते थे। कार्ड पर सपरिवार लिखने पर ही सब जाते थे। यदि घर में कोई मेहमान आया होता तो उसके लिए खाना पकाकर फ्रिज में रखकर आते थे। अब तो श्रीमान का नाम हो तो पूरा परिवार टपकता है। कुछ पिछड़े लोग भी हैं जो लिफ़ाफ़े पर लिखे मुताबिक आते हैं। शर्मा बोला तभी तो शादियों में खाना कम पड़ जाता है। लोग अपने मेहमानों को भी ले आते हैं खाते भी ऐसे हैं मानो कई दिन से खाया नहीं। खाना लेते समय कुश्ती जैसी होती है। कुछ लोग पकाने वालों के पास बैठ खाना निबटा लेते हैं।
चोपड़ा ने पूछा, यार वर्मे, तुझे विद फैमिली बुलाया राजकुमार ने? नहीं यार, सिर्फ मुझे बुलाया, पत्नी बोली तो मैंने कहा चलो। कई दिन से कह रही थी हमने बाहर खाना नहीं खाया। मैंने सोचा आज बढ़िया मौका है। काफी लोगों से मिलना मिलाना भी हो जाएगा और वैरायटी फूड भी एन्जॉय कर लेंगे। बेटा छुट्टी पर आया है उसे भी ले आया।
भटनागर बोला, अब शर्म का जमाना नहीं रहा, लोग शादी में दिया जा रहा शगुन, उसी समय वसूलते हैं। खन्ना बोला, वर्मे शगुन ज्यादा देगा क्या। अरे नहीं, शगुन का स्टैंडर्ड रेट होता है जिसे बढ़ाना लोकहित नहीं। हर जगह सपरिवार जाना सोशली अच्छा समझता हूं। कुछ बंदे सपरिवार बुलाते नहीं यह तो उनकी गलती है। सपरिवार पहुंचना मेरी गलती मानी जा सकती है। पत्नी का भी बराबर का हक है उसे घर पर क्यूं छोडूं। शर्मा बोला, सोच तो सही है। समाज में कोई सिस्टम फॉलो नहीं करता तो हम भी सिस्टम के कुत्ते क्यों पालें। लोग, शादी में खाना निबटाने व रिश्ते पटाने जाते हैं। जाओ और न खाओ तो जेब नाराज होती है। अब तो शादी बाद में होती, प्रीतिभोज पहले होता है क्योंकि शगुन वसूलना है।
वर्मा बोला, गलती हो गई, प्रिंस से माफी मांग लूंगा। सबने कहा, सब चलता है। वर्मा सिर्फ ‘शो’ कर रहा था। बिफोर आल, उसने खाने से पहले स्वागत गेट पर शगुन भुगतान कर दिया था।
- संतोष उत्सुक
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