पुस्तक मेले में न जाकर भी (व्यंग्य)

book fair
ANI
संतोष उत्सुक । Feb 28 2023 5:58PM

अब तो, किसी की भी पहली पुस्तक ही वहां मशहूर हाथों से रिलीज़ हो रही है। अनुभवी लेखक की बत्तीसवीं पुस्तक तो वहीं विमोचित होनी ही है। कहीं पढ़ा था किताबें समाज में परिवर्तन ला देती हैं तो दर्जनों के हिसाब से पुस्तकें लिखने वालों ने काफी ज्यादा बदलाव ला दिया होगा।

लेखकों, किताबों व प्रकाशकों के नकद मिलन मेले में इस बार खूब भीड़ है। डिजिटल होने का वैसे बहुत फायदा है लेकिन जो लुत्फ़ सशरीर आमने सामने, सिर्फ इशारों में या पीठ के ठीक पीछे खड़े होकर चर्चा करने में है वह और कहां। हाथ मिलाना तो दिल मिलाना जैसा लगता है। वर्तमान अच्छी यादों में तब्दील होकर भविष्य के लिए संबल बन जाता है। पुस्तक मेले में अपने चिर परिचित, अपरिचित या अतिअपरिचित व्यक्तियों, लेखकों और साहित्यकारों को सामने पाकर मेले में पहुंचने वाला हर बंदा खुद को थोडा सा लेखक तो समझता ही होगा।

अब तो, किसी की भी पहली पुस्तक ही वहां मशहूर हाथों से रिलीज़ हो रही है। अनुभवी लेखक की बत्तीसवीं  पुस्तक तो वहीं विमोचित होनी ही है। कहीं पढ़ा था किताबें समाज में परिवर्तन ला देती हैं तो दर्जनों के हिसाब से पुस्तकें लिखने वालों ने काफी ज्यादा बदलाव ला दिया होगा। ऐसे में क्रान्ति की चाहत रखने वाले आम व्यक्ति के मन में भी लेखन का कीड़ा घुस जाता होगा। किताबों की ताज़ा सुगंध, स्थापित चेहरों और व्यवसायिक लेखकों के साथ फोटो व सेल्फी खिंचवाकर हाथ में कलम होना या कुछ टाइप करना महसूस होता होगा। यह तो हमारी साहित्यिक परम्परा है कि किताब या लेखक से मिलकर हमारा दिमाग सोचने लगता है कि काश हम भी लेखक होते। वह स्मार्ट फोन के मौसम में भी एक अच्छा, महंगा सा पैन खरीदने का निश्चय कर लेता होगा।

इसे भी पढ़ें: सेब नहीं हो सकता आम (व्यंग्य)

कई लोग चुटकी लेते  होंगे कि फलां ने अमुक यशस्वी लेखक के साथ या प्रसिद्ध प्रकाशक के स्टाल पर फोटो खिंचवाकर अपना लेखक होना जताया। लेकिन वहां कोई लेखक होने, बनने या दिखने के लिए ही तो नहीं जाता, किताबी मेले में दूसरों की मिठाई या कुछ भी खाने के बहाने फेस्बुकिया या व्ह्त्सेपिया मित्र लेखक भी तो मिलते होंगे। कुछ लेखक वहां पहुंचकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध लेखक, विमोचक या मुख्यमंत्री या फिर राज्यपाल के प्रसिद्ध हाथों से पुस्तक का विमोचित पैकट खुलवाने की तुलना करते होंगे। मुख्यमंत्री के हाथों विमोचित होने से किताब भी ज्यादा खुश होती है। 

पुस्तक लिखना, छपवाना और विमोचन करवाना आसान हो गया है लेकिन पाठक, मित्रों या सरकार को किताब बेचना मुश्किल है। मेले में होकर फेसबुक और अपनी बुक के लिए काफी सामान मिल जाता है। चित्रों से लगता है वहां सभी एक दूसरे से असली प्यार से, असली गले मिलकर असली खुश होते होंगे। छोटे शहर की साहित्यिक दुनिया की तरह लेखक, वहां बड़े खेमों में बंटे नहीं होते। उनमें ईर्ष्या, एक दूसरे को खारिज करने जैसी कुभावनाएं नहीं होती होंगी। किताबें तो जड़ होती हैं और वे जीवित उनमें ऐसा कुछ नहीं उगता होगा।

युवा लेखक द्वारा माइक पर पढ़ी जाने के बाद रचना धन्य हो उठती होगी। उनके रचनाकार को लगता होगा इतना विशाल जगमग मंच मिलने पर उनका साहित्य, राष्ट्रीय नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया है। किताबों की मस्त चकाचौंध में नवोदित संजीदा लेखक को लगता होगा कि सुविधाओं भरी इस साहित्यिक दुनिया में एक किताब तो वह भी लिख, छपवा और बिकवा सकता है। 

मेरे जैसा बंदा जो कभी मेले में नहीं गया, घर पर बैठ कागज़ काले कर कर ही, पुस्तक मेले में होने जैसा महसूस कर सकता है।

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़