अपने शहर की बातें किया न करो (व्यंग्य)
इस अवांछित सलाह पर चौहतराए बोलने लगे, अपना शहर तो बेहोश लोगों का शहर है। यहां हर तरह की खामोशियों में बढ़ोतरी हो रही है। मुफ्त में मिली अम्बियों से चटनी बनाने वाले, अभी भी कितनी ही जगह कूड़ा फेंकने वाले शान्तिप्रिय, संतुष्ट लोग।
सठियाए, अड़सठयाए या चौहतराए, गंजे, दांत गंवाते, कमज़ोर आंतों वाले, अस्वस्थ होते जा रहे बंदे कहीं बैठ जाएं तो रूस और महंगाई बारे होती चर्चा टहलते हुए, चीन, अमेरिका, फ़िल्में और राजनीति के पहाड़ पर आम और टमाटर की बात होते होते अपने शहर भी लौट आती है। रूस के हाथों गर्क हो चुके यूक्रेन, अमेरिका में बंद हुए गर्भपात, राष्ट्रीय राजनीति के चटपटे स्वादिष्ट हलवे को पकाने में डाले जा रहे मसाले और न माने जा रहे संवैधानिक नियमों की बातों में ज़्यादा मज़ा आ रहा होता है। यह पता होते हुए भी कि सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होता, बुज़ुर्ग होता एक और बंदा आकर बात करने लगता है यार कभी अपने शहर की बात भी कर लिया करो।
इस अवांछित सलाह पर चौहतराए बोलने लगे, अपना शहर तो बेहोश लोगों का शहर है। यहां हर तरह की खामोशियों में बढ़ोतरी हो रही है। मुफ्त में मिली अम्बियों से चटनी बनाने वाले, अभी भी कितनी ही जगह कूड़ा फेंकने वाले शान्तिप्रिय, संतुष्ट लोग। प्रतिक्रिया देना तो हमारे शहर के लोग कभी सीखे ही नहीं। तभी तो इस शहर को हमेशा मृत शहर कहा जाता रहा। अब तो वैसे भी यहां बुरा मान जाने वाले बंदे बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में क्या बात करें। अड़सठयाए बोले, कुछ लोग तो अपने शहर को जागरूक, सभ्य, सांस्कृतिक बुद्धिजीवियों की नगरी भी मानते होंगे। अपना अपना नजरिया होता है।
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चौहतराए कहने लगे शहर में पैदल चलना मुश्किल हो गया है। सठियाए ने कहा अब तो हर शहर में ऐसा है। चौसठाए बोले शहर में पब्लिक टॉयलेट्स की हालत खराब है। सठियाए बोले हर जगह यही हाल है लेकिन किसने कहा वहां पेशाब करो। घर से करके चलो, किसी दफ्तर में करो, ज़्यादा दिक्कत है तो एडल्ट डाइपर लगा कर चलो या फिर मौक़ा देखकर चौका मार लो। बच्चे तो क्या, हमने तो कइयों को कहीं भी करते देखा है और लेडीज़, जवाब आया वे बड़ी एड्जस्टिंग होती हैं जी।
अड़सठयाए ने माहौल बदलने के लिए कहा पुरानी फिल्मों के गाने कितने मधुर और मीनिंगफुल होते थे। आजकल देखो उनकी नक़ल कर काम चला रखा है। सठियाए बोले, जनाब जब गानों का यह हाल है तो आप अपने शहर में क्यूं पसंद का टॉयलेट ढूंढ रहे हो। तिरेसठाए पूछने लगे, आप कुछ बदलाव करवा सकते हो, क्या आपके पास पहुंच, पैसा और ताक़त है। कुछ भी नहीं है न। अपने शहर के बारे ज्यादा मत सोचो, यहां वहां की बातें कर टाइम पास करो। डिजिटल देखो, नहीं देखना तो बेहोश रहो, नींद खुल जाए तो बचे हुए वृक्षों के पास सैर करो, इधर उधर मत घूमो। बिलकुल मत देखो कि कमेटी के ठेकेदार ने कितने लाख में कितने फुट काम निबटाया है।
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उनकी उचित सलाह जारी थी, थका हुआ महसूस करो तो मनपसंद पार्क में बैंच पर सुस्ता लो। ज़्यादा दुखी महसूस करो तो पूजास्थल जाकर वहां वाले ऊपरवाले से खूब शिकायत करो। ऐसे नैतिक कर्म करने से भड़ास बह जाएगी और सेहत भी ठीक रहेगी जोकि आज की तारीख में सबसे ज़रूरी है। टाइम फिर भी बच जाए तो फेसबुक, यूट्यूब, वह्ट्स एप का स्वादिष्ट चाट मसाला तो है ही। तिरेसठाए की समझदारी भरी बातें सुनकर सभी वरिष्ठ जनों को मीठी मीठी नींद आने लगी थी। पार्श्व में गीत बज रहा था अपने शहर की बातें किया न करो।
- संतोष उत्सुक
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