संकल्प न लेने का संकल्प (व्यंग्य)

new year 2023
ANI

इस बार कई दिन से मन ही मन ठान रहा था, जितनी चाहे सर्दी हो जाए, पुराने संकल्पों को अगले बरस पूरी गर्म जोशी के साथ, एक मिशन और जुनून की तरह लूँगा। अड़ोस पड़ोस ही नहीं पूरे शहर के लोगों का योगदान लूँगा और दूंगा।

नया साल धूमधाम से पधारने और पुराना चुपचाप खिसक जाने के बीच कितने ही संकल्प, धारण किए बिना रह जाते हैं। पिछले साल दिसंबर में सोच रहा था कि अगले साल के उपलक्ष्य में आधा दर्जन नए संकल्प तो लेकर रहूंगा। अब एक और नया साल आने को है, सोचता हूं पिछले चार साल से चल रहे अधूरे संकल्प मन ही मन धारण कर लूं। वैसे भी समाज सेवा जैसे अनूठे कार्य के लिए, पुराने अच्छे संकल्प दोबारा ओढ़ लेना, नया नैतिक कार्य करने जैसा ही तो है। 

इस बार कई दिन से मन ही मन ठान रहा था, जितनी चाहे सर्दी हो जाए, पुराने संकल्पों को अगले बरस पूरी गर्म जोशी के साथ, एक मिशन और जुनून की तरह लूँगा। अड़ोस पड़ोस ही नहीं पूरे शहर के लोगों का योगदान लूँगा और दूंगा। महाडिजिटल होती जा रही दुनिया के लिए भी कुछ प्राकृतिक करूंगा। फिर संजीदगी से बैठकर अदरक, तुलसी व काली मिर्च के छौंक से बनी गर्मागर्म चाय पीकर विचार किया तो पिछले सालों ने समझाया, पुराने सारे संकल्प तो शर्म के मारे डूब चुके हैं कुछ नया तैराओ।

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दर्जनों लोगों से सीख लो जो रात दिन एक कर संकल्पों के आधार पर पूरी दुनिया में नाम कमा रहे हैं। आने वाला साल प्रेरित कर रहा है कि हर दिशा में अभी भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। सुना है, दुनिया में पता नहीं कौन सी बार, बहुत से अनूठे मानवीय कार्य किए जा रहे हैं। हम जानवरों के लिए काफी कुछ करते रहते हैं तो क्या इंसानों के लिए नहीं कर सकते। 

संजीदगी से अवलोकन किया जाए तो नए संकल्पों के आधार पर खुद को सुधारने में अक्सर बड़ी परेशानी होती है और संकल्पजी बेहोश हो जाते हैं। दुख की बात यह है कि हम दूसरों को सुधारने के संकल्प ज़्यादा लेते हैं। दूसरों को सुधारने का संकल्प हवा में लच्छा परांठा बनाने जैसा है। ताज़ा व्यवहारिक बात यह है कि संकल्प न लेना भी तो एक स्पष्ट, सुरक्षित संकल्प लेने जैसा ही है। न कोई पंगा, न कोई टेंशन, पूरा साल सुरक्षित। 

जब पता है कि यह वर्ल्ड ट्रेंड है कि कुछ दिन बाद ही अधिकांश नए संकल्प ढीले पड़ जाते हैं और अप्रैल आते आते उन्हें सांस चढ़ जाता है, कुछ की टांग टूट जाती है तो बेहतर है अपने पुराने संकल्प से ही चिपके रहो। कम से कम इस बहाने आत्मसम्मान टिका रहेगा और अपनी नज़र में इज्ज़त भी बनी रहेगी कि नए फालतू संकल्प नहीं लिए। साल के बारह महीने भी नाराज़ नहीं होंगे, उन बेचारों को बेकार के वायदे जो नहीं ढोने पड़ेंगे। 

- संतोष उत्सुक

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