इंसान का घटता कद (व्यंग्य)
यह स्पष्ट माना जा सकता है कि उस समय इंसान के पास आज जितनी बुद्धि होती तो वह शिकारी यानी मांसाहारी से किसान या शाकाहारी होने की न सोचता। दिलचस्प यह है कि यह अध्ययन मानव कंकाल के डीएनए पर आधारित है। पता नहीं यह जीवित लोगों की भूख पर ज़्यादा ध्यान क्यूं नहीं देते।
हमारे यहां शोध और खोज करने, कहने, लिखने और लड़ने के लिए दर्जनों दिलचस्प विषय हैं। हमारे शोध को दुनिया मानती है और उन पर अमल कर धन्य होती है लेकिन यह विदेशी अजीब विषयों पर शोध करते रहते हैं। सुसंस्कृत, सभ्य धरती का सम्मानित नागरिक होने के नाते मुझे हैरानी भरी परेशानी होती है कि इन्हें क्यूं हमारे जैसे बढ़िया विषय नहीं मिलते। पहले भी ऐसा होता रहा, अब भी ऐसा ही हो रहा है। दुनिया भर में इंसानियत ही नहीं हैवानियत पर भी विनाश का खतरा मंडरा रहा है और यह शोध कर बता रहे हैं कि बारह हज़ार साल पहले जब मानव, शिकार से खेती की और उन्मुख हुआ तो किसान बनने से उसका कद औसतन डेढ़ इंच घट गया।
यह स्पष्ट माना जा सकता है कि उस समय इंसान के पास आज जितनी बुद्धि होती तो वह शिकारी यानी मांसाहारी से किसान या शाकाहारी होने की न सोचता। दिलचस्प यह है कि यह अध्ययन मानव कंकाल के डीएनए पर आधारित है। पता नहीं यह जीवित लोगों की भूख पर ज़्यादा ध्यान क्यूं नहीं देते। कहते हैं खेतों में उगने वाले खाद्य से कम पौष्टिकता मिलती थी और किसान हो रहा इंसान बीमार हो जाता था इसलिए उसका कद कम हो गया। बाद में खेती के क्षेत्र में विकासजी आए उनकी मेहनत से काफी फर्क पड़ा। वह बात और है कि हमारे देश में मांसाहारी बढ़ रहे हैं और दुनिया में कम हो रहे हैं।
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वैसे तो हमारे यहां अपना कद बढाने और दूसरे का कद घटाने के अनेक रास्ते हैं जिन पर पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आर्थिक कद बढाने वाले शान से इठला कर विचरते हैं। इस बारे विदेशियों को हमसे सीखना चाहिए। हम विश्वगुरु भी तो हैं न। हम उन्हें सिखा सकते हैं कि बहुत से लोगों का कद एक दम कैसे घटाया या बढाया जा सकता है। दो अलग-अलग कद वालों को आपस में कैसे भिड़ाया या लड़वाया जा सकता है। हमारे यहां सभ्यता, नैतिकता, सदभाव ज़्यादा फैल जाने के कारण कद उंचा हो जाता है या कर दिया जाता है। किसी का बड़ा कद रसातल में भेजकर उसे उदास कैसे किया जाता है लोकतंत्र के काबिल और अनुभवी यंत्र, तंत्र, मंत्र, और षड्यंत्र सक्रिय रहते हैं।
यदि भाग्य का शर्बत मिल जाए तो इंसान का कद नौवें आसमान पर पहुँच जाता है। कद की और बात करें तो हमारे यहां यह पता नहीं चलता कि अमुक छोटे कद का आदमी ज़मीन के अन्दर कितना है। एक दूसरे का कद एक समान समझने की बुरी आदतें हमें नहीं है। सामने वाले का कद अपने से कम समझना हम अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं। हमारे यहां तो जाति, धर्म और धन के आधार पर भी कद बड़ा और छोटा कर दिया जाता है। इंसानियत, ईमानदारी व अनुशासन के लम्बे कद को राजनीति, पाखण्ड और भेदभाव की तलवारों से पल भर में ज़मीन पर ला देते हैं।
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विदेशियों के सर्वे मुझे अध्ययन और शोध करने के लिए उकसाते हैं ताकि कुछ सचाइयां उगा सकूँ मगर हर तरह से छोटे कद का आदमी मैं, क्या कर सकता हूं। मेरे विचार से तो इंसान का कद दिन प्रतिदिन घट रहा है।
- संतोष उत्सुक
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